जम्मू कश्मीर में धारा 370 के विशेष प्रावधान खत्म किए जाने के बाद, पहली बार देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 अगस्त की रात राष्ट्रीय प्रसारण माध्यमों पर कह रहे थे- ‘’साथियो, बहुत जल्द ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सभी केंद्रीय और राज्य के रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इससे स्थानीय नौजवानों को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होंगे। साथ ही केंद्र सरकार की पब्लिक सेक्टर यूनिट्स और प्राइवेट सेक्टर की बड़ी कंपनियों को भी रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराने के लिए,प्रोत्साहित किया जाएगा।‘’
उन्होंने बताया- ‘’इसके अलावा, सेना और अर्धसैनिक बलों द्वारा, स्थानीय युवाओं की भर्ती के लिए रैलियों का आयोजन किया जाएगा। सरकार प्रधानमंत्री स्कॉलरशिप योजना का भी विस्तार करेगी ताकि ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल सके।‘’
लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र बनाने का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा-‘’यूनियन टेरीटरी बन जाने के बाद अब लद्दाख के लोगों का विकास, भारत सरकार की स्वाभाविक जिम्मेदारी बनता है। स्थानीय प्रतिनिधियों,लद्दाख और कारगिल की डेवलपमेंट काउंसिल्स के सहयोग से केंद्र सरकार, विकास की तमाम योजनाओं का लाभ अब और तेजी से पहुंचाएगी। लद्दाख में स्पीरिचुअल टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म और इकोटूरिज्म का, सबसे बड़ा केंद्र बनने की क्षमता है।‘’
उन्होंने बताया- ‘’सोलर पॉवर जनरेशन का भी लद्दाख बहुत बड़ा केंद्र बन सकता है। अब यहां के सामर्थ्य का उचित इस्तेमाल होगा और बिना भेदभाव विकास के लिए नए अवसर बनेंगे। अब लद्दाख के नौजवानों की इनोवेटिव स्पिरिट को बढ़ावा मिलेगा, उन्हें अच्छी शिक्षा के लिए बेहतर संस्थान मिलेंगे, यहां के लोगों को अच्छे अस्पताल मिलेंगे, इंफ्रास्ट्रक्चर का और तेजी से आधुनिकीकरण होगा।‘’
जाहिर है जम्मू कश्मीर में इतना बड़ा कदम उठाने के बाद सरकार की पहली चिंता वहां सामान्य स्थिति बहाल करने की है और इसमें युवाओं, खासतौर से घाटी के युवाओं की बड़ी भूमिका है। घाटी में चल रही अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों के मद्देनजर वहां के युवाओं की छवि भी विकृत हुई है और पूरे देश ने ज्यादातर उन्हें पत्थरबाज के रूप में ही देखा है।
ऐसा नहीं है कि कश्मीर का सारा युवा पत्थरबाज है। आंकड़े बताते हैं कि अखिल भारतीय सेवा परीक्षाओं में जम्मू कश्मीर के युवा अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और इन सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व भी बढ़ रहा है। अब जरूरत इस बात की है कि कश्मीर के युवाओं की पत्थरबाज छवि को तोड़कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जाए। इस लिहाज से प्रधानमंत्री का यह कहना महत्वपूर्ण है कि सरकार बदली हुई परिस्थितियों में युवाओं को रोजगार सहित अन्य अवसर प्रदान करने के सारे उपाय करेगी।
