राजस्‍थान में ‘कोरोना’ नहीं ‘कुरसी का वायरस’

राकेश अचल

दुनिया का पता नहीं लेकिन हमारा देश कोरोना के बजाय कुरसी के वायरस से पीड़ित है और ये संक्रमण दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। आज पूरा एक पखवाड़ा हो गया है लेकिन राजस्थान में जनप्रतिनिधि कोरोना के खिलाफ लड़ने के बजाय कुरसी के लिए लड़ रहे हैं। कुरसी की लड़ाई   बगावत के नाम पर होटलों, अदालतों से होते हुए अब सड़कों पर आ गयी है। राज्यपाल की भूमिका एक बार फिर विवादों के घेरे में है, अदालतों के फैसलों पर बोलने की मुमानियत है क्योंकि ऐसा करना अदालत की अवमानना की परिधि में आ जाता है।

कर्नाटक और मध्यप्रदेश की सरकारें निगलने के बाद भाजपा राजस्थान की सरकार को निगलने पर आमादा है लेकिन यहां भाजपा परदे के पीछे खड़ी है। पर्दे के बाहर पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट की योग्यताओं के बारे में जो कुछ कह चुके हैं उसे दोहराने की जरूरत नहीं है, लेकिन उन्होंने जो कुछ किया है वो राजस्थान के काले इतिहास का एक हिस्सा जरूर बन गया है।

युवावस्था में बगावत तो सुहाती है लेकिन कुरसी का मोह नहीं सुहाता। सचिन को अगर कांग्रेस से बगावत करना थी तो गा-बजाकर करते, कांग्रेस छोड़ते, अपना अलग दल बनाते या भाजपा में शामिल हो जाते, लेकिन उनमें ऐसा करने का साहस नहीं निकला। वे राजस्थान सरकार को कोरोनाकाल में लंगड़ा करने के अलावा और कुछ कर नहीं पाए।

देश में अब तक जितनी सरकारों को अपदस्थ किया गया उनमें से अधिकांश का फैसला विधानसभा के भीतर किया गया, जो विधानसभा का सामना नहीं कर सके वे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तरह चुपचाप इस्तीफा देकर चले गए। राजस्थान में परिदृश्य एकदम अलग है। मुख्यमंत्री सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए उतावले हैं लेकिन राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए तैयार नहीं। वे कानूनी सलाह ले रहे हैं। सारी जिंदगी सियासत में खपा देने वाले राज्यपाल जब ऐसा कहते हैं तो उनके ऊपर तरस आता है, क्योंकि वे यहां राजस्थानी कठपुतली जैसे ही नजर आते हैं।

राजस्थान में कुरसी के लिए जारी जंग में अदालत भी है और केंद्र सरकार भी। सब मिलकर जनादेश की परवाह किये बिना सांप-सीढ़ी का खेल खेल रहे हैं। अच्छी बात ये है कि अब अदालत भी असहमति की रक्षा के लिए खड़ी दिखाई दे रही है और सचिन जैसे बागियों को इससे काफी ताकत मिलेगी। गहलोत की कुरसी हाईकोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट में भी उलझी हुई है। हाईकोर्ट ने फैसला देने के बजाय स्थगन आदेश दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट सोमवार को राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष, कांग्रेस और सचिन पायलट के साथ-साथ केंद्र सरकार को सुनने के बाद फैसला सुनाएगा। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में जनादेश को तेल लेने भेज दिया गया है। जनादेश अपनी अवमानना के खिलाफ कोई दरवाजा नहीं खटखटा सकता।

कुरसी के लिए बेशर्मी के साथ किसी सूबे को अराजकता की आग में झोंकने वाले जनप्रतिनिधि और राजनीतिक दल अदालत के अपराधी हों या न हों किन्तु वे जनता के अपराधी जरूर हैं। जनता ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चुनी थी, सचिन पायलट भी कांग्रेस का ही अंग हैं। उन्हें अपनी ही सरकार गिराने के लिए नहीं चुना गया था। वे अगर अशोक गहलोत की सामंती प्रणाली से आजