जब जब चुनाव नजदीक आते हैं, करीब करीब हर राजनीतिक दल का कोई न कोई नेता यह बयान जरूर देता है कि वह अमुक इलाके को लंदन, पेरिस, न्यूयार्क आदि बना देगा। इन शहरों के नाम लेते वक्त संदर्भ अकसर सड़कों का होता है। जब झूमरी तलैया को पेरिस बना डालने टाइप दावा किया जाता है तो ‘भोली जनता’ यह मानने लग जाती है कि हमारे यहां की सड़कें भी वैसी ही हो जाएंगी जैसी विदेश में हैं।
अब बेचारे ज्यादातर भारतीयों ने न तो विदेश यात्रा की है और न ही वहां की वास्तविकता अपनी आंखों से देखी है। हां, इंटरनेट और टीवी आ जाने के बाद वे चित्र या चलचित्र में वहां के दृश्य जरूर देख लेते हैं और जो चकाचक छवि उन दृश्यों में बताई जाती है उससे वे भी उस स्वप्नलोक में विचरने लगते हैं जहां राजनेता उन्हें ले जाते हैं। कल्पनालोक के इस दृश्य से लोगों को क्या हासिल होता है यह तो नहीं मालूम लेकिन नेताओं को जरूर वोट हासिल हो जाते हैं।
चुनाव के मौसम में बिजली, पानी, सड़क के मुद्दे सबसे ज्यादा चर्चा में रहते हैं, लिहाजा सबसे ज्यादा राजनैतिक सट्टा भी इन्हीं पर खेला जाता है। अभी चूंकि बारिश का मौसम चल रहा है इसलिए सड़क से अटैचमेंट और ज्यादा हो जाता है, क्योंकि सड़कों के गड्ढे और जलभराव की स्थिति से लोगों को रोज दो चार होना पड़ता है, उनके दुष्परिणामों को भुगतना पड़ता है।
ऐसे ही माहौल में पिछले दिनों एक रिपोर्ट आई जो कहती है कि भारत में सड़क के गड्ढों से हर दिन 10 लोगों की मौत हो जाती है। इस बारे में हुए एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में सड़क के गड्ढों के कारण 3,597 लोगों की जान चली गई। यानी रोजाना कम से कम 10 लोगों की मौत सड़क के गड्ढों के कारण होती है।
बताया गया है कि गड्ढों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में 2016 के बाद से 50 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। जबकि इसकी तुलना देश में आतंकी गतिविधियों से होने वाली मौतों से करें तो आंकड़े बताते हैं कि 2017 में भारत में आतंकवादी गतिविधियों के कारण 803 लोग मारे गए। यानी सड़क के गड्ढों के कारण होने वाली मौतों से एक चौथाई से भी कम।
वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में 987 लोगों के लिए गड्ढे मौत लेकर आए, जबकि महाराष्ट्र में 726 और हरियाणा में 522 लोग गड्ढों के कारण मौत का शिकार हुए। इसके विपरीत 2016 में ऐसे ही कारणों से उत्तरप्रदेश में 714 और महाराष्ट्र में 32 9 लोग मारे गए थे। निर्माणाधीन सड़कों के पास या सड़क पर मारे गए लोगों की संख्या जो 2016 में 3,878 थी वह बढ़कर 2017 में 4,250 हो गई।
हमारा मध्यप्रदेश भी गड्ढों से मौत के मामले में पीछे नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2013 से 2016 के चार सालों के बीच सड़क के गड्ढों से होने वाली मौतों के मामले में मध्यप्रदेश देश में तीसरे नंबर पर रहा। इस सूची में 3428 मौतों के साथ उत्तरप्रदेश पहले नंबर पर और 1410 मौतों के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर था। इस अवधि में मध्यप्रदेश में 1244 मौतें हुईं। ऐसे टॉप टेन राज्यों में पंजाब 367 मौतों के साथ सबसे कम जनहानि वाला राज्य रहा।
ये सड़कें और ये गड्ढे मध्यप्रदेश में एक बार फिर राजनीतिक और चुनावी बहस के केंद्र में हैं। हाल ही में इस मुद्दे को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने यह कहते हुए हवा दी कि मध्यप्रदेश में यदि किसी स्थान की सड़कें अमेरिका से भी बेहतर हैं तो वे छिंदवाड़ा में हैं। छिंदवाड़ा दरअसल कमलनाथ का संसदीय क्षेत्र है, जहां से बीच में दो बार को छोड़कर 1980 से वे लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं।
कमलनाथ के बयान में अमेरिका के जिक्र का भी एक राजनीतिक पहलू है। दरअसल पिछले साल अक्टूबर माह में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान जब अमेरिका यात्रा पर गए थे तो उन्होंने वहीं यह बयान दिया था कि मध्यप्रदेश की सड़कें अमेरिका की सड़कों से भी बेहतर हैं। चौहान के उस बयान ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं और उस पर राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप का लंबा दौर चला था।
जब भी इस तरह के बयान आते हैं, मैं कई बार सोचता हूं कि ऐसे बयान देने वाले लोग आज जिस पोजीशन पर हैं, उस पोजीशन में वे सड़कों पर कितना चल पाते होंगे और वास्तविक स्थितियों से कितना रूबरू रह पाते होंगे? ये लोग या तो हवा में उड़ते हैं या फिर लचकप्रूफ लक्जरी गाडि़यों में चलते हैं। इनके लिए तो स्थितियां बिलकुल वैसी ही हैं जैसा गुलजार ने लिखा है-
तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं कांटे भी
मगर हम खाकसारों को बड़ी तकलीफ होती है
ऐसे में जब भी किसी शहर को लंदन, पेरिस या न्यूयार्क बनाने की बात होती है या फिर सड़कों को किसी अभिनेत्री के गालों की तरह बना देने का दावा होता है, तो गड्ढों में सड़क खोजते हुए चलने वाले मुझ जैसे लोगों के मन में गुलजार के अंदाज में ही यह सवाल उठने लगता है-
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच गड्ढों के मारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है?