विशेष प्रतिनिधि
रायपुर/ इस खबर को पढ़ने से पहले आपको यह वादा करना होगा कि आप इस पर हंसेंगे नहीं और न ही इसका मजाक उड़ाएंगे। निश्चित रूप से यह खबर आपके धैर्य की परीक्षा लेगी लेकिन कुछ भी हो जाए आपको अपना धैर्य नहीं खोना है। आप कितने ही विद्वान क्यों न हों, आप कसम खाएं कि इस खबर का कारण बनने वाले लोगों की बुद्धि और विवेक पर आप कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।
तो खबर ये है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने गोबर को निर्धारित मूल्य पर खरीदने का फैसला किया है। अब वहां की सरकार गोबर का मूल्य निर्धारित करेगी और उसे खरीदकर किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की योजनाओं पर काम करेगी। गोबर की सरकारी खरीद का यह ऐलान गुरुवार को खुद राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वीडियो के जरिये आयोजित मीडिया कॉन्फ्रेंस में किया ।
इस फैसले को लेकर सरकार की ओर से जो प्रेस नोट जारी किया गया है उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ देश का ऐसा पहला राज्य है जो पशुपालकों को लाभ पहुंचाने के लिहाज गोबर खरीदेगा। गौपालन को लाभप्रद बनाने, गोबर प्रबंधन और पर्यावरण सुरक्षा के लिए राज्य में ‘गोधन न्याय योजना’ की शुरुआत होने जा रही है। मुख्यमंत्री का कहना है कि इससे आवारा पशुओं की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी और गांवों में रोजगार के साथ ही अतिरिक्त आय के अवसर बढ़ेंगे।
बताया गया है कि गोबर की सरकारी खरीद निर्धारित दर पर होगी और उससे बनने वाले वर्मीपोस्ट की बिक्री सहकारी समितियों के जरिये कराई जाएगी। गोबर किस दर से खरीदा जाएगा यह तय करने के लिए पांच मंत्रियों की एक कमेटी बनाई गई है। इसके अलावा गोबर मैनेजमेंट की पूरी प्रक्रिया तय करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की एक अलग कमेटी बनाई गई है।
गोबर की कीमत तय करने वाली कमेटी अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने से पहले किसानों, पशुपालकों, गौ-शाला संचालकों के साथ साथ बुद्धिजीवियों से भी सुझाव लेगी। मुख्यमंत्री ने बताया कि पशुओं की खुले में चराई से पशुओं के साथ-साथ किसानों की फसलों का भी नुकसान होता है। शहरों में आवारा घूमने वाले मवेशियों से सड़क दुर्घटनाएं होती है, जिससे जान-माल दोनों का नुकसान उठाना पड़ता है।
नई योजना आने के बाद गोपालक अपने पशुओं को खुले में नहीं छोड़ेंगे और उनके लिए चारे-पानी का प्रबंध करने के साथ-साथ उन्हें बांधकर रखेंगे, ताकि उन्हें गोबर मिल सके, जिसे बेचकर वह पैसे कमा सकें। गोबर की खरीद से लेकर इसके जरिए वर्मी खाद के उत्पादन तक की पूरी व्यवस्था नगरीय प्रशासन विभाग करेगा।
मुख्यमंत्री से इसी दौरान एक पत्रकार ने सवाल पूछ लिया कि गोबर के साथ साथ क्या गोमूत्र की भी खरीद जैसी कोई योजना लाई जाएगी, क्योंकि उसमें भी बहुत संभावनाएं हैं, तो उन्होंने कहा कि मैं आपके इस विचार को एक सुझाव के रूप में लेता हूं। वैसे भी कई कंपनियां गोमूत्र के उत्पाद बना रही हैं, हम भी भविष्य में इस दिशा में संभावनाओं का पता लगाएंगे।
छत्तीसगढ़ सरकार के इस फैसले के दूरगामी परिणाम क्या होंगे और देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जगत में इसे किस रूप में लिया जाएगा यह देखना होगा। लेकिन इतना तय है कि इस क्रांतिकारी फैसले को लागू करने की प्रक्रिया तय करने में कठिनाइयां भी कम नहीं होंगी। मसलन पहला सवाल तो यही उठेगा कि गोबर का दाम यदि उसकी गुणवत्ता पर तय होना हो तो उसकी गुणवत्ता कौन व कैसे तय करेगा। क्या पतले गोबर और ठोस गोबर को भी एक ही दाम पर खरीदा जाएगा… यह गीला और ताजा ही खरीदा जाएगा या फिर सूखा भी… वगैरह
लेकिन ये सब बाद की बातें हैं। फिलहाल तो छत्तीसगढ़ सरकार ने गोबर में ‘आत्मनिर्भरता’ का तत्व खोजकर बाकी राज्यों से बाजी मार ली है। सरकार के इस फैसले के बाद मार्केटिंग से जुड़े एक विशेषज्ञ ने तो बातचीत के दौरान इस योजना के लिए एक स्लोगन भी दे दिया- ‘हमारा गोबर, सबसे सोबर’… छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तो अपनी योजना के लिए इस नारे पर विचार कर सकती है।