बुधवार को एक बहुत रोचक खबर ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। खबर यह थी कि चीन की ‘बाहुबली’ कही जाने वाली फिल्म ‘असुरा’ वहां रिलीज होते ही बुरी तरह फ्लॉप हो गई। सिनेमाघरों में यह फिल्म इतनी बुरी तरह पिटी कि निर्माताओं ने इसे शुरुआती सप्ताह में ही परदे से उतारने का फैसला कर लिया।
अपने ओपनिंग वीकेंड पर यह फिल्म सिर्फ 50 करोड़ रुपए यानी चीनी मुद्रा के हिसाब से पांच करोड़ युआन की कमाई ही कर सकी। जबकि इसकी लागत करीब 760 करोड़ रुपए यानी 75 करोड़ युआन बैठी थी। इसे चीन में बनी अब तक की सबसे महंगी फिल्म बताया गया था। इस हिसाब से ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं आ सका।
खबरें कहती हैं कि अलीबाबा पिक्चर्स की स्पेशल इफेक्ट वाली फैंटसी फिल्म ‘असुरा’ बौद्ध पौराणिक कथा से प्रेरित है, जो एक चरवाहे द्वारा पौराणिक साम्राज्य को हमले से बचाने की कहानी के इर्द-र्गिद घूमती है। रविवार को फिल्म के ऑफिशियल सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट के जरिए यह जानकारी दी गई कि फिल्म को रात 10 बजे तक सभी सिनेमाघरों से हटा लिया जाएगा।
इस पोस्ट में कहा गया कि ‘हम उन सभी लोगों से माफी चाहते हैं जो इस फिल्म को देखना चाहते थे, लेकिन उन्हें देखने का मौका मिल न सका।’ बताया गया है कि इस फिल्म को बनाने में 6 साल लगे थे। अत्याधुनिक तरीके से बनाए गए इसके खास विज़ुअल इफेक्ट्स पर काफी अधिक धन खर्च किया गया था। फिल्म में करीब 141 मिनिट के स्पेशल इफेक्ट्स वाले 2400 सीन थे।
चीन के सबसे प्रभावशाली यूज़र रिव्यू प्लैटफॉर्म Douban पर ‘असुरा’ को 3.1 रेटिंग दी गई थी। कहा जा रहा है कि फिल्ममेकर्स इस फिल्म पर दोबारा काम कर, इसमें सुधार करके इसे फिर से रिलीज करने के बारे में सोच रहे हैं। लेकिन अगर उसके बावजूद यह फिल्म अच्छा कारोबार नहीं कर सकी तो 10.5 करोड़ डॉलर के नुकसान के साथ यह सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी असफल फिल्मों में शामिल हो जाएगी।
इसकी तुलना में यदि हम एस.एस. राजामौली द्वारा निर्देशित अपनी सुपर हाईटेक फिल्म ‘बाहुबली’ को देखें तो उसके पहले भाग की लागत 180 करोड़ रुपए थी और उसने बॉक्स ऑफिस पर 650 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार किया, जबकि फिल्म के दूसरे भाग को बनाने में 250 करोड़ खर्च हुए थे और ब्लॉकबस्टर साबित हुई इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर करीब 1800 करोड़ रुपए बटोरे।
हमारे यहां चीन में निर्मित सामग्री की गुणवत्ता को लेकर अकसर मजाक चलता रहता है और किसी भी सामान की गुणवत्ता घटिया होने पर उसके ‘चीनी माल’ होने का एक मुहावरा सा चल पड़ा है। उसी संदर्भ में बात करें तो भारतीय फिल्में उस चीनी माल की तुलना में कई गुना बेहतर साबित हुई हैं और यह हमारे फिल्म उद्योग के लिए भी गर्व की बात है।
