एक दुविधा खड़ी हो गई है। थोड़ी देर पहले हमने मध्यमत डॉट कॉम के एक पाठक श्री सुरेशचंद्र पांडे द्वारा वाट्सएप पर भेजी गई एक कविता– ऐ उम्र कुछ कहा मैंने… पोस्ट की थी। पांडे जी ने यह कविता हमें गुलजार की बताते हुए भेजी थी। हमने उसी को आधार मानते हुए इस कविता को गुलजार की कविता बताकर अपने पाठकों से शेयर किया।
अब हमारे ही एक और पाठक श्री प्रमोद उपाध्याय ने इस पर सवाल उठाया है, उन्होंने हमें भेजे अपने संदेश में कहा है-
‘’यह कविता गुलज़ार की है? मुझे शक है। गुलज़ार अपने शब्दों के चयन में अनोखे हैं। वे आम प्रचलन के या प्रचलन से बाहर हो चुके अथवा विशिष्ट कार्यसूचक शब्दों को अपने कथ्य से गुम्फित कर इतने कौशल से सहज बना देते हैं कि शब्द भी भौंचक रह कर, गीत के माध्यम से मिल रही शोहरत का मज़ा लूटते होंगे। गुलज़ार के मुक़ाम के लिहाज़ से इस कविता का ‘ वो ‘ स्तर नहीं है और यदि ये कविता उनकी है तो मुझे आश्चर्य है।‘’
दरअसल इस कविता को पोस्ट करने से पहले थोड़ा सा संदेह मुझे भी हुआ था। क्योंकि इसमें वो गुलजारपन नहीं दिखता। लेकिन पांडेजी हमारे पुराने और संजीदा पाठक हैं। चूंकि उन्होंने इसके साथ गुलजार का नाम दिया था इसलिए हमने उसी नाम के साथ इस कविता को शेयर किया। क्योंकि यदि कोई कविता किसी और की लिखी हुई है तो उसमें उसी का नाम जाना चाहिए। यह मध्यमत की नीति भी है और हमारी प्रतिबद्धता भी।
लेकिन अब प्रमोद जी ने सवाल उठाकर हमारे सामने दुविधा खड़ी कर दी है। उनका संदेश आने के बाद हमने जब गूगल में सर्च किया तो यह कविता गुलजार के नाम से ही दिखाई जा रही है लेकिन ऐसे मंचों, वेबसाइट या ब्लॉग पर जिनको विश्वसनीय मानने पर सवाल उठाए जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में यह पता लगाना जरूरी हो जाता है कि आखिर यह कविता है किसकी? यदि सच में गुलजार साहब की है तो ठीक अन्यथा हमें पता लगाना होगा कि इस कविता का रचयिता कौन है और यह गुलजार साहब के नाम से बाजार में क्यों चल रही है?
यह हमारे साथ साथ मध्यमत डॉट कॉम के सुधी पाठकों के लिए भी एक चुनौती है। हमारा आप सबसे अनुरोध है कि इस उलझन को सुलझाने में हमारे मदद करें। यदि आप में से कोई भी इस कविता के रचयिता को लेकर विश्वसनीय तौर पर कुछ बता सके तो हम आभारी रहेंगे।
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