रामप्रकाश त्रिपाठी
पंडित जसराज संगीत के कितने बड़े साधक थे, उन्होंने संगीत में शब्द की पुनर्प्रतिष्ठा कैसे की, मेवाती घराने को नामचीन घरानों की श्रेणी में लाने के लिए उन्होंने कितनी मेहनत की और कितने शिष्य तैयार किए, संगीत में क्या मुकाम हासिल किया, इस पर बहुत कहा सुना जाएगा। भोपाल में मेवाती घराने का जन्म हुआ। घराने के आदि-पुरुष घग्गे नजीर खान साहब भोपाल के राज दरबार में हुआ करते थे। वे ग्वालियर घराने के संस्थापक हद्दू हस्सू खान के दामाद थे। उन्होंने अपनी मुंह बोली बहन के बेटों को मांगा और उन्हें संगीत में दीक्षित किया। क्योंकि यह परिवार हरियाणा के मेवात इलाके से ताल्लुक रखता था, इसलिए घराने का नाम मेवाती घराना पड़ा।
मेरा संगीत से गहरा लगाव है, लेकिन शायद ही मुझ जैसा कोई बेसुरा मिले। पूरे जीवन में एक सुर ठीक से न लगा पाना ही मेरा संगीत पराक्रम माना जाएगा। संगीत का भावुक श्रोता शायद मैं अच्छा हूं। मेरा जसराज जी से रिश्ता संगीतेतर ही ज्यादा रहा, बावजूद इसके कि मैं उनकी गायन शैली का प्रशंसक था। बाद में भोपाल में संगीत कला संगम के जरिए यह मैत्री प्रगाढ़ हो गई। मैत्री भाव उनका ही था। तब वे होटल में ठहरने के बजाय राजेंद्र कोठारी के बेतवा अपार्टमेंट स्थित आवास में ठहरा करते थे। पंडित जी पाक कला के विशेषज्ञ थे। 10-10 परतों के पराठे बना कर उन्होंने हमें खिलाए हैं। पर यहां भी हमारी चर्चा संगीतेतर विषयों पर ही ज्यादा होती थी, क्योंकि संगीत के मामले में अपना हाथ तंग था और पंडित जसराज के सामने तो हमारी स्थिति ऊंट पहाड़ के नीचे वाली हो जाती थी।
उन दिनों खालिस्तान आंदोलन का जोर था। संगीत कला संगम ने गुरु ग्रंथ साहब की शिक्षाओं पर केंद्रित अपने परंपरा पर्व की श्रृंखला में पांच दिनी कार्यक्रम की कल्पना की। योजनाकार राजेंद्र कोठारी थे। राजेश जोशी, शशांक, अशोक जैन भाभा और मैं इसकी परिकल्पना में शामिल हुए। हमें आतंकवादी समर्थक सिख साहिबान ने धमकी दी कि गुरु ग्रंथ साहब में हाथ लगाने की हिम्मत तुमने कैसे की। पर भोपाल के गुरुद्वारों के ग्रंथियों ने हमारी मदद की।
पंडित जसराज, बालमुरलीकृष्ण, उस्ताद गुलाम मुस्तफा, हफीज अहमद, किशोरी अमोनकर ने ग्रंथ साहब के पदों को गाकर भोपाल के सिख समुदाय का दिल जीता। जब पंडित जसराज गा रहे थे तो एक बुजुर्ग सिख करुणा के उन स्वरों से भावविभोर होकर अविरल आंसू बहा रहा था। वह बेहद गरीब था और अपने उपार्जित धन से जीवन यापन के लिए प्रतिबद्ध। अचानक वह उठा, मंच पर गया, अपनी टेंट में खुंसे हुए चार पांच रुपये निकाले और जसराज जी के सामने मत्था टेकते हुए उन्हें भेंट किए। पंडित जसराज के भी आंसू निकल आए। गाना रोक कर उन्होंने रुंधे कंठ से कहा कि यह सम्मान मेरे लिए भारत रत्न से कम नहीं है। यह नोट मैं मढ़वाकर अपने अवॉर्ड्स और अभिनंदन पत्रों के बीच टांगूंगा। यह भी एक चेहरा था जसराज जी का…
