क्रॉसर- एक पखवाड़ा मौत के साथ-7
चिकित्सा तंत्र में जांच के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल अथवा एक शहर से दूसरे शहर में सैम्पल भेजे जाने का भी अजीब गोरखधंधा है। खुद डॉक्टर ही बताते हैं कि ऐसे सैम्पल बाहर भेजे जाने में सबसे बड़ा खतरा सैम्पल के रखरखाव और जांच के प्रोटोकॉल के पालन का होता है। अधिकांश मामलों में व्यावहारिक रूप से इस प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो पाता और ऐसे में जो रिपोर्ट आती है वह भगवान भरोसे ही होती है।
रेबीज का सैम्पल भेजे जाने के दौरान जिस बात का सबसे अधिक ध्यान रखना होता है वह है उस कंटेनर के तापमान को बनाए रखना। ऐसे सैम्पल के लिए बहुत कम तापमान चाहिए इसलिए उसे बर्फ में रखकर पैक किया जाता है। यदि सैम्पल वाले कंटेनर का तापमान तय सीमा से जरा भी ऊंचा हुआ तो तय मानिए कि उसका असर टेस्ट के परिणामों पर भी होगा और आपको सही नतीजे नहीं मिलेंगे।
एक और बात, ऐसा सैम्पल कूरियर के जरिए भेजा जाता है। और वह हवाई जहाज से भोपाल से बंगलुरू तक का सफर कई घंटों में तय करता है। अब जरा कल्पना करिए, अस्पताल में डॉक्टरों ने मरीज की रीढ़ का पानी निकाला, उसे डिब्बे में बंद कर आईसपैक किया और कूरियर वाले को दे दिया। कूरियर वाला कितनी धूप में घूम रहा है या वह कितनी देर बाद उसे अपने ऑफिस पहुंचाएगा किसी को पता नहीं।
चलिए मान लेते हैं कि उसने सही समय पर पहुंचा दिया तो वह पैकेट फ्लाइट से बुक होगा। पहले वह भोपाल से मुंबई जाएगा, वहां एयरपोर्ट पर तब तक पड़ा रहेगा जब तक कि उसे बेंगलुरू की कनेक्टिंग फ्लाइट नहीं मिल जाती। ऐसे में एयरपोर्ट पर ही दो से चार घंटे का इंतजार भी करना पड़ सकता है। फिर वह सैम्पल कूरियर कंपनी के बेंगलुरू ऑफिस पहुंचेगा और वहां से संबंधित संस्थान को भेजा जाएगा।
NIMHNS जैसे संस्थान में देश भर से सैम्पल आते हैं इसलिए इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि आपका सैम्पल वहां जाते ही जांच के लिए लेबोरेटरी में चला जाए और डॉक्टर भी तुरंत उसकी जांच का काम शुरू कर दें। तो सैम्पल पैक होने से लेकर NIMHNS पहुंचने तक यह प्रक्रिया इतनी लंबी है कि इसमें कुछ भी अनहोनी होने की पूरी गुंजाइश रहती है और यदि ऐसा हो जाए तो जांच का बेड़ा गर्क ही समझिए।
और यही हुआ। डॉक्टरों ने भोपाल से 7 तारीख को जो सैम्पल लिया था उसमें ममता की लार यानी सलाइवा और रीढ़ की हड्डी के पानी यानी सीएसएफ दोनों के सैम्पल थे। हम मानकर चल रहे थे कि सलाइवा और सीएसएफ दोनों की रिपोर्ट साथ मिल जाएगी। लेकिन हमें मिली सिर्फ सलाइवा की रिपोर्ट। ऐसे में सवाल उठना लाजमी था कि आखिर सीएसएफ की रिपोर्ट का क्या हुआ?
