रवि भोई
इन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट( ईडी) की नजर में छत्तीसगढ़ के दो नौकरशाह आ गए हैं। कहा जा रहा है कि पिछले दिनों ईडी की एक टीम ने नौकरशाहों के बारे में सबूत भी जुटाए हैं। इन नौकरशाहों को लेकर भाजपा के कुछ नेताओं और लोगों ने प्रधानमंत्री कार्यालय को शिकायत भेजी थी, उसके बाद ये टारगेट पर आए हैं। खबर है कि इन नौकरशाहों ने राजधानी रायपुर से सटे जिलों में अपने रिश्तेदारों के नाम से काफी जमीन खरीद रखी है। ये नौकरशाह ताकतवर पदों पर बैठे हैं। चर्चा है कि ईडी की नजर में चढ़े एक नौकरशाह सौदेबाजी की राशि के लेन-देन में दूसरों पर भरोसा नहीं करते। इनमें से एक नौकरशाह को पंगा लेने और मातहतों को गाली देने में मशहूर कहा जाता है। ईडी के एक्शन से माना जा रहा है कि इस महीने के आखिर तक झारखंड की नौकरशाह पूजा सिंघल की तरह छत्तीसगढ़ में भी एकाध नौकरशाह सामने आ सकते हैं।
स्थानीय और बाहरी की राजनीति
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में आम छत्तीसगढ़ियों के दिल में छत्तीसगढ़ के तीज-त्योहार,खानपान, परंपरा और संस्कृति को लेकर नई भावना जगाने का काम किया, उनकी इस रणनीति से राज्य में कांग्रेस की जड़ों को मजबूती मिलने भी लगी, क्योंकि राज्य की प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को इसका कोई तोड़ नजर नहीं आ रहा था। कहा जा रहा है कांग्रेस हाईकमान ने छत्तीसगढ़ से दो बाहरी लोगों को राज्यसभा भेजकर एक झटके में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की रणनीति पर पानी फेर दिया। छत्तीसगढ़ की अस्मिता और संस्कृति को लेकर भाजपा पर हमलावर भूपेश बघेल पर अब उलटे भाजपा वार करने लगी है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने कांग्रेस और मुख्यमंत्री पर तीर छोड़ा। डॉ. रमनसिंह का कटाक्ष जोरदार रहा। जोगी कांग्रेस ने तो पूर्व विधायक डॉ. हरिदास भारद्वाज का नामांकन करवाकर अलग ही चाल चली। छत्तीसगढ़ गठन के करीब 22 साल में कांग्रेस ने राज्यसभा के लिए बाहरी लोगों पर ज्यादा कृपा बरसाई। मोहसिना किदवई, केटीएस तुलसी के बाद अब रंजीत रंजन और राजीव शुक्ल छत्तीसगढ़ के रास्ते राज्यसभा गए। छत्तीसगढ़वासियों में कांग्रेस ने रामाधार कश्यप, कमला मनहर और मोतीलाल वोरा को उच्च सदन भेजा था, जबकि भाजपा ने अब तक स्थानीय को ही राज्यसभा में बैठाया है। इस कारण राज्यसभा में बाहरी उम्मीदवार का बड़ा मुद्दा भाजपा के हाथ लग गया है। अब देखते हैं 2023 में यह मुद्दा कितना असर कारक होता है?
