यूपी पुलिस हत्याकांड: लोग मरते रहेंगे, माफिया जिंदा रहेगा

अजय बोकिल

उत्तर प्रदेश कानपुर शहर के पास एक गांव में एक हिस्ट्रीशीटर डॉन ने जिस तरह से 8 पुलिसकर्मियों की जान ले ली, उससे यही संदेश गया है कि यूपी में अब बेखौफ अपराधी पुलिस का ही– ‘एनकाउंटर’ कर रहे हैं। राज्य में गुंडा राज पर लगाम के तमाम दावे इस ‍विचलित कर देने वाली घटना के बाद काफूर हो गए हैं। हालांकि मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस हत्याकांड के मास्टर माइंड विकास दुबे को किसी भी कीमत पर पकड़ने के आदेश दिए हैं, लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया है कि अब जमीन पर असल राज गुंडों बदमाशों का ही है। सत्ता के समझौतों ने मुजरिमों की ‘राजनीतिक अनिवार्यता’ भी रेखांकित कर दी है।

यह घटना इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस तरह की मुठभेड़ें या तो आंतकी करते हैं या फिर नक्सली। बाकी माफिया डॉन यदा-कदा ही पुलिस से सीधे उलझते हैं, लेकिन हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने इस हकीकत को बेनकाब कर दिया कि राज्य में पुलिस भी काफी हद तक डॉन के रहमोकरम पर है। विकास के हौसले इसलिए भी बुलंद थे, क्योंकि उसे सत्तारूढ़ भाजपा सहित कई दलों का राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ था।

इस पूरे घटनाक्रम पर योगी सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाला शिवसेना का यह सवाल एक वाजिब है कि योगी राज में मारे गए 113 कुख्यात गुंडों में विकास का नाम शामिल क्यों नहीं था? ये निर्मम घटना गंभीर चेतावनी है कि समाज में भ्रष्टाचार और दबंगों का नेटवर्क इतना गहरा चुका है कि पुलिस वाले अपने ही साथियों की जान दांव पर लगाने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। यूपी की इस घटना को मध्यप्रदेश में रेत माफिया की दबंगई की रोशनी में भी देखा जाना चाहिए, जिन पर लगाम के दावे हर मुख्यमंत्री ने किए, लेकिन वो रेत के घरौंदे ही साबित हुए। यहां तो रेत माफिया एक आईपीएस समेत कई अधिकारियों की जान ले चुका है।

विकास दुबे प्रकरण केवल समाज के अपराधीकरण का एक उदाहरण नहीं है, यह पूरे समाज के भीतर से खोखले होने तथा भले और ईमानदार लोगों को लगातार हाशिए पर धकेल दिए जाने का दुष्परिणाम भी है। वरना कानून के रखवालों को खुले आम चुनौती देकर मौत की नींद सुला देने के लिए भी जिगर और निष्ठुरता चाहिए। कानपुर के पास बिकरू गांव का 47 वर्षीय डॉन विकास दुबे जवानी में कदम रखने के साथ ही अपराध जगत से भी दोस्ती कर चुका था।

विकास ने जुर्म की दुनिया और राजनीतिक संरक्षण के अटूट समीकरण को बहुत पहले समझ लिया था। इसीलिए उस पर जब पहला मर्डर केस दर्ज हुआ, तब वह केवल 19 साल का था। कहते हैं कि तब उसे पूर्व यूपी विधानसभाध्यक्ष हरेकृष्ण श्रीवास्तव का सरंक्षण प्राप्त था। श्रीवास्तव 1990-91 के दौरान यूपी में मुलायम सरकार के समय विधानसभा अध्यक्ष थे। वो बसपा में गए तो विकास भी वहां चला गया।

क्षेत्र में विकास को लोग ‘पंडितजी’ के नाम से जानते हैं और गरीबों में उसने अपनी छवि रॉबिनहुड की बना रखी है। लिहाजा स्थानीय लोग उसे ‘गुंडा’ कहने के बजाए ‘दबंग नेता’ ज्यादा मानते हैं। विकास पर हत्या, अपहरण, जमीनों पर अवैध कब्जे आदि समेत 60 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं।  सन् 2000 में उस पर एक इंटर कॉलेज के असिस्टेंट मैनेजर सिद्धेश्वर पांडेय के मर्डर का मामला दर्ज हुआ। विकास ने बीजेपी शासन काल में 2001 में एक पूर्व राज्य मंत्री संतोष शुक्ला की तो थाने में ही हत्या कर दी थी। लेकिन सम्बन्धित पुलिसकर्मी द्वारा कोर्ट में विकास के खिलाफ गवाही न देने कारण वह छूट गया।

उसके बाद विकास ने बाकायदा एक आपराधिक गैंग बनाई। उसे अक्सर सत्र के दौरान यूपी विधानसभा परिसर में देखा जाता था। जो भी पार्टी सत्‍ता में होती विकास उसके करीब हो जाता था। फिलहाल उसकी नजदीकी भाजपा नेताओं से थी। 2004 में उसने एक व्यवसायी दिनेश दुबे का मर्डर किया। एक और अन्य व्यक्ति रामबाबू यादव की हत्या की साजिश में भी उसका नाम है। और तो और 2018 में विकास ने अपने चचेरे भाई अनुराग की भी हत्या कर दी। लेकिन उसका बाल तक बांका नहीं हुआ।

जो कहानियां सामने आ रही हैं, उससे पता चलता है कि पुलिस विकास की जेब में थी, प्रशासन कदमों में और राजनेता छतरी की तरह थे। मानो डॉन कहलाने की यही अर्हताएं हैं। कहते हैं कि ग्राम प्रधान का पद तो 15 साल से विकास की मुट्ठी में ही था। विकास की पत्नी जिला पंचायत सदस्य है। भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों के नेता विकास से रिश्ते रखने के लिए लालायित रहते थे और चुनाव के समय तो उसके कोठीनुमा घर पर नेताओं का तांता लगा रहता था।

विकास ने अपना घर भी अभेद्य किले की तरह बना रखा था ताकि पुलिस भी उसमें घुसने की हिम्मत न कर सके। हालांकि अब यह घर जेसीबी चलाकर ढहा दिया गया है, लेकिन ये पंक्तियां लिखे जाने तक विकास का कोई पता पुलिस नहीं लगा पाई थी, बावजूद उस पर ढाई लाख रुपये का इनाम घोषित करने के। वैसी जिस थाने में पुलिस की तैनाती ही डॉन की मर्जी से होती हो, वो पुलिस डॉन की खबर अपने विभाग को देगी या पुलिस की खबर डॉन को देना ज्यादा सुरक्षित समझेगी, यह तो आप भी समझ सकते हैं।

मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस सीओ देवेन्द्र मिश्रा के नेतृत्व में पुलिस पार्टी एक आपराधिक मामले में विकास के घर पर दबिश देने गई थी। विकास को अपने पुलिस मुखबिरों से इसकी जानकारी पहले ही मिल गई और उसने तगड़ी मोर्चाबंदी कर वहां पहुंचे 8 पुलिसकर्मियों को मार डाला। जवाब में पुलिसकर्मी कुछ नहीं कर पाए। क्योंकि एक खूंखार अपराधी को किस तैयारी और चतुराई के साथ पकड़ा जाए, पुलिस ने इसके लिए जरूरी प्लानिंग या सावधानी नहीं बरती थी।

इस पूरे कांड में स्थानीय पुलिस की भूमिका अत्यंत संदिग्ध है। सरकार ने अभी ऐसे तीन पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया है। बताया जाता है चौबेपुर थाने के प्रभारी विनय तिवारी ने ही विकास पर चले रहे मुकदमे से वसूली के लिए धमकी देने की धारा 386 हटवा दी थी। इसकी शिकायत शहीद सीओ ने एसएसपी को की थी। लेकिन जैसा कि होता है, विकास के तगड़े राजनीतिक रसूख के चलते किसी की बोलने की हिम्मत नहीं हुई। उलटे वह अपना काम कर फरार हो गया।

मुख्यामंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार की पहली सालगिरह पर दावा किया था कि राज्य में अब गुंडाराज खत्म है। यही नहीं राज्य विधानसभा में एक बार उन्होंने पूरे विपक्ष को गुंडा कह दिया था, जिसके जवाब में विपक्ष ने योगी पर ‘लोकल डॉन’ होने का आरोप जड़ा था। उधर शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में कहा कि कानपुर मुठभेड़ ने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट उत्तर प्रदेश सरकार की पोल खोल दी है। योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में अब तक 113 से ज्यादा गुंडों, अपराधियों को मार दिया गया है, लेकिन विकास साफ बचता रहा।

‘शिवसेना ने पूछा कि योगी सरकार के पास इस आरोप के क्या जवाब हैं कि मुठभेड़ करने वालों की सूची उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार की सुविधा के हिसाब से तैयार की गई थी। और फिर शहीद पुलिसकर्मियों के घरों का क्या? दरअसल ‘विकास’ की कहानी अपराध और अपराधियों के बढ़ते ‘विकासवाद’ की कथा है, जिसमें किसी भी कीमत पर आगे बढ़ने और इसके लिए हर तरह की दबंगई करने को उचित ठहराना है।

इस पूरे परिदृश्य में बेबस वो आम आदमी है, जिसका कोई रसूख नहीं है और ‍जिसकी जिंदगी का मोल भी अब डॉन ही तय कर रहे हैं। खुद राजनीति का अपराधीकरण हो गया है। हम सब माफिया, नेता, पुलिस और भ्रष्ट अफसरों के रहमो करम पर हैं। विकास दुबे जिंदा पकड़ा जाए या मारा जाए, लेकिन इस मामले में भी तात्कालिक सहानुभूति और जनाक्रोश के बाद वही होना है, जो होता रहा है। यानी ‘धूर्तमेव जयते।‘ लोग मरते रहेंगे, माफिया जिंदा रहेगा। भले उसका रूप कुछ बदल जाए।
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