मां- बाप को भी गुनहगार क्‍यों नहीं बनाना चाहिए?

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हमें चाहिए आजादी… तेज रफ्तार गाड़ी भगाने की आजादी, लोगों को कुचल डालने की आजादी… दारू पीकर गाड़ी चलाने की आजादी… इस तरह के नारे यदि नहीं लगे, तो सरकार जो करने का सोच रही है, उससे कई परिवार उजड़ने से बच सकेंगे।

दरअसल केंद्र सरकार सड़क सुरक्षा संबंधी नियमों में काफी सारे बदलाव करने जा रही है। इसके लिए राज्‍यों के मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था, जिसने आरंभिक तौर पर जो सिफारिशें की हैं, उनमें ओवरलोड, ओवरस्‍पीड और शराब पीकर गाड़ी चलाने के अलावा जो सबसे महत्‍वपूर्ण प्रावधान प्रस्‍तावित किया गया है वो ये है कि नाबालिग बच्‍चों को गाड़ी देने पर उसके परिजन के खिलाफ भी केस दर्ज हो सकता है।

मंत्री समूह की सिफारिशों को अंतिम रूप मिल जाने के बाद संभावना यह है कि संसद के मानसून सत्र में इस संबंध में नया बिल लाया जा सकता है। परिवहन मंत्री नितिन गडकरी इसमें विशेष रुचि ले रहे हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने भी चालू दशक को सड़क सुरक्षा दशक घोषित कर दुनिया भर के देशों से आग्रह किया है वे वर्ष 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में कम से कम 50 प्रतिशत की कमी लाएं।

भारत में दो क्षेत्रों में पिछले एक दशक में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। पहला है मोबाइल और दूसरा ऑटोमोबाइल। मोबाइल के क्षेत्र में नई नई कंपनियां बाजार में उतर रही हैं और ऐसा लगता है कि देश में रोज एक नया मोबाइल लांच हो रहा है अथवा पुराने मोबाइल सेट में कोई नया फीचर जोड़कर उसे प्रस्‍तुत किया जा रहा है। ऐसा ही हाल ऑटोमो‍बॉइल के क्षेत्र में है। खासतौर से कार के दर्जनों मॉडल हर साल जारी हो रहे हैं। ये मॉडल रंगरूप और अत्‍याधुनिक सुविधाओं के अलावा कारों की रफ्तार में गजब की तेजी लिए हुए हैं।

अब दिक्‍कत यह आ रही है कि जिन फीचर्स के साथ कारें बनाकर बाजार में उतारी जा रही हैं, उनके लायक सड़कें भारत में मौजूद ही नहीं हैं। नव धनाढ्य वर्ग के पास इफरात से पैसा होने के कारण वे कुछ ही सेकंड में बिजली की गति पकड़ लेने वाली इन कारों को धडल्‍ले से खरीद रहे हैं। चूंकि ऐसी गाडि़यां स्‍टेटस सिंबल होने के साथ ही समाज में जबरदस्‍त आकर्षण का केंद्र हैं, इसलिए ऐसे परिवारों के बच्‍चे अपने दोस्‍तों के बीच शान बघारने के लिए इन गाडि़यों को लेकर सड़कों पर निकल रहे हैं। भले ही उनकी कार चलाने की उम्र न हो और भले ही उनके पास वांछित लायसेंस आदि भी न हो, लेकिन वे सड़कों पर इन वाहनों को अधिकतम रफ्तार से दौड़ाते हुए स्‍टंट कर रहे हैं। और इसी दिखावे के चक्‍कर में ये वाहन मौत का सामान बनकर सड़कों पर लोगों की जानें ले रहे हैं।

इसलिए सरकार को जितनी जल्‍दी हो सके, यह कानून अमल में लाना चाहिए,जिसमें इस बात का सख्‍त प्रावधान हो कि बिना पात्रता के यदि कोई व्‍यक्ति या नाबालिग बच्‍चा गाड़ी लेकर सड़क पर निकले तो उसके परिजनों को भी गुनहगार बनाया जाए। आखिर कैसे ये बच्‍चे बड़ी-बड़ी गाडि़यां लेकर सड़कों पर यमदूत बनकर घूम रहे हैं? कानूनन इन वाहनों को चलाने की इजाजत न होने के बावजूद कैसे उन्‍हें गाड़ी की चाबी हासिल हो रही है? ऐसे ‘अपराधियों’ को यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता।

निर्भया कांड को लेकर इस देश में लंबी बहस चल चुकी है कि गुनाह कितना भी संगीन क्‍यों न हो, यदि वह किसी नाबालिग ने किया है तो उसे वयस्‍कों वाली सजा दी जाए या नहीं। निर्भया जैसे कांड में बच्‍चों का शामिल होना एक अलग स्‍तर का मामला है, लेकिन नाबालिग बच्‍चों के द्वारा तेज रफ्तार वाहन लेकर निकलना और उन वाहनों से जानलेवा दुर्घटनाएं कर बैठना बहुत अलग मुद्दा है। इस मामले में बच्‍चों की ऐसे वाहनों तक पहुंच को रोकना मां बाप या परिजनों का काम है। यदि वे ऐसा नहीं कर पाते तो आपराधिक जिम्‍मेदारी उनकी भी तय होनी ही चाहिए। कुतर्क करने वाले कहेंगे कि बच्‍चा यदि चुपचाप गाड़ी लेकर निकल जाए तो क्‍या किया जा सकता है? लेकिन अधिकांश मामलों में बच्‍चा ऐसा तभी कर पाता है, जब मां बाप की उस पर नजर न हो या उसे अपने मन की करने की छूट न मिली हुई हो। वैसे यदि इसी कुतर्क को लागू करें तो कल को कोई बच्‍चा घर में रखी बंदूक या रिवॉल्‍वर लेकर निकल जाएगा और लगेगा गोलियां चलाने। तब भी क्‍या मां बाप कहेंगे कि हम क्‍या कर सकते हैं? जिस तरह छोटे बच्‍चे को आप इसलिए आग से दूर रखते है कि वह जल न जाए, उसी तरह आपको इन गाडि़यों से भी उन्‍हें दूर रखने का जतन करना ही होगा।

एक बात और, नए कानून में यह भी प्रावधान होना चाहिए कि यदि किसी बच्‍चे ने मां-बाप की नजर चुराकर या और किसी भी तरीके से गाडी हासिल कर ली और उसके हाथ से कोई हादसा हो गया तो उसे आजीवन कोई भी वाहन चलाने का लायसेंस न दिया जाए। आप नाबालिग को और कोई सजा तो नहीं दे सकते लेकिन ऐसा सबक तो दे सकते हैं जो उसे जिंदगी भर यह अहसास दिलाता रहे कि उसने गलती की थी। और लायसेंस न देने की सजा ज्‍यादती लगती हो तो, सड़क दुर्घटना में किसी की जान ले लेने वाले नाबालिगों को सजा के तौर पर, बालिग होने के बावजूद, लायसेंस पांच या दस साल बाद दिया जाए। जब तक ऐसी सख्‍ती नहीं होगी ये रईसजादे सड़कों पर लोगों को कुचलते रहेंगे।

गिरीश उपाध्‍याय

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