गिरीश उपाध्याय
जिस बात की आशंका थी वही हो रहा है। मैंने 26 फरवरी को इसी कॉलम में लिखा था कि ‘’कोरोना के महासंकट से उबर रहे भारत पर साल भार बाद एक बार फिर वही खतरा मंडराता दिख रहा है। सबक न सीखने की हमारी आत्मघाती लापरवाही ने कोरोना को एक बार फिर सिर उठाने का मौका दे दिया है। कई राज्यों में फिर वैसे ही हालात बनने लगे हैं जो सरकारों और प्रशासन को लॉकडाउन जैसे कदम उठाने पर मजबूर कर सकते हैं। और यह सब इस बार चुपचाप नहीं हुआ है।…’’
‘’…हम इतने नादान नहीं है कि पिछले एक साल में हमने इस महामारी को लेकर जो कुछ देखा, सुना और भोगा है उसे जानते समझते न हों। हम सबकुछ जान कर भी वे ही गलतियां कर रहे हैं जो हमने कोरोना का पहला हमला होते समय की थीं। लेकिन इस बार ये गलतियां नहीं बल्कि अपराध है। पहले तो हमने सरकार को दोषी ठहरा दिया था कि उसने समय पर लोगों को जाग्रत नहीं किया, उसने समय रहते समुचित कदम नहीं उठाए, उसने ठीक समय पर माकूल व्यवस्थाएं नहीं कीं… लेकिन इस बार? इस बार तो हमें सबकुछ मालूम है।’’
2020 में कोरोना के कारण पूरी दुनिया के साथ साथ भारत ने भी जो भोगा है उसकी भरपाई होना आसान नहीं है, और उससे भी ज्यादा दुख और चिंता की बात ये है कि उस अभूतपूर्व आपदा को देख और भुगत लेने के बावजूद हम नहीं संभले हैं। हमने कोई सबक नहीं लिया है, हम सबकुछ सामान्य हो जाने का मुगालता पालते हुए खुद अपने जीवन के लिए असामान्य हालात पैदा कर रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर को लेकर जो खबरें आ रही हैं वे बहुत ज्यादा डराने वाली हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बुधवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ किया गया संवाद इसी चिंता को दर्शाता है कि हम एकबार फिर 2020 जैसे खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। एक से 15 मार्च के बीच 16 राज्यों के 70 जिलों में कोरोना मामलों में 150 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। सबसे ज्यादा डराने वाली बात ये है कि कोरोना की ताजी लहर का प्रकोप अब छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में दिख रहा है।
दरअसल कोरोना की पहली लहर के समय हम स्थिति से निपटने या उसे अनियंत्रित होने से बचाने में इसलिए कामयाब हो सके थे क्योंकि इस महामारी का प्रकोप ज्यादातर बड़े शहरों तक ही सीमित था, क्योंकि संक्रमित लोगों की सबसे ज्यादा आवाजाही वहीं हो रही थी। उस समय यह प्रकोप गांवों में अपने पैर नहीं पसार पाया था। लेकिन अब सरकारों और स्वास्थ्य एवं चिकित्सा तंत्र के लोगों को यह चिंता सताने लगी है कि इस बार की लहर गांवों तक पहुंच सकती है।
और यदि दूसरी लहर में हमारे गांव प्रभावित हुए तो उसके परिणाम और भी व्यापक, और भी गंभीर होंगे। क्योंकि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब हमारे शहरों में ही चिकित्सा का पर्याप्त तंत्र नहीं है तो गांवों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में गांवों में कोरोना का प्रकोप फैलने का मतलब होगा महामारी का बेकाबू होना और उससे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बहुत अधिक होना।
हमें मामूल है कि पिछली बार जब विपत्ति आई थी तो लोग शहरों से पलायन कर गांवों में पहुंचे थे। गांवों ने उस आपदा में देश को दो तरह से बचाया था। एक तो लाखों की संख्या में बेरोजगार और बेसहारा हो गए लोगों को आश्रय देकर और दूसरे उन्हें बीमारी से बचाकर। गांवों की अर्थव्यवस्था पहली लहर से प्रभावित जरूर हुई थी लेकिन वह चरमराकर गिरी नहीं थी। उसने अपनी ताकत से इस स्थिति का सामना करते हुए देश को सामाजिक और आर्थिक दोनों मोर्चों पर गिरने से बचा लिया था।
लेकिन अब गांवों के भी नई लहर की चपेट में आने की खबरें हैं। देश में जिन 70 जिलों को चिंताजनक माना गया है उनमें मध्यप्रदेश के जिलों की संख्या 10 है जहां 500 फीसदी तक मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है। इनमें ग्वालियर में 360 फीसदी, खरगोन में 250, उज्जैन में 214, भोपाल में 103, छिंदवाड़ा में 89 और इंदौर में 74 फीसदी मरीज बढ़ने की सूचना है। राज्य में संक्रमण की दर भी बढ़कर 4.3 फीसदी हो गई है।
हम मध्यप्रदेश की ही बात करें तो यह महामारी हमारे जैसे राज्य की आर्थिक स्थिति को और अधिक जर्जर करेगी। आर्थिक स्थिति खराब होने का असर चौतरफा होगा और इससे एक ओर जहां नए रोजगार सृजन की संभावनाएं कम होंगी वहीं बेरोजगारी की दर और बढ़ेगी। इसलिए कोरोना के प्रसार का अर्थ सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य तक ही सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए। इसका बहुत व्यापक होगा। हम पहले से ही बहुत अधिक कर्ज में डूबे हुए हैं, हमारा राजकोषीय घाटा बढ़कर 50 हजार करोड़ से अधिक पर जा पहुंचा है।
मध्यप्रदेश के पास राजस्व जुटाने के संसाधन पहले ही बहुत सीमित हैं, ऐसे में यदि राज्य की राजस्व आय में कमी आएगी और एक बार फिर विकास एवं रोजगारमूलक कार्यों पर खर्च होने वाली राशि कोरोना से निपटने के उपायों पर खर्च हो जाएगी तो आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के हालात क्या होंगे। इस बार तो सरकार ने नए बजट में कोई नया कर नहीं लगाया और न ही पुराने चले आ रहे करों की दरों में कोई बदलाव किया, लेकिन यदि हालात ऐसे ही रहे और कोरोना से निपटने पर एक मोटी राशि खर्च करना पड़ी तो कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में सरकार पैसा जुटाने के लिए नया कारारोपण कर दे।
इसलिए जरूरी है कि हम खुद संभलें। कोरोना से बचाव के हरसंभव उपाय करें। टीकाकरण कार्यक्रम को अधिक से अधिक अपनाएं, टीका लगने के बाद भी एहतियाती उपायों को बंद न करें… ऐसा करके ही हम अपना सर्वनाश होने से खुद को बचा सकते हैं, वरना हालात कितने बिगड़ेंगे कोई नहीं जानता। महासंकट की आहट बहुत नजदीक आ पहुंची है, अब भी यदि हमने उसे नहीं सुना तो फिर दोष हमारा ही होगा… सरकारों को दोष देकर हम बच नहीं पाएंगे…