Operation Sindoor : सोफिया कुरैशी पर अपमानजनक टिप्पणी
Operation Sindoor

Operation Sindoor : विशेष टिप्पणी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार रात अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का श्रेय भारतीय सेना को देते हुए उसे देश की नारी शक्ति को समर्पित किया था। यह एक ऐतिहासिक क्षण था जब राष्ट्र ने पहली बार किसी सैन्य अभियान को नारी शक्ति के नाम किया। देश की दो बहादुर बेटियाँ कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह सिर्फ भारत ही नहीं, समूची दुनिया में आज भारत की सैन्य, सामाजिक और सांस्कृतिक शक्ति की प्रतीक बन चुकी हैं लेकिन इस गौरव के ठीक 24 घंटे के भीतर, एक ऐसा कृत्य घटा, जिसने उस गर्व को शर्म में बदलने का दुस्साहस कर डाला।

मध्यप्रदेश के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह ने एक सार्वजनिक मंच से कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर जो अशोभनीय और अपमानजनक टिप्पणी की, वह सिर्फ एक अधिकारी का नहीं, सम्पूर्ण नारी सम्मान और राष्ट्रीय स्वाभिमान का अपमान है। यह शर्म की बात है कि जिन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में अपने शौर्य से भारत के भाल पर विजय का तिलक लगाया, उन्हीं के विरुद्ध सार्वजनिक मंचों से ओछे शब्दों की बौछार कर दी गई। यह चूक नहीं, अपराध है। यह तुच्छता नहीं, सुनियोजित राजनीतिक निर्लज्जता है।

सत्ता की छांव में बैठकर नारी गरिमा को लांघने में कोई संकोच नहीं किया

विजय शाह का यह पहला विवाद नहीं है। उनके पुराने बयानों और आचरण को इंटरनेट पर ढूंढना कठिन नहीं है। इससे पहले भी उन्होंने सत्ता की छांव में बैठकर नारी गरिमा को लांघने में कोई संकोच नहीं किया। उन्होंने तो उस मुख्यमंत्री की पत्नी तक को नहीं बख्शा था, जिनके मंत्रिमंडल में और जिनके अधीन रहते हुए वे सत्ता का सुख भोग रहे थे।

क्या अब मंचों से प्रधानमंत्री की भी खिल्ली उड़ाई जाएगी?

इस बार विजय शाह ने न केवल एक फौजी अधिकारी का अपमान किया, बल्कि उस प्रधानमंत्री के सम्मान का भी मज़ाक बनाया, जिनके नेतृत्व में यह गौरवपूर्ण अभियान चला। तो क्या अब मंचों से प्रधानमंत्री की भी खिल्ली उड़ाई जाएगी? क्या देशभक्त महिलाओं को मंचों पर शब्दों से निर्वस्त्र करना राजनीतिक अभिव्यक्ति का हिस्सा बन गया है?
हमें तय करना होगा कि एक मंत्री की कुर्सी बड़ी है, या एक राष्ट्र की अस्मिता?
हमें चुनना होगा कि राजनेताओं की मनमानी चलेगी, या देश की बेटियों का स्वाभिमान?

भविष्य में और बड़े नैतिक दिवालिएपन का रास्ता

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कई अवसरों पर अपने मंत्रिमंडल को अनुशासन, नैतिकता और लोकलाज का पाठ पढ़ाया है। लेकिन अब यह शिक्षा पुस्तकों और भाषणों से आगे बढ़कर सख़्त कार्रवाई में बदलनी चाहिए। हमेशा की तरह इस बार भी ‘बातों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया’ जैसा घिसा-पिटा तर्क सामने आया है, यदि इसके चलते मामले को रफा दफा करने की कोशिश हुई तो यह भविष्य में और बड़े नैतिक दिवालिएपन का रास्ता खोलेगा।

मंत्रिमंडल में एक क्षण भी बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं

इस घटना के बाद विजय शाह को मंत्रिमंडल में एक क्षण भी बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। यह सिर्फ नारी गरिमा की रक्षा का प्रश्न नहीं है, यह भारत के सैन्य सम्मान, प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा और राष्ट्रीय आत्मसम्मान की रक्षा का प्रश्न है। यदि आज हमने चुप्पी साध ली, तो कल किसी और बेटी को इसी तरह सरेआम अपमानित किया जाएगा और हम सिर्फ शर्मिंदा होकर रह जाएंगे।

राष्ट्र की आत्मा का घाव

‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर भारत ने आज दुनिया के सामने अपना मस्तक गर्व से ऊंचा किया है। लेकिन अगर ऐसे नेता इस गर्व को अपमान में बदलते रहेंगे, तो यह न केवल नारी शक्ति का अपमान होगा, बल्कि राष्ट्र की आत्मा का भी घाव होगा। अब फैसला सत्ता का नहीं, समाज का होना चाहिए। विजय शाह को मंत्री पद से हटाया जाना ही राष्ट्र और नारी शक्ति के सम्मान की सच्ची सेवा होगी

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