पोहरी उपचुनाव
विशेष संवाददाता
शिवपुरी जिले की पोहरी विधानसभा में करीब 35 साल तक ब्राह्मण-किरार के बीच चला सियासी वर्चस्व का खेल 2018 में बदल गया। पहली बार यहां ब्राह्मण कैंडिडेट मैदान में नहीं था। 2020 में भी ऐसा होगा यह कहा नहीं जा सकता, लेकिन पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला कांग्रेस से टिकट की आश में हैं। कभी सिंधिया के खास रहे पूर्व मंत्री रामनिवास रावत भी पोहरी में चुनावी टोह ले रहे हैं, लेकिन खुलकर बोलने से बच रहे हैं।
उधर जिस सुरेश धाकड़ के विरुद्ध बीजेपी ने 18 महीने पहले व्यूरचना रची थी अब वे बीजेपी के टिकट पर उतरने की तैयारी में हैं। चुरहट में अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह को मात देने वाले शरदेंदु तिवारी, पोहरी में सुरेश धाकड़ की जीत का मैकेनिज्म बनाने के लिए मैदान में आ चुके हैं। बीजेपी के पूर्व विधायक प्रहलाद भारती, नरेंद्र बिरथरे और सुरेश धाकड़ एक ही कार में बैठकर कार्यकर्ताओं और जनता के बीच जा रहे हैं।
मैसेज दो टूक है, किसी भी कीमत पर पोहरी में जीत ही बीजेपी नेतृत्व का ध्येय है। बूथवार घेराबंदी की पूरी रचना पर बीजेपी ने काम शुरू कर दिया है। यह अलग बात है कि एक ही गाड़ी में बैठे तीन प्रतिस्पर्धी केवल सार्वजनिक रूप से ही संभाषण करते हैं। गाड़ी में हो सकता है शिष्टाचार भी नहीं होता। यह बीजेपी संगठन की ताकत और भय का चलता फिरता नमूना भी है।
उधर कांग्रेस में घमासान पहले की तरह ही नजर आ रहा है। पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला के विरुद्ध कांग्रेस के सभी दावेदार एकजुट हो गए हैं। 2008 में लड़ चुके एनपी शर्मा, पूर्व जिला अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण धाकड़, विनोद धाकड़, जनपद अध्यक्ष प्रद्युम्न वर्मा, अखिल शर्मा टिकट के प्रमुख दावेदार हैं।
शुक्ल से लेकर सभी टिकटाकांक्षी सिंधिया के भक्त रहे हैं और इस बात की भी पूरी संभावना है कि हरिवल्लभ शुक्ला का टिकट फ़ाइनल होते ही अधिकतर सिंधिया शरणम गच्छामि होंगे। अगर टिकट नहीं मिलती तो राजनीतिक जीवन के अंतिम पड़ाव पर चल रहे शुक्ला भी बगाबत से नही चूकेंगे।
बीजेपी में कांग्रेस जैसी बगाबत के आसार तो नहीं लेकिन पूर्व विधायक नरेंद्र बिरथरे के दावे को पार्टी कमजोर मानकर नहीं चल रही है। इसलिए उन्हें मनाकर रखने पर प्राथमिकता से काम हुआ है। पिछला चुनाव हारे प्रह्लाद भारती पार्टी और मुख्यमंत्री को ध्यान में रखते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी के लिए चुनाव बाद कहने का मौका शायद ही खड़ा करें।
पोहरी में किरार, आदिवासी, जाटव, कुशवाहा, ब्राह्मण, यादव, गुर्जर, वैश्य, रावत, राठौर, मांझी, परिहार जैसी प्रमुख जातियों के मतदाता हैं। 1990 से यहां बसपा का प्रभाव भी तेजी से बढ़ा है। 2018 के चुनाव में तो बसपा दूसरे नम्बर पर रही है। इस चुनाव में भी हार जीत का निर्णय बसपा के प्रदर्शन पर भी निर्भर रहने वाला है। कांग्रेस से टिकट मांग रहे नेताओं में से भी कोई एक हाथी की सवारी गांठता मिल सकता है।
कांग्रेस के सुरेश धाकड़ 28 साल बाद पोहरी में पार्टी को जीत दिलाने वाले उम्मीदवार थे। अब एक बार फिर कांग्रेस के सामने इसे बरकरार रखने की चुनौती है। पोहरी में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व किसी किरार केंडिडेट को उतारने का मन बना रहा है ताकि निर्णायक किरार वोटरों में विभाजन खड़ा कर बीजेपी की ताकत को कमजोर किया जाए। दो किरार कैंडिडेट के साथ पार्टी 2018 में जीत का प्रयोग कर चुकी है। लेकिन उसकी समस्या हरिवल्लभ शुक्ला हैं, जो हर हाल में चुनाव में लड़ने का खम ठोक रहे हैं। 2003 में वे समानता दल से जीत भी चुके हैं, लेकिन वे बसपा और कांग्रेस के टिकट पर बीजेपी के प्रह्लाद भारती से हारे भी हैं।
2018 में सुरेश धाकड़ को जिन वर्गों के वोट मिले थे वे बीजेपी के टिकट पर भी मिलेंगे इसकी कोई गारंटी नही है। लेकिन वे बीजेपी के वोट बैंक को हासिल करेंगे यह तय है। बीजेपी के साथ आदिवासी, दलित और यादव वोट बैंक को साधने की बड़ी चुनौती है। वहीं कांग्रेस के पास हरिवल्लभ जैसा कोई अन्य उम्मीदवार नहीं है, लेकिन उनके साथ चुनावी हिसाब-किताब वाली लंबी फ़ौज बेताल की तरह तैयार है। संभव है अशोक सिंह भी उनके समर्थन में न हों, जो एक फैक्टर है यहां।
पोहरी में बसपा से पिछला चुनाव लड़ चुके कैलास कुशवाहा भी कांग्रेस से टिकट के लिए कमलनाथ और दिग्विजयसिंह के यहां हाजरी लगा चुके हैं लेकिन बात अभी बनी नहीं है। वे बीजेपी के अपने पुराने नेताओ के सम्पर्क में भी है। इस बार कैलाश बसपा से लड़ेंगे इसमें सशंय ही है। अगर बसपा ने नॉन कुशवाहा, धाकड कैंडिडेट उतारा तो कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ेंगी।
फिलहाल पोहरी में बीजेपी को उम्मीदवार के साथ अपने कैडर का समन्वय करना सबसे बड़ा काम है और ऐसा लगता है कि अगले एक दो महीने पार्टी इसी समन्वय को मिशन मोड में करने जा रही है।
————————————-
आग्रह
कृपया नीचे दी गई लिंक पर क्लिक कर मध्यमत यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।
https://www.youtube.com/c/madhyamat
टीम मध्यमत