हमने सिद्धांता रेडक्रॉस के लोगों से पूछताछ की तो उन्होंने गोलमोल सा जवाब दिया। कुछ शंका होने पर हमने बेंगलुरू पता किया तो मालूम हुआ कि जिस कंटेनर में सीएसएफ सैम्पल भेजा गया वह लीक कर गया है, ऐसे में सैम्पल दुबारा भेजना होगा। हमारे लिए एक एक दिन तो क्या एक एक मिनिट काटना मुश्किल हो रहा था और ऐसे में यह सूचना पहाड़ बनकर गिरी। लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते थे सिवा सैम्पल पैक करने वाले की लापरवाही को कोसने के।
वैसे पहले सैम्पल के साथ एक और हादसा भी हुआ था। हुआ यूं कि भोपाल से अस्पताल ने सैम्पल बेंगलुरू भेजते समय NIMHNS के संबंधित विभाग का पता ही गलत लिख दिया। अब इधर हम ब्लू डॉर्ट कंपनी के ट्रैकिंग सिस्टम पर अपने सैम्पल की लोकेशन देख रहे थे और उधर बेंगलुरू से कूरियर कंपनी के टैक्सी वाले का फोन आया कि NIMHANS वालों ने गलत पते के कारण सैम्पल रिसीव नहीं किया है।
कूरियर वालों की तरफ से सूचना दी गई कि वे सैम्पल को वापस भोपाल भेज रहे हैं। इस जानकारी ने हमें बुरी तरह परेशान कर दिया। अब हमारी सारी ताकत इस बात में लग गई कि किसी तरह वह सैम्पल वापस भोपाल न आए, वहीं रहे और भोपाल अस्पताल से NIMHNS में बात करवाकर हम सैम्पल को वहां रिसीव करवा लें।
लेकिन उसके लिए जरूरी था कि वो टैक्सी वाला दुबारा उस सैम्पल को लेकर NIMHNS जाता। जिस नंबर से उसने हमें बेंगलुरू से फोन किया था हमने वो नंबर लगाया तो उसने कन्नड़ में बात करना शुरू कर दिया। हम उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे कि लेकिन न तो हममें से कोई कन्नड़ जानता था और न ही वो हिन्दी। उसने फोन काट दिया। हमने फिर उससे संपर्क करने की कोशिश की तो उसका फोन लगातार स्विच ऑफ मिला।
अब हममें से हर कोई बेंगलुरू में अपने अपने संपर्क तलाशने लगा। ऐसे में पुराने साथी बहुत काम आते हैं। मुझे याद आया कि ईटीवी में मेरे साथ कन्नड़ चैनल में एक रवि कुमार नाम का लड़का भी था। मुझे जानकारी थी कि वो इन दिनों टीवी9 में बेंगलुरू में सीनियर पोजीशन पर है। बहुत भरोसे के साथ मैंने रवि को फोन लगाया लेकिन दुर्भाग्य कि उसका नंबर स्विच ऑफ मिला।
कहीं रवि का नंबर बदल तो नहीं गया, यह सोचकर मैंने ईटीवी के ही अपने एक और पुराने सहयोगी अनिमेष पाठक को फोन लगाया जो टीवी9 में ही अहमदाबाद में काम कर रहे हैं। अनिमेष ने मेरी मदद के लिए अपने सहयोगी प्रमोद कश्यप को तैनात किया और प्रमोद ने अहमदाबाद से बेंगलुरू अपने चैनल के साथियों की मदद से संपर्क कर उस टैक्सी चालक को कन्नड़ में संदेश भिजवाया कि उसे क्या करना है।
इस बीच परिवार के एक सदस्य ने भी बेंगलुरू में अपने किसी दोस्त को खोज निकाला था और वह भी उस टैक्सी चालक को ढूंढ कर, उससे सैम्पल लेकर खुद ही NIMHNS में जमा करवाने की कोशिश में निकल पड़ा था। खैर इतनी सारी मशक्कत के बाद हमने उस समय राहत की सांस ली जब हमें सूचना मिली कि वो सैम्पल NIMHNS में रिसीव हो गया है। यह वही सैंपल था जिसमें से सलाइवा की निगेटिव रिपोर्ट हमें मिल चुकी थी और हमें उस सीएसएफ की रिपोर्ट का इंतजार था, जिसके बारे में कह दिया गया था कि वह सैम्पल तो खराब हो गया है दुबारा भेजिए…
कल पढ़ें- क्या हुआ दुबारा भेजे गए सैम्पल का?