दरअसल देश ने अभी तक जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को या तो वहां के राजनेताओं के बयानों से जाना है या फिर मीडिया में आने वाली और ज्ञात-अज्ञात कारणों से गढ़ी जाने वाले उनकी छवियों से। लेकिन इन दोनों ही माध्यमों ने देश का मुकुट कहे जाने वाले इस राज्य के लोगों और वहां के समाज की सही स्थिति कभी देश के सामने नहीं आने दी। एक तरफ जहां स्थानीय नेतृत्व ने अपने हितों के चलते लोगों में भारत विरोधी भावना को बढ़ावा दिया वहीं शेष भारत के लोगों ने भी कश्मीर को एक पर्यटन स्थल से ज्यादा नहीं समझा।
अपने तमाम ऐतिहासिक विरोधाभासों और विषम राजनीतिक समीकरणों के बावजूद कश्मीर बहुत ही समृद्ध कला-संस्कृति की परंपरा वाला क्षेत्र है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से वह आतंक का पर्याय अथवा आतंक की शरणस्थली वाली पहचान में सिमट कर रह गया है। ऐसे में सबसे पहले कश्मीर के माथे से यह पहचान मिटानी होगी और इसके लिए सरकारी प्रयासों के साथ साथ कश्मीर के युवाओं को भी पाकिस्तान के बजाय भारत की ओर मुड़ना होगा।
करीब डेढ़ दशक पहले मैं एक अखबार में नौकरी के सिलसिले में चंड़ीगढ़ पदस्थ हुआ था। वहां जाने से पहले मेरे मानस में पंजाब की वही छवि थी जो ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के आसपास के सालों में बनी थी। ऐसा लगता था कि पंजाब यानी आतंकवाद से प्रभावित इलाका। लेकिन वहां जाने के बाद मैंने महसूस किया कि वास्तविक हालात, धारणाओं से कितने अलग हैं। मैंने वहां अपने मित्रों और परिचितों के अलावा पंजाब को जानने समझने वालों से उन दिनों का हवाला देते हुए पूछा था कि आखिर पंजाब में पैर पसार चुका खूंखार आतंकवाद कैसे काबू में आया?
उस समय मुझे जो जवाब मिला वह ध्यान देने लायक है। आतंकवाद के पहले का पंजाब, आतंकवाद से ग्रस्त पंजाब और फिर आतंकवाद से मुक्त पंजाब, तीनों स्थितियों को बहुत नजदीक से देखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझसे कहा, लेने को तो इसका श्रेय बहुत सारे लोग ले सकते हैं, लेकिन असली श्रेय पंजाब के लोगों को जाता है। ऐसा इसलिए कि आतंकवाद का खूनी दौर देखने के दौरान उन्हें शांति और विकास की कीमत समझ में आई और उसी समझ ने उन्हें स्थितियों को बदलने के लिए ताकत भी दी और खड़ा भी किया। लोगों ने खुद महसूस किया कि इन हालात में न तो उनका भविष्य है और न ही उनके बच्चों का और जैसे ही यह भाव आया स्थितियां बदल गईं।
हालात कितने ही खराब हों, आतंकवाद या अलगाववाद कितना ही बरगला ले, लेकिन वह कभी भी शांति और विकास की जगह नहीं ले सकता। कुछ उन्मादी तत्वों को छोड़ दें तो आम नागरिक शांति से जीवन जीना चाहता है। और इस बात को समझने के लिए पंजाब और कश्मीर तक जाने की भी जरूरत नहीं है। हम अपने चंबल इलाके को ही ले लें। जिस तरह एक समय का पंजाब और आज का कश्मीर आतंक का पर्याय बन चुका है, उसी तरह एक जमाने में चंबल का इलाका भी डाकुओं और आतंक का पर्याय था। लेकिन विकास की गतिविधियों और चंबल नहर निर्माण जैसे बड़े कदमों ने पूरे चंबल की सूरत ही बदल दी।
निश्चित रूप से कश्मीर की सूरत बदलने का काम आसान नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। यदि दृढ़ संकल्प और राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ इस लक्ष्य को हासिल करने का उपक्रम हो तो इसे हासिल किया जा सकता है। पर हां, इसके लिए एक तरफ सरकार को सभी को साथ लेकर चलना होगा वहीं दूसरी तरफ बाकी दलों को भी सकारात्मक रवैया अपनाना होगा। याद रखें, न तो संगीन के साये में शांति स्थापित हो सकती है और न ही विरोध के झंडे तले उसे पाया जा सकता है।