भोपाल गैस कांड को साल भर नहीं हुआ था। साल भर भोपाल गमजदा था। कई उत्सव और मनोरंजक कार्यक्रम स्थगित थे। संस्कृति विभाग के नाट्य समारोह का भीषण विरोध हुआ था। इसी बीच स्पिक मैके के कार्यक्रम में पंडित जी भोपाल आए। महारानी लक्ष्मीबाई कन्या महाविद्यालय में उनका गायन था। हमेशा की तरह वे कोठारी जी के यहां ठहरे। हमने आपत्ति की कि आपको नहीं आना था। भोपाल अभी नाच गाने या मनोरंजन के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि हम तो ईश भजन गाते हैं। यह तो आत्मा की शांति के लिए भी होता है। हमारे यहां तो करुण भी एक रस है। यह मनोरंजन नहीं शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम है। आने का प्रायश्चित मैं यह कर सकता हूं कि मुझे जो मानदेय और एयर फेयर मिला है वह मैं भोपाल गैस पीड़ित सहायता कोष में दे दूंगा। उन्होंने कालेज में गैस कांड के मृतकों की श्रद्धांजलि के रूप में ही गाया और पैसा भी संदर्भित कोष में दिया। इस यात्रा का भार भी स्वयं ही उठाया। यह पंडित जसराज की संवेदना का स्तर था।
तो मैं चर्चा कर रहा था भावनात्मक एकता के रागपर्व गुरु ग्रंथ साहब की। इसके बौद्धिक संवाद में जीवन सिंह उमरानंगल, रमेश कुंतल मेघ, प्रभाष जोशी, राजेंद्र माथुर, इंद्र कुमार गुजराल, करतार सिंह दुग्गल के अलावा स्थानीय वक्ता भी शामिल थे। पंडित जी ने सब को सुना। क्योंकि वे मूलतः हरियाणा से थे इसलिए सिक्खी और सिख पंथ की गरिमा से भलीभांति वाकिफ थे। इन वक्ताओं का मूल स्वर यही था कि समस्या के समाधान में सामाजिक दाय कमजोर है। यह भी कि जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। बाद में पंडित जी बोले कि मुझे लग रहा है मैं भी अपराधी हूं। कल तक तो पंजाब हरियाणा एक ही थे। मेरा देश (लौकिक अर्थ में) में जल रहा है और उसे बुझाने के लिए मैं क्या कर रहा हूं? वे बहुत बेचैन लग रहे थे।
फिर उन्होंने कहा कि देखो, हम केवल गा सकते हैं। तुम लोग कुछ ऐसा कार्यक्रम बनाओ कि हम पंजाब में जगह-जगह जाएं और केवल गाएं। वह भी गुरबाणी के शब्द। मुंबई जाकर उन्होंने फोन करके दबाव बनाया और पंजाब की संगीत यात्रा की बात की। अशोक जैन भाभा,शशांक तथा अरुण पाठक ने इसे खतरनाक कदम बताया, आत्मसुरक्षा की दृष्टि से। पर पंडित जी जिद पर थे। राजेंद्र भाई ने इस योजना को उस्ताद अमजद अली से साझा किया। वह भी इसके लिए तैयार हो गए।
पंडित जी का कहना था कि मरने से क्या डरना। हम कोई अमरौती खाकर थोड़े ही आए हैं। एक दिन तो मरना ही है। अगर देश की एकता और सामाजिक सद्भाव के लिए मरे तो इससे अच्छा क्या है। संगीत का तो पता नहीं, पर ऐसे मरे तो शायद इतिहास में अमर हो जाएं। यह वे परिहास में नहीं भावना के साथ पूरी गंभीरता से कह रहे थे। यह बात राजेंद्र कोठारी ने अमजद भाई को बताई। वह हंसे और बोले पंडित जी को कहो कि उनके साथ देश के लिए शहीद होने को एक सरोद वाला भी तैयार है।
मैं जनवादी लेखक लेखक संघ की मीटिंग में दिल्ली जा रहा था। राजेंद्र बोले कि वहां कोई सहयोगी लोग मिलें तो देखना। इत्तेफाक से विट्ठल भाई पटेल हाउस के गलियारे में सफदर हाशमी मिल गए। मित्र थे और जन नाट्य संघ चला रहे थे। उन्हें पंडित जी और अमजद भाई की बात बताई तो वे उत्साहित हुए। बोले एक्सीलेंट। रूट चार्ट और टीम हम तैयार कर देंगे। दो ट्रक भी ले लेंगे जिन पर फोल्डिंग मंच की लाइट माइक के साथ व्यवस्था होगी। उन्होंने खड़े-खड़े एक कागज पर मंच की ड्राइंग भी बना दी।
मैंने संकोच से कहा कि शर्त यह है कि कोई भाषण या मंचीय संवाद नहीं होगा। सफदर बोले उसकी जरूरत क्या है? नानक साहब का संदेश, जो ग्रंथ साहब में है, उसके बाद किसी भाषण-वाषण की जरूरत ही कहां रह जाती है? उन्होंने साथ ही कहा कि अप्रैल तक रुको हमें कुछ काम करने हैं। चुनाव के बाद कार्यक्रम पक्का समझो। हम सब बहुत उत्साहित हुए और पंडित जी गदगद। पर शायद नियति को यह मंजूर नहीं था। साहिबाबाद में नाटक करते हुए सफदर पर हमला हुआ और वे शहीद हो गए। हम सब अवसाद में चले गए। संगीत यात्रा धरी रह गई।
सफदर की याद में सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट ‘सहमत’ के नाम से बना जो सांप्रदायिक एकता और सद्भाव के लिए प्रतिबद्ध हुआ। इसने अयोध्या में राम घाट पर ‘हम सब अजुध्या’ नामक प्रदर्शनी लगाई जिसमें कंब रामायण के प्रसंग पर बहुत विवाद हुआ। वह अलग प्रसंग है। परंतु जब पंडित जसराज को अयोध्या में गाने का निमंत्रण मिला तो उन्हें सफदर याद थे। उनकी स्मृति में बने ट्रस्ट के आयोजन का विवाद भी याद रहा होगा। उन्होंने वहीं से राजेंद्र कोठारी को फोन लगाया और पूछा गुरु ग्रंथ साहब के पद के अलावा और क्या गाऊं जिससे समरसता का संदेश जाए। राजेंद्र ने सुझाया पंडित जी ‘मेरो अल्लाह मेहरबान’ वाली बंद सुनाइए। पंडित जसराज ने उस तनाव भरे माहौल में वही गाया। बाद में बोले -संतन को कहां सीकरी सों काम-
ऐसे प्यारे और सद्भावी इंसान थे रसराज-जसराज…
भोपाल और पंडित जसराज
0 पंडित जसराज को पहला बड़ा सम्मान ‘कला रत्न’ भोपाल की संगीत कला संगम नाम की संस्था ने उस्ताद विलायत खान (सितार वादक), पंडित जयदेव (संगीत निर्देशक) और यामिनी कृष्णमूर्ति (शास्त्रीय नृत्य) के साथ प्रदान किया था। वह इसे ‘जन सम्मान’ की तरह प्रस्तुत करते थे।
0 पंडित जसराज के मेवाती घराने पर केंद्रित पहला घराना समारोह भोपाल में हुआ था जिसमें घराने को बड़ी पहचान मिली।
0 मेवाती घराने का जन्म भोपाल में हुआ था, जिसे यहां के दरबार में रहे घग्गे नजीर खान साहब ने अपनी मुंह बोली बहन के बेटे को पहला गंडा बंद शिष्य बना कर शुरू किया।
0 पंडित जसराज भोपाल के भारत भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे।
0 स्पिक मैके के शैक्षणिक कार्यक्रम में आए पंडितजी ने उस समय अपना सारा मानदेय भोपाल गैस पीड़ित कोष में दान कर दिया था।