संकट-काल की कविता

गिरीश उपाध्‍याय 
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तू युद्ध कर
शत्रु के मर जाने की कामना न कर
अपनी भुजाओं को तौल
शत्रु की भुजाओं के
गल जाने की कामना न कर
अपने शस्त्र उठा
सान पर चढ़ा
शत्रु का शस्त्रागार
जल जाने की कामना न कर
घाव खाने और सहने की
ताकत पैदा कर
शत्रु के रथ से गिर जाने की
कामना न कर
अपनी ध्वजा को संभाल
उसे ऊंचा कर
शत्रु की ध्वजा
हवा में उड़ जाने की कामना न कर
विजयी होना है तो
रण में जीतना
शत्रु को परास्त करना सीख
मत मांग
शत्रु की पराजय की भीख

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