अजी ! भागकर अब कहाँ जाइयेगा?

राकेश अचल

आप जितना डरेंगे उतना ही आपको डराया जा सकता है और इस डर को प्रामाणिक बनाने के लिए बाकायदा शोध भी किये जा रहे हैं। अब अमेरिका के सांता बारबरा स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधार्थी कह रहे हैं कि कोरोना से बचने के लिए दो गज की दूरी से काम चलने वाला नहीं है, अर्थात कोरोना छह फीट की दूरी तो छोड़िये 20 फीट की दूरी तक मार कर सकता है। यानि अब सोशल डिस्टेंसिंग दो गज के बजाय छह गज की रखना पड़ेगी।

शोधार्थियों के इस अध्ययन में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए एक-दूसरे से छह फीट की दूरी बनाने का नियम नाकाफी है, क्योंकि यह जानलेवा वायरस छींकने या खांसने से करीब 20 फीट की दूरी तक जा सकता है। वैज्ञानिकों ने विभिन्न वातावरण की स्थितियों में खांसने, छींकने और सांस छोड़ने के दौरान निकलने वाली संक्रामक बूंदों के प्रसार का मॉडल तैयार किया है और पाया कि कोरोना वायरस सर्दी और नमी वाले मौसम में तीन गुना तक फैल सकता है।

इन शोधार्थियों के मुताबिक, छींकने या खांसने के दौरान निकली संक्रामक बूंदें विषाणु को 20 फीट की दूरी तक ले जा सकती हैं। लिहाजा, संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मौजूदा छह फीट की सामाजिक दूरी का नियम अपर्याप्त है। पिछले शोध के आधार पर उन्होंने बताया कि छींकने, खांसने और यहां तक कि सामान्य बातचीत से करीब 40 हजार बूंदें निकल सकती हैं। ये बूंदें प्रति सेकंड में कुछ मीटर से लेकर कुछ सौ मीटर दूर तक जा सकती हैं।

पिछले अध्ययन को लेकर वैज्ञानिकों ने कहा कि बूंदों की वायुगतिकी, गरमी और पर्यावरण के साथ उनके बदलाव की प्रक्रिया वायरस के प्रसार की प्रभावशीलता निर्धारित कर सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि श्वसन बूंदों के माध्यम से कोविड-19 का संचरण मार्ग कम दूरी की बूंदें और लंबी दूरी के एरोसोल कणों में विभाजित है। बड़ी बूंदें गुरुत्वाकर्षण के कारण आमतौर पर किसी चीज पर जम जाती हैं जबकि छोटी बूंदें, एरोसोल कणों को बनाने के लिए तेजी से वाष्पित हो जाती हैं, ये कण वायरस ले जाने में सक्षम होते हैं और घंटों तक हवा में घूमते हैं। उनके विश्लेषण के मुताबिक, मौसम का प्रभाव भी हमेशा एक जैसा नहीं होता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि कम तापमान और उच्च आर्द्रता, बूंदों के जरिए होने वाले संचरण में मददगार होती है, जबकि उच्च तापमान और कम आर्द्रता छोटे एरोसोल-कणों को बनाने में सहायक होते हैं। वैज्ञानिकों ने लिखा है कि रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) द्वारा अनुशंसित छह फीट की दूरी वातावरण की कुछ स्थितियों में अपर्याप्त हो सकती है, क्योंकि ठंडे और आर्द्र मौसम में छींकने या खांसने के दौरान निकलने वाली बूंदें छह मीटर (19.7 फीट) दूर तक जा सकती हैं।

अध्ययन में बताया गया है कि गरम और शुष्क मौसम में यह बूंदें तेजी से वाष्पित होकर एरोसोल कणों में बदल जाती हैं जो लंबी दूरी तक संक्रमण फैलाने में सक्षम होते हैं। ये छोटे कण फेफड़ों में अंदर तक प्रविष्ट हो सकते हैं। मास्क लगाने से एरोसोल कण के जरिए वायरस का प्रसार होने की संभावना प्रभावी रूप से कम होती है।

अब इस नए शोध के बाद तो मैं यही कह सकता हूँ कि- ‘’अजी! भागकर अब कहाँ जाइयेगा, जहां जाइयेगा, हमें पाइयेगा…।‘’ अब कोरोना भगवान की तरह कण-कण में बस गया है। इस विश्वव्यापी और अविनाशी कोरोना को किसी वैक्सीन के बजाय इसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर ही मनाया जा सकता है। कम से कम हमारे देश में तो कोरोना के मंदिर बनाये जा सकते हैं।

हमारे यहां आप किसी का भी मंदिर बना लीजिये भक्त और पुजारी तो मिल ही जाते हैं और जहां ये होते हैं वहां माल तो होता ही है। हमारे नेता कहते हैं कि हमें हर विपदा को अवसर के रूप में लेना चाहिए, वे शायद सच कहते हैं। हमको भी कोरोना के लिए रोने के बजाय हंसना-गाना चाहिए, उसकी स्तुतियां, आरतियां, चालीसे बनाकर काम चलाना चाहिए।

मेरा सुझाव तो ये है कि कोरोना संक्रमित लोग अब कोरोना नगर बना लें, जब हर घर में कोरोना पहले से होगा तो संक्रमण फैलने का खतरा रहेगा ही नहीं। कोरोना स्पेशल ट्रेनें, बसें चलाई जाना चाहिए, कोरोना कोला पेय बनना चाहिए, कोरोना तेल के लिए भी काफी गुंजाइश है।

कोरोना वैद्य, हकीम और डाक्टर भी खूब चलेंगे। कोरोना नेताओं की भी खूब पूछ-परख होगी। कोरोनाकाल हिंदी साहित्य के काल खंड में सबसे महत्वपूर्ण हो जाएगा, इस काल के साहित्यकारों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाएगा।

इसलिए हे मित्रो! भयभीत मत होइए, सोशल डिस्टेंस को लगातार बढ़ाते जाइये, किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा, अगर बिगड़ेगा भी तो अंतत:कोरोना का ही बिगड़ेगा। आदमी यानि मनुष्य जाति तो पहले ही बिगड़ चुकी है।

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टीम मध्‍यमत

 

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