हाईकमान का मैनेजमेंट कोटा
इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन मेरिट लिस्ट और मैनेजमेंट कोटा में होता है। मेरिट लिस्ट के आधार पर एडमिशन में स्टूडेंट को कई तरह से परखा जाता है, लेकिन जिनका नाम मेरिट लिस्ट में नहीं होता, वे मैनेजमेंट कोटा से एडमिशन ले लेते हैं। मैनेजमेंट कोटा में एडमिशन कैसे मिलता है, वह तो इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में बच्चों को दाखिला दिलाने वाले अच्छे से जानते है। ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की दो सीटों के लिए हो गया। मेरिट लिस्ट वाले कांग्रेसी देखते रह गए और मैनेजमेंट कोटा वाले सीट ले उड़े।
छत्तीसगढ़ के कई कांग्रेस नेता और अलग-अलग समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्यसभा में जाने के लिए लालायित थे, लेकिन हाईकमान ने किसी को तवज्जो नहीं दिया और अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर उत्तरप्रदेश के निवासी और पत्रकारिता से राजनीति में कूदे राजीव शुक्ला के साथ बिहार की रंजीत रंजन को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा का सांसद बना दिया। इस फैसले से छत्तीसगढ़ के कुछ कांग्रेसी नेता लाल-पीले हो रहे हैं, तो कुछ का चेहरा मुरझा गया है।
विधायक का पीएसओ प्रेम
छत्तीसगढ़ की एक विधायक का पीएसओ प्रेम इन दिनों चर्चा में है। आमतौर पर सरकार जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा के लिए उन्हें पीएसओ देती है और पीएसओ सीमा में रहकर अपनी ड्यूटी निभाता है, लेकिन विधायक ने सीमा को तोड़कर पीएसओ को अपने बराबरी पर ला दिया है। सार्वजनिक स्थानों पर भी पीएसओ की सीमा नजर नहीं आती। कहते हैं विधायक महोदया अपने पीएसओ के साथ होटल में बैठकर साथ खाना खाने में भी परहेज नहीं करती। विधायका को एसक्सीडेंटल राजनीतिज्ञ माना जाता है, जो दुर्घटनावश राजनीति में आ गईं और विधायक भी बन गईं।
शराब कारोबारी की दिल्ली दरबार में दस्तक
चर्चा है कि छत्तीसगढ़ के एक शराब कारोबारी ने दिल्ली दरबार में अपनी पकड़ बना ली है। कभी एक कांग्रेसी नेता के खासमखास रहे, फिर भाजपा के राज में मलाई छानने वाले इस लिकर किंग की दिल्ली दरबार में पहुंच अपने पुत्र के मार्फ़त बनी है। शराब कारोबारी का बेटा राष्ट्रीय स्तर के एक खेल संगठन से जुड़ा है। इस खेल संगठन में भाजपा के एक ताकतवर नेता का बेटा पदाधिकारी है। कहते है नेता और कारोबारी के बेटे की कैमेस्ट्री बहुत अच्छी है। कारोबारी को भूपेश बघेल की सरकार ने साइड कर दिया है। इस कारण उन्होंने दिल्ली का रुख किया। दिल्ली में पैर जमाने के बाद अब छत्तीसगढ़ में उनके खेल का इंतजार लोगों को है।
मार्गदर्शक ओपी चौधरी
नौकरशाह से राजनीति में आए ओमप्रकाश चौधरी भले 2018 में अपना पहला विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन इस साल संघ लोकसेवा की परीक्षा पास करने छत्तीसगढ़ के कई केंडिडेट के मार्गदर्शक के रूप में स्थापित हो गए। इस साल छत्तीसगढ़ से करीब एक दर्जन युवाओं ने यूपीएससी क्रेक किया है। इनमें से अधिकांश लोगों ने ओपी चौधरी से आईएएस-आईपीएस बनने के गुर सीखे। रायपुर कलेक्टर रहते ओपी चौधरी ने राजधानी में लोगों के अध्ययन के लिए नालंदा परिसर बनवाया, तो दंतेवाड़ा में निर्मित जवांगा परिसर को भी उन्हीं की देन माना जाता है।
भाजपा में फिर 65 प्लस का नारा
छत्तीसगढ़ में इस बार भाजपा के भीतर 65 नए चेहरों का नारा बुलंद हो रहा है। याने छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से कम से कम 65 सीटों में नए चेहरों को मैदान में उतारना होगा, तभी पार्टी का भला होगा और सत्ता में वापसी हो सकेगी। भाजपा ने 2018 विधानसभा चुनाव में छत्त्तीसगढ़ में 65 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था, लेकिन वह 15 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए लगातार सर्वे करवा रही है और चुनाव के पहले दो-तीन सर्वे होने की बात कही जा रही है, पर पार्टी में बदलाव का मुद्दा गरम है। निष्क्रिय और उम्रदराज लोगों को बदलने की मांग आग की तरह पार्टी में फ़ैल रही है। अब देखते हैं आगे क्या होता है?
तीन महीने में ही बदल गए एसपी साहब
बालोद एसपी गोवर्धन राम ठाकुर तीन महीने का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही बदल गए। प्रमोटी आईपीएस गोवर्धन राम ठाकुर को सरकार ने सात मार्च 2022 को सदानंद कुमार की जगह बालोद का एसपी बनाया था। बालोद संवेदनशील जिला हो गया है, ऐसे में वहां तेज-तर्रार और युवा अफसर को कमान सौंपना सरकार का अच्छा फैसला है, लेकिन जिलों के कमांडर बनाने से पहले वहां की प्रकृति का अध्ययन कर लिया जाता तो किसी अफसर पर दाग न लगता। छत्तीसगढ़ क्रांति सेना की करतूतों के लिए ठाकुर साहब बलि का बकरा बन गए। जितेंद्र यादव कैसे संभालते हैं, यह समय बताएगा?(लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
(मध्यमत)
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