कवीन्द्र शर्मा
कल तक वो हॉल में पीछे बैठकर तालियाँ बजाता था
रिटायरमेंट समारोह में बड़ी अच्छी कविता सुनाता था
आज अपने ही बारे में सुनते हुऐ, कुछ सोचते हुए,
खुद को आगे की कुर्सी पर माला पहने बैठा पाता है
“उम्र महज एक नंबर है”, “बूढ़ा होगा तेरा बाप”
-ये सबको कहता था, ठहाके लगता था
आज जब ये सुनता है तो बस धीमे से मुस्कुराता है,
अपने घुटनों को हल्के से सहलाता है
व्यस्त नहीं है पर व्यस्तता बताता है,
पर अक्सर पकड़ा जाता है
“आजकल क्या कर रहे हो” इस सवाल से बहुत कतराता है,
खिसियानी बिल्ली बन जाता है
फीकी चाय पीता है, उससे भी फीकी हँसी हँसता है
बिना अलार्म लगाए छः बजे उठ जाता है,
एक घंटा मॉर्निंग वॉक को चला जाता है
भी 10 मिनट भी जॉगिंग कर ली तो खुद पर इठलाता है
अमिताभ बच्चन की फिटनेस को देखकर
खुद का हौसला बढ़ाता है
ऑफिशियल पेंट शर्ट से ठसाठस भरी अलमारी के सामने
ठिठक कर खड़ा हो जाता है
फिर अलमारी के कोने में पड़ी
पुरानी ट्रैक-पैंट और टी-शर्ट पहन लेता है
दूध और अखबार की बंदी तो बचपन से चली आती थी
अब दवाइयों की भी बंदी लगवाता है,
मेडिकल स्टोर वाले को दोस्त बनाता है
आईने से नजरें चुराता है,
पर मजबूरी में सामना हो ही जाये तो
अजनबी की तरह पेश आता है
सुबह पढ़ा हुआ अखबार शाम तक भूल जाता है,
फिर पढ़ लेता है, बासी खबरों में कुछ ताजा ढूंढ लेता है
देखते देखते-आदमी बूढ़ा हो जाता है