कमलनाथ के लापता पोस्‍टर पर गरमाई राजनीति

छिंदवाड़ा/ पूर्व मुख्‍यमंत्री और मध्‍यप्रदेश कांग्रेस के अध्‍यक्ष कमलनाथ के, अपने क्षेत्र छिंदवाड़ा में, लापता होने के पोस्‍टर लगने से इलाके की राजनीति गरमा गई है। छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद रह चुके कमलनाथ इन दिनों जिले की छिंदवाड़ा सीट से विधायक हैं और उनके पुत्र नकुलनाथ क्षेत्र के सांसद हैं। सोमवार को शहर में पिता-पुत्र यानी कमलनाथ और नकुलनाथ के लापता होने के पोस्‍टर दिखाई दिये।

पोस्‍टर में लिखा था- छिंदवाड़ा के लापता विधायक और सांसद को इस संकट काल में जिले की जनता ढूंढ रही है, जो इन्हें लेकर आएगा उसे 21 हजार रुपये का इनाम दिया जाएगा। इस पोस्‍टर पर प्रकाशक के तौर पर छिंदवाड़ा विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं का जिक्र है।

छिंदवाड़ा कमलनाथ का राजनीतिक गढ़ है और वहां आमतौर पर उनके इस तरह के विरोध की कोई कल्‍पना भी नहीं करता लेकिन इस घटना ने कांग्रेस और कमलनाथ दोनों को सकते में डाल दिया है। जैसे ही पोस्‍टर की बात फैली कांग्रेस सक्रिय हुई और पार्टी के जिला अध्यक्ष गंगाप्रसाद तिवारी ने कांग्रेसी विधायकों के साथ जाकर कलेक्टर और एसपी को ज्ञापन दिया। उन्‍होंने मांग की कि पोस्टर लगाने वालों के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई की जाए।

इस मामले में पुलिस में एक शिकायत अलग से भी की गई है। तिवारी ने घटना के पीछे किसी का नाम तो नहीं लिया लेकिन उनका आरोप है कि यह असामाजिक तत्‍वों का काम है जो शहर की फिजा बिगाड़ना चाहते हैं। उधर भाजपा नेताओं ने घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि संकट की इस घड़ी में कमलनाथ क्षेत्र की जनता के साथ नजर नहीं आ रहे इसलिए लोगों ने अपनी पीड़ा और नाराजी को इस तरह जाहिर किया है।

उल्‍लेखनीय है कि कोरोना संकट के चलते हुए लॉकडाउन से देश भर में प्रभावित होने वाले मजदूरों में छिंदवाड़ा क्षेत्र के भी हजारों मजदूर शामिल हैं। रोजी रोटी छिन जाने के कारण देश के विभिन्‍न भागों से करीब 50 हजार से अधिक ऐसे मजदूरों के वापस छिंदवाड़ा लौटने की खबर है। इनमें ज्‍यादातर आदिवासी क्षेत्र के वे लोग हैं जो विभिन्‍न शहरों में छोटी मोटी मजदूरी कर अपना पेट पाला करते थे। लौटने वाले कामगारों का सिलसिला अभी जारी है।

इतनी बड़ी संख्‍या में कामगारों की वापसी ने रोजगार के छिंदवाड़ा मॉडल पर भी सवाल खड़े किए हैं। मजदूरों की घरवापसी ने इस विसंगति को भी उजागर किया है कि बहुचर्चित छिंदवाड़ा मॉडल से क्षेत्र के आदिवासियों को उतना अधिक लाभ नहीं मिल पाया जितना कि प्रचारित किया गया।

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