अजय बोकिल
कर्नाटक में तीन माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की अहमियत इसी बात से समझ आ जानी चाहिए कि इसकी बिसात हिंदुस्तानी मुसलमान और पाकिस्तानी मुसलमान तथा मुस्लिम युक्त हिंदुस्तान और मुस्लिममुक्त हिंदुस्तान की बुनियाद पर बिछाई जा रही है। इस हिंदू-मुस्लिम पिंगपांग में सर्विस का जिम्मा एक छोर से असदुद्दीन ओवैसी तो दूसरे छोर से विनय कटियार ने थाम रखा है। ओवैसी ने लोकसभा में कहा कि सरकार किसी भी भारतीय मुसलमान को ‘पाकिस्तानी’ कहने वाले को तीन साल की सजा देने का कानून बनाए। साथ में यह भी कहा कि मुझे यकीन है कि बीजेपी सरकार ऐसा कोई कानून नहीं लाएगी।
उधर राज्यसभा सांसद विनय कटियार ने लांग सर्विस करते हुए कहा कि मुसलमानों को तो इस देश में रहना ही नहीं चाहिए। क्योंकि 1947 में उन्हें उनका देश पाकिस्तान के रूप में मिल चुका है। कटियार भाजपा सांसद हैं और उनके बयान का पार्टी ने खंडन नहीं किया है। इसका अर्थ यह है कि भाजपा अब मुसलमानों को ‘हिंदू राष्ट्र’ में थोड़ी बहुत जगह देने के स्टैंड से आगे बढ़ चुकी है।
इन बयानों का राजनीतिक पोस्टमार्टम करने से पहले कर्नाटक में मुस्लिम समीकरण समझना जरूरी है। कर्नाटक में कुल 225 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से करीब 65 सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता या तो निर्णायक हैं या फिर नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। राज्य की कुल 6 करोड़ आबादी में मुसलमानों की संख्या करीब 13 फीसदी है। जाहिर है कि कोई भी चुनाव मुस्लिम वोटों के भारी समर्थन अथवा उन्हें पूरी तरह दरकिनार करके ही जीता जा सकता है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में कुल 11 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव जीते थे, जिनमें से 9 कांग्रेस और 2 जेडी (एस) के थे। तब से अब में फर्क यह है कि इस बार राज्य में मुस्लिम वोटों पर दावेदार दलों की संख्या दो से बढ़कर तीन हो गई है। क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल-मुसलमीन (एआईएमआईएम) भी राज्य की साठ सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है। आशंका यह भी है कि एआईएमआईएम सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार सकती है। हालांकि उसकी नजर मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल इलाकों पर ही है।
एआईएमआईएम पार्टी के प्रमुख असददुदीन ओवैसी पढ़े लिखे हैं और मुसलमानों के हकों के लिए अपने ढंग से संघर्ष करते रहे हैं। हालांकि कांग्रेस उन्हें भाजपा की ‘बी’ टीम बताती है, जिसका काम मुस्लिम वोटों की कुछ इस तरह गोलबंदी करना है कि मलाई भाजपा के खाते में जाए। इसे कैरम की भाषा में समझें तो स्ट्राइकर गोटी को इस तरह हिट करे कि क्वीन रिबाउंड होकर भाजपा के चुनावी पॉकेट में गिर सके।
उधर ‘फायर ब्रांड’ भाजपा नेता समझे जाने वाले विनय कटियार के पास आजकल ज्यादा काम नहीं है। वे बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के संस्थापकों में से हैं। तीन बार लोकसभा सांसद रहे हैं। आजकल राज्य सभा में हैं। लिहाजा उनके पास साइडलाइन होती कोई भी बॉल वापस कोर्ट में फेंकने की महती जिम्मेदारी है। यह काम वह कोर्ट से बाहर रह कर अंजाम दे रहे हैं।
इसी के तहत उन्होंने ताजा बयान दिया कि मुसलमानों को भारत में रहने का ही हक नहीं है। जब एक बार धार्मिक जनसंख्या के आधार पर देश का बंटवारा कर दिया तो उन्हें इस देश में रहने की क्या आवश्यकता है? वे या तो पाकिस्तान जाएं या बांग्लादेश। कटियार का यह बयान भाजपा के उन दावों के ठीक उलट है, जिसमें वह मुसलमानों के आधुनिकीकरण को लेकर चिंतित रहती आई है।
यहां ओवैसी और कटियार के खेल में फर्क यह है कि ओवैसी कोर्ट में रहकर ही शॉट लगा रहे हैं तो कटियार कोर्ट के बाहर से बाउंड्री लाइन के बाहर जा रही बॉल को दुगुनी रफ्तार से वापस फेंक रहे हैं। इसका फायदा यह है कि मैदान के भीतर असली मुद्दों से दर्शकों का ध्यान हट रहा है।
अब सवाल यह है कि इससे सियासी फायदा क्या है? अगर इस देश के 20 करोड़ मुसलमान पाकिस्तान भेजे जा सकें तो पाकिस्तान और बंगलादेश में रह रहे ढाई करोड़ हिंदू भी हमें वापस लेने होंगे। जब चंद रोहिंग्याओं को ही वापस भेजने में पसीना आ रहा हो तो 20 करोड़ मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना असंभव ही है। और वे जाएंगे भी क्यों? कर्नाटक चुनाव जिताने के लिए तो हर्गिज ही नहीं। फिर कटियार की ये शोशेबाजी क्यों?
क्योंकि जमीनी हकीकत यह है कि तमाम कोशिशों के बाद भी कर्नाटक में भाजपा के पुराने चुनावी नुस्खे कारगर नहीं हो पा रहे हैं। चुनाव के लिए ‘पॉलिटिकल वार्मअप’ में भी न तो विकास की बात चल पा रही है और न ही हिंदू एकता की डुगडुगी अपेक्षित मजमा जुटा पा रही है। उल्टे सत्तारूढ़ कांग्रेस शातिराना ढंग से उन्हीं नुस्खों को आजमा रही है, जो बीजेपी के तरकश के तीर समझे जाते रहे हैं।
भाजपा को एक आस जेडी (एस) के देवगौडा से है। लेकिन वो भी बहुत मददगार साबित होंगे, ऐसा नहीं लगता। यानी दारोमदार मुस्लिम वोटों पर ही टिका है। ओवैसी और कटियार इस बात की जमानत लेंगे कि मुस्लिम और हिंदू वोट कांग्रेस की तरफ कम से कम जाए। वे या तो एआईएमआईएम या भाजपा की झोली में जाएं।
वैसे पिछले दिनों शिवसेना ने तो खुद ओवैसी को ही पाकिस्तान भेजने की मांग कर डाली थी, लेकिन उससे कुछ खास फायदा नहीं होना था, सो कटियार ने इससे एक कदम आगे बढ़कर सारे मुसलमानों को ही पाकिस्तान भेजने की मांग कर दी है। यह जानते हुए कि ऐसा कुछ नहीं होना है। क्योंकि अगर मुसलमान भारत छोड़कर जा ही रहे होते तो मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी के लिए तीन तलाक कानून बनाने की क्या जरूरत थी?
(सुबह सवेरे से साभार)