जयराम शुक्ल
अपने देश की दो खास बातें जो दुनिया में कहीं नहीं। इन्टेलीजेन्स ब्यूरो और ज्योतिष। इनके आकलन कभी मिथ्या नहीं होते। जैसे पुलवामा हमले के बाद आईबी ने कहा कि- ‘’मैंने पहले ही कहा था कि हमला होगा, तो हुआ।‘’ मान लीजिए हमला नहीं होता तब भी आईबी सही होती यह कहते हुए कि- ‘’हमने चेतावनी दी थी इसलिए सब संभल गया।‘’ ज्योतिष को भी यही मान लीजिए।
ज्योतिष के अनुसार भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकारें बन सकती हैं। दोनों को बता रखा है कि शुक्र पर शनि की वक्रदृष्टि है जिसने इसे सम्हाल लिया मानो उसकी सरकार बन गयी। भाजपा की बन गई तो समझो उनका शुक्र इतना प्रबल था की शनि की वक्रदृष्टि फेल हो गई और कांग्रेस की बनी तो समझिए कि उन लोगों ने शनि को पटा लिया।
रामलाल जीतें कि श्यामलाल, जीत ज्योतिष की होगी। हर प्रत्याशी किसी न किसी ज्योतिषी का जजमान है। कुर्ते की ऊपरी बटन खोल दो तो पूरा गला गंडे-ताबीज से भरा मिलेगा। जिसके हाथ में लाल-पीले-काले रक्षासूत्र, कलावा बंधे मिलें समझिए ये ही आपके इलाके का नेता है। एक बार ज्योतिषी ने एक मंत्री जी को बता दिया कि राहु आपके पीछे पड़ा है इसलिए.. राहु से बचने के लिए मंत्रीजी ने जोकरों की भांति लंबी चोटी रख ली।
ज्योतिषी ने फिर चेतावनी दी कि अब राहु आपको छोड़कर आपके क्षेत्र में बैठ गया है। मंत्रीजी कुछ कर पाते कि चुनाव आ गया, अब वो हार जाते हैं तो समझो राहु ने हरा दिया और जीत जाते हैं, तो समझो बजरंगबली ने राहु को दबोच रखा था इसलिए जीत गए। अपने यहां जनता न किसी को हराती है न जिताती है। वह होती कौन है? जीत हार का फैसला चौसठ करोड़ देवी देवता, ग्रह, नक्षत्रों की चाल और ज्योतिषियों के पैंतरे तय करते हैं। इस बार भी वही कर रहे हैं।
जनता को नेता भजें भी तो क्यों? जब शनि-शुक्र, राहु-केतु हैं तो पांच साल इन्हें भजो। हमारे शहर में एक शमी का पेड़ था। किसी ने फैला दिया कि यह शनि का साक्षात अवतार है। बस फिर क्या.. शनि की दशा के मारे लोग सरसों का तेल लेकर शमी पर सवार शनिदेव को प्रसन्न करने में जुट गए। देखा-देखी इतना तेल चढ़ाया, इतना तेल चढ़ाया कि किसी का शनीचर भले न उतरा हो पर बेचारा हरा-भरा शमी का पेड़ मर गया।
अपने यहां टोने-टोटके विज्ञान की भी चाभी घुमा देते हैं। खबर पढ़ी होगी कि मंगल मिशन शुरू करने से पहले निदेशक साहब देवदर्शन करने गए थे। मंगल मिशन सफल हो गया तो सफलता का श्रेय भला उन वैज्ञानिकों को कहां मिलने वाला? वो तो देवकृपा थी। घर से निकलते हैं तो दिशाशूल, गोचर, दिन का मुहूरत आड़े आ जाता है। रास्ते से बिल्ली निकली तो 50 लाख की मार्सडीज खड़ी हो गई सड़क पर, यह ताकते हुए कि पहले कोई दूसरा रास्ता काटे। देरी से फ्लाइट छूट जाए या अरबों की डील टूट जाए, बिल्ली सब पर भारी।
अपने सूबे के एक ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं जो चुनाव में पर्चा भरने निकले तो काली बिल्ली रास्ता काट गई। काफिला रुक गया। काली हंडी का तांत्रिक उपचार हुआ। मुख्यमंत्री का चुनाव मुकाबले में फंस गया। वे मुश्किल से जीते पर इसका श्रेय जागरूक वोटरों को नहीं उस तांत्रिक को मिला। देश को 65 करोड़ देवी-देवता, ग्रह, नक्षत्र, उपनक्षत्र, टोने-टोटके ही चला रहे हैं।
जनता अप्रासंगिक है। यह अप्रासंगिकता उसकी ही ओढ़ी बिछाई है क्योंकि वह भी अंध-विश्वासों में फंसी है। जहां पराक्रम के मुकाबले अंधविश्वास और टोनों-टोटकों का ऐसा ही कर्मकाण्डीय पाठ्यक्रम चलता रहेगा, वहां सचमुच ही भगवान मालिक है चुनाव जिताने के लिए भी और देश चलाने के लिए भी।(मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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