एक रोचक तथ्य यह भी है कि हमारी फिल्मों ने न सिर्फ अपने देश में बल्कि दुनिया में नाम और नामा दोनों कमाया है। अगर चीन की ही बात करें तो आमिर खान की दंगल को देखने वहां लोग टूट पड़े थे और उस फिल्म ने वहां करीब 1200 करोड़ रुपए का रिकार्ड कारोबार किया था। भारतीय बाहुबली पार्ट-2 वहां ज्यादा तो नहीं चली थी, लेकिन उसके बावजूद उसने वहां करीब 80 करोड़ रुपए बटोर लिए थे। यानी ‘असुरा’ से 30 करोड़ ज्यादा…।
दरअसल भारतीय फिल्म उद्योग पैसे, तकनीक और कला तीनों के लिहाज से दुनिया में अपना स्थान बनाता जा रहा है। वैसे तो दुनिया में फिल्म उद्योग के नाम पर हॉलीवुड का ही बोलबाला है, फिर चाहे फिल्मों के विषय चयन का मामला हो या तकनीक के इस्तेमाल का या फिर कुल कारोबार का… हमारा बॉलीवुड कहीं भी कमजोर नहीं बैठता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हॉलीवुड का कुल कारोबार जहां 70 हजार करोड़ रुपए का है, वहीं हमारे बॉलीवुड का कारोबार लगभग 16 हजार करोड़ का। लेकिन दुनिया के फिल्म उद्योग में हॉलीवुड के बाद बॉलीवुड का नाम चलता है। अब तो हमारे यहां के कई कलाकारों की मांग हॉलीवुड में होने लगी है जिनमें अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण जैसे नाम शामिल हैं।
ऐसे में हमारी बाहुबली और चीनी बाहुबली की तुलना करते हुए मेरे मन में कई खयाल आए। मैं सोचता रहा कि आखिर कौनसी वजह है कि बाहुबली की तर्ज पर चीन में फिल्म बनती है तो वह सुपर फ्लॉप हो जाती है और हमारी बाहुबली को देखने के लिए लोग टूट पड़ते हैं। ऐसा दुनिया में शायद ही कभी हुआ हो जब सिर्फ एक सवाल किसी आने वाली फिल्म के ब्लॉक बस्टर होने की वजह बन गया हो। और वह सवाल था- ‘’कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?’’
मेरे हिसाब से हमारी ‘बाहुबली’ की सफलता में इस सवाल और इसके पीछे छिपी हमारी मनोवृत्ति का बहुत बड़ा हाथ है। जिस तरह फिल्म में कटप्पा बाहुबली की पीठ में तलवार भोंकता है उसी तरह हमारे यहां सिंहासन या राजनीति की सीढि़या भी अकसर पीठ में छुरा भोंक कर ही चढ़ी जाती हैं। गुलाम भारत से लेकर आजाद भारत तक हमारे समाज की कोई मनोवृत्ति यदि आज तक नहीं बदल पाई तो वह यही है…
हमारे यहां किसी की पीठ सुरक्षित नहीं है और दुर्भाग्य से पीठ के पीछे खड़े रहने वाले ज्यादातर लोगों के हाथों में छुरा है… अचानक पीठ पर हुए वार से लहूलुहान व्यक्ति हो या समाज, भौचक आंखों से मानो यही सवाल पूछता नजर आता है कि ‘कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा…’ विडम्बना यह है कि रियल लाइफ में ऐसा कोई सीक्वल नहीं बनता जिसमें इस सवाल का जवाब छिपा हो…
मुझे लगता है हम लहूलुहान पीठ को ढोते रहने के लिए अभिशप्त हैं… चूंकि पीठ के पीछे खड़े रहने वालों की तादाद हमारे पास ज्यादा है और लहूलुहान पीठों को देखने में हम हमेशा से रुचि रखते आए हैं, शायद इसीलिए हमारे यहां की बाहुबली सफलता के झंडे गाड़ देती है और चीन की बाहुबली औंधे मुंह गिर जाती है…