आमतौर पर मंचों तक ही अपनी भागीदारी सीमित रखने वाले कवियों ने अब सरकारी तंत्र में भी भगीदारी की मांग कर डाली है। कवियों ने मांग की है कि सरकार उन्हें शासन में उचित प्रतिनिधित्व दे, संस्कृति विभाग में कवियों को सलाहकार बनाया जाए और इस सबके ऊपर कवियों को ‘अधिमान्यता’ देकर शासन की सुविधाओं में उन्हें हिस्सेदार बनाया जाए।
ओरछा के कवि और राष्ट्रीय कवि संगम के अध्यक्ष कवि सुमित ने इन मांगों को लेकर सरकार को ज्ञापन भेजा है। साथ में यह भी कहा है कि जब तक कवियों की मांग पूरी नहीं होती, कविगण हर माह सरकार को पत्र लिखते रहेंगे। उनका कहना है कि हमेशा राष्ट्रहित में सोचने वाले कवियों की सरकार को सुध लेनी चाहिए।
कवि समुदाय की ओर से कहा गया है कि पूर्व काल से ही राजा महाराजाओं के दरबार में कवियों का विशेष स्थान रहा है। कवि युद्ध काल में राजा का हौसला भी बढ़ाते थे और राजा की गलतियों पर उसे कविता के माध्यम से फटकार कर उसका मार्गदर्शन करते थे। आज भी कवि समाज में महत्वपूर्ण भूमिका को अदा कर रहे है। देश में 2 वर्ष पूर्व हुए व्यापक राजनैतिक परिवर्तन में कवियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। लिहाजा सरकार को भी उसकी तरफ ध्यान देना चाहिए।
कवियों ने जो मांगे रखी हैं, उनका ब्योरा भी जान लीजिए-
1. शासन में कवियों को उचित प्रतिनिधित्व मिले, संस्कृति विभाग में रिक्त, सलाहकार जैसे पदों पर कवियों की नियुक्ति हो।
2. कवियों के मानदेय का अधिकांश हिस्सा यात्रा में खर्च हो जाता है ऐसे में उन्हें रेल यात्रा में 50 प्रतिशत छूट मिले।
- कवि उम्र के अंतिम पड़ाव में दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं अत: उनके लिए सम्मानजनक पेंशन की सुविधा हो।
4 . कवियों को पुस्तक प्रकाशन हेतु उचित अनुदान मिले।
5 . शासन की विभिन्न सलाहकार समितियों में कवियों को प्रतिनिधित्व दिया जाए।
6 . कवियों की अधिमान्यता के नियम बनाकर उनका पंजीयन हो। उन्हें शासन की अन्य सुविधाओं में हिस्सेदारी मिले।
- कविगण पूरे देश में जोखिम भरी यात्राएं करते हैं अत: उनके परिवार की सुरक्षा के लिए आर्थिक मदद का प्रावधान हो।
कवि संगम ने तय किया है कि वे इन मांगों को लेकर नियमित रूप से प्रधानमंत्री, रेल मंत्री और मुख्यमंत्रियों को तब तक सामूहिक पत्र भेजेंगे जब तक मांगे स्वीकार नहीं हो जातीं।