गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश में शराबबंदी का मामला पिछले कुछ महीनों से गरमाया हुआ है। ऐसा नहीं है कि राज्य में शराबबंदी को पहली बार मुद्दा बनाया गया है। सालों पहले प्रदेश के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री और सहकारिता क्षेत्र के कद्दावर नेता सुभाष यादव ने भी शराबबंदी को लेकर काफी जोर शोर से आवाज उठाई थी लेकिन कुछ समय बाद उन्हें भी परंपरागत ढर्रे पर ही चलने के लिए मजबूर होना पड़ा।
हाल ही में प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने शराबबंदी का मुद्दा उठाया है। उन्होंने शिवराज सरकार पर इसके लिए दबाव बनाने की कोशिश की है। उमा भारती का कहना है कि प्रदेश में शराब से कई घर बरबाद हो रहे हैं इसलिए सरकार को शराब पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। जहां तक राज्य सरकार का सवाल है वह एक तरफ तो यह कह रही है कि वह प्रदेश में नशे के कारोबार को फैलने से रोकेगी, लेकिन दूसरी तरफ शराब के मामले को लेकर कोई ठोस फैसला नहीं कर पा रही है।
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह शराबबंदी के पक्ष में नहीं है, लेकिन उनकी मजबूरी शराब से आने वाला वो धन है जिसकी गैरमौजूदगी में सरकारी खजाने का बहुत बड़ा हिस्सा खाली रह सकता है। मध्यप्रदेश पर इस समय करीब तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। जाहिर है पहले से ही खस्ता हालत में चल रही सरकार ऐसा कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहती। लिहाजा मुख्यमंत्री शराबबंदी को जनजागरण और समाज के सहयोग से ही लागू करने के पक्ष में हैं।
लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने इस मसले पर सरकार को उलझन में डाल दिया है। उमा दो तीन महीनों से इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रही हैं। पहले उन्होंने इसके लिए सार्वजनिक आंदोलन की चेतावनी दी, फिर इसके विरोध में लट्ठ उठाने की धमकी दे डाली और फिर सीधे कार्रवाई की बात की। पर अज्ञात कारणों से उमा भारती के ये तमाम ऐलान सिर्फ जबानी जमा खर्च ही साबित हुए। लोगों ने भी मान लिया कि उमा भारती सिर्फ खबरों में बने रहने के लिए यह सब कुछ कर रही हैं।
पर इसी बीच 13 मार्च को कुछ ऐसा हुआ कि इस मामले ने नया मोड़ ले लिया। उमा भारती अपनी पूर्व घोषणा के तहत शराबबंदी जागरूकता अभियान पर निकलीं और राजधानी भोपाल के भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स कारखाने के इलाके में एक शराब दुकान पर अपने समर्थकों के साथ पहुंचीं। वहां उन्होंने बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी में उस शराब दुकान में घुसकर हाथ में उठाई ईंट शो केस में रखी शराब बोतलों पर दे मारी।
उमा की यह हरकत देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और उसके बाद से इस मसले पर राजनीति का जो सिलसिला शुरू हुआ वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। उमा की हरकत पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं ने जो प्रतिक्रिया दी वह कहने को तो ऊपरी तौर पर उमा के समर्थन वाली थी लेकिन असलियत में उसने उमा को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘’अब क्या उमा भारती पत्थर उठाकर शराबबंदी करवायेंगी…? उन्हें क़ानून हाथ में नही लेना चाहिये, यह अपराध है… विरोध के कई अन्य लोकतांत्रिक तरीक़े भी है..’’
उमा भारती के विरोध के तरीके को खुद भारतीय जनता पार्टी के भी कई नेताओं ने आपत्तिजनक माना है। सार्वजनिक रूप से हालांकि किसी ने कोई टिप्पेणी नहीं की है लेकिन निजी बातचीत में उनका कहना है कि उमा भारती जैसी वरिष्ठ नेता को, जो प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, इस तरह का आचरण शोभा नहीं देता। कानून के लिहाज से भी उनका यह कृत्य उचित नहीं।
प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता डॉ. हितेष वाजपेयी ने उमा भारती की इस हरकत से पार्टी को अलग करने वाला बयान दिया। उन्होंने मीडिया से कहा- ‘’उमाजी वाला जो पूरा घटनाक्रम है वो शराबबंदी को लेकर उनका निजी तौर से तय किया हुआ आंदोलन है और उसका तरीका भी उनका अपना है। वो पूरे आंदोलन को लेकर अपने बारे में बता भी रही हैं कि उन्होंने यदि यह फैसला किया है तो क्यों किया। रहा सवाल वर्तमान घटनाक्रम का तो यह पूरी तरह उमाजी और प्रशासन के बीच का विषय है और चूंकि यह भारतीय जनता पार्टी द्वारा तय किया हुआ कार्यक्रम नहीं है इसलिए मैं नहीं समझता कि हम इस पर कोई टिप्पणी करें।‘’
अब भाजपा ने भले ही इस घटना से पल्ला झाड़ लिया हो लेकिन बात एक बार निकली तो बहुत दूर तक चली गई। कांग्रेस ने इसे बहुत फुर्ती से लपका और बाद में उतनी ही मजबूती से पकड़ भी लिया। कमलनाथ के प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह द्वारा नवंबर 2021 में की गई एक घोषण को ट्वीट कर डाला जिसमें मुख्यमंत्री ने प्रदेश में पत्थरबाजों से सख्ती से निपटने, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और इस बारे में कानून बनाने की बात कही थी। विधानसभा में कांग्रेस के विधायक सुखदेव पांसे ने कहा कि उमा भारती ने कानून अपने हाथ में लिया है इस मामले में कार्रवाई होनी चाहिए।
घटना के बाद खुद उमा भारती भी चुप नहीं बैठीं। उन्होंने अगले ही दिन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को एक चिट्ठी लिख डाली जिसमें उन्होंने कहा कि मैंने पत्थर मार कर कोई अपराध नहीं किया है। मेरा पत्थर सरकार के खिलाफ नहीं था। मैंने निषिद्ध स्थान पर चल रही शराब दुकान पर पत्थर मारा है। उमा ने सरकार से आग्रह किया कि निषिद्ध स्थानों पर चल रही शराब दुकानें तत्काल बंद कराई जाएं।
उधर राजनीतिक हलकों में उमा भारती के इस विरोध को उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि पार्टी में एक तरह से दरकिनार हो गईं उमा भारती मुख्यधारा में अपनी जगह बनाने के लिए छटपटा रही हैं। शराबबंदी का मुद्दा उठाना और उसके लिए इस तरह का आचरण करना एक तरह से उनकी अंदरूनी खीज को ही दर्शाता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि स्वयं उमा भारती कुछ दिन पहले खुद के महत्वहीन हो जाने का दर्द यह कहते हुए जता चुकी हैं कि ‘’सरकार मैं बनाती हूं और चलाता कोई और है…।‘’
यह बात सही है कि उमा भारती की अगुवाई में ही भाजपा ने 2003 में दिग्विजयसिंह के कांग्रेस राज को खत्म करते हुए प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी। लेकिन अपने ही कारणों से उमा को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। इस बीच वे केंद्र में मंत्री भी रहीं लेकिन अब वे कहीं नहीं हैं। ऐसे में उनकी छटपटाहट और दर्द का छलकना स्वाभाविक है। लेकिन शराबबंदी मामले पर विरोध की जो शुरुआत उन्होंने ईंट मारकर की है, उसने पहले ही निवाले में मक्खी का काम किया है। उनके इस काम को शायद ही पार्टी में किसी का खुला समर्थन मिले। मुख्यमंत्री और भाजपा ने उमा की इस ईंट के जवाब में हालांकि अभी तक कोई पत्थर नहीं चलाया है लेकिन देखना होगा कि उमा अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की लड़ाई में ईंट ईंट जोड़कर किला खड़ा कर पाती हैं या खुद की ही ईंट से ईंट बजा दिए जाने का इंतजाम कर लेती हैं, जैसा कि वे पहले भी कई बार कर चुकी हैं…(मध्यमत)
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