बेसुरे नीतीश की राजनीति

राकेश अचल

सत्ता का समाजवादी चोला दागदार करने वाले नीतीश कुमार के सुर अचानक ही बेसुरे हो गए हैं। वे और उनकी पार्टी हालाँकि इस समय एनडीए में हैं लेकिन नीतीश कुमार ने पेगासस जासूसी काण्ड की जांच की मांग का समर्थन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की नींद में खलल डाल दिया है। भाजपा से गलबहियां करने से पहले नीतीश बाबू को सुशासन बाबू कहा जाता था।

देश की संसद पिछले एक हफ्ते से पेगासस मामले पर लगभग ठप्प है। विपक्ष लगातार सरकार पर आक्रामक है। विपक्ष के हंगामे और शोर-शराबे में अब नीतीश कुमार का भी स्वर मिल गया है। नीतीश ने इस मामले की जांच कराए जाने और संसद में इस पर चर्चा होने की बात कही है। हालांकि उनके इस बयान पर राजद सांसद मनोज झा ने कहा,  मैं उनसे अपनी मांग पर कायम रहने का अनुरोध करूंगा। मुझे उम्मीद है कि वह दबाव में नहीं आएंगे और यह नहीं कहेंगे कि मेरे बयान का गलत मतलब निकाला गया।

नीतीश बाबू एक जासूसी मामले पर ही नहीं अपितु देश में जातीय जनगणना और किसान आंदोलन पर भी एनडीए के सुर से अलग अपनी ढपली बजाते नजर आ रहे हैं। नीतीश कुमार अपने ही साथियों को चौंकाने के लिए ऐसा करते आये हैं। वे किसी के भरोसेमंद साबित नहीं हुए हैं। लगता है कि भाजपा के साथ भी उन्हें अब असुविधा होने लगी है,  और शायद नीतीश बाबू यूपी चुनावों से पहले भाजपा से फिर कोई सौदा करने की जुगाड़ में हैं।

सत्तर साल के नीतीश बाबू को सियासत में तीन दशक हो गए हैं। जयप्रकाश नारायण की समग्र क्रांति के वे वैसे ही उत्पाद हैं जैसे अन्ना हजारे के आंदोलन के उत्पाद आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल हैं। नीतीश बाबू ने बिहार विधान सभा से लेकर देश की संसद तक का सफर तय किया है। वे अनेक बार केंद्रीय रेल मंत्री रहे और अब पांचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री हैं। लगता है अब वे आम चुनाव से पहले एक बार फिर केंद्रीय राजनीति में आने का मन बना रहे हैं।

नीतीश कुमार के तेवर बदलने से भाजपा पर एक साथ कोई पहाड़ तो नहीं टूटेगा लेकिन भाजपा के अभेद्य दुर्ग की ईंटें खिसकने जरूर लगेंगी। नीतीश को उनके साथी प्रधानमंत्री का ‘मटेरियल’ मानते हैं। अब प्रधानमंत्री होने के लिए नेतृत्व क्षमता नहीं उसका मटेरियल होना जरूरी है, जैसे कि आज के प्रधानमंत्री जी में यही मटेरियल देखकर आरएसएस उन्हें गुजरात से रातों रात दिल्ली ले आया था।

देश की मौजूदा परिस्थिति में बिखरे हुए विपक्ष के पास पीएम मटेरियल का घनघोर संकट देखकर नीतीश बाबू के मन में एक बार फिर मुमकिन है कि प्रधानमंत्री बनने का सपना अंगड़ाई ले रहा हो। इस देश में प्रधानमंत्री बनने के लिए अब किसी का नेता होना कोई शर्त नहीं रह गयी है,  अतीत में ऐसे बहुत से नेता प्रधानमंत्री बन गए जिनमें पीएम मटेरियल था ही नहीं,  लेकिन उनके नसीब में प्रधानमंत्री बनना था सो वे बने। लगता है कि किसी ज्योतिषी ने नीतीश बाबू को बता दिया है कि उनका नसीब भी उन्हें मुख्यमंत्री पद से उठाकर सीधे प्रधानमंत्री के पद पर बैठाने के अनुकूल है।

आप पीछे मुड़कर देखें तो देश के 14 प्रधानमंत्रियों में से अनेक ऐसे हैं जो सबको चौंकाकर प्रधानमंत्री बने। ऐसे लोगों में आप गुलजारी लाल नंदा, इंद्रकुमार गुजराल, एचडी देवगौड़ा, चंद्रशेखर और वीपी सिंह का नाम शुमार कर सकते हैं। चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई में सब कुछ था, लेकिन वे यादगार प्रधानमंत्री साबित नहीं हो सके। बहरहाल नीतीश बाबू भी येन केन इन्हीं चौमासा प्रधानमंत्रियों की सूची में शामिल होने का ख्वाब देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि वे एनडीए में रहते हुए सरकार के खिलाफ बोलकर विपक्ष में अपने लिए एक बार फिर से जगह बना लेंगे।

इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी की आंधी का सामना करने के लिए विपक्ष परेशान है। उसकी सूची में एक शरद पवार हैं, दूसरी ममता बनर्जी हैं और लगता है कि अब नीतीश बाबू भी इस सूची में शामिल होना चाहते हैं। जाहिर है कि नीतीश के मन में इस समय भाजपा और प्रधानमंत्री जी को लेकर कोई न कोई खोट तो जरूर है, अन्यथा वे अचानक संसद के चलते अपने सुर न बदलते। लगता है कि वे पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपना पूरा हिस्सा न मिलने से परेशान हैं।

नीतीश संभवत: सोच रहे हैं कि अपने हिस्से का एक पौंड गोश्त मांगने का यही सबसे उचित समय है, क्योंकि इस समय केंद्र सरकार असम-मिजोरम संघर्ष और विभिन्न भाजपा शासित राज्यों में पार्टी के भीतर चल रहे असंतोष को लेकर उलझन में है। केंद्र को आने वाले दिनों में यूपी समेत कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों का सामना करना है। ऐसे में भाजपा नहीं चाहेगी कि एनडीए में बिखराव हो। इस बिखराव को रोकने के लिए नीतीश को साधना भाजपा की विवशता हो सकती है।

भारतीय राजनीति में कम ही ऐसे नेता हैं जो नीतीश बाबू की तरह रंग बदलने में माहिर हैं। नीतीश बाबू में क्षमता है कि वे किसी भी दल के साथ काम कर सकते हैं और कभी भी किसी भी दल के खिलाफ खड़े होकर बोल सकते हैं। सत्ता उनकी प्राथमिकता में रहती है और इसके लिए वे कोई भी कीमत अदा करने के लिए हर समय तैयार रहते हैं। मौजूदा परिस्थितियां संकेत कर रही हैं कि आने वाले दिन राजनीति में उठापटक के हैं। नीतीश बाबू भी मौजूदा प्रधानमंत्री की ही तरह संत पुरुष हैं। उनकी पत्नी का निधन हो चुका है और एक बेटा निशांत है जिसके बारे में लोग ज्यादा जानते नहीं हैं। यानि नीतीश बाबू भी चौकीदारी के लिए अपने आपको एकदम फिट मानते हैं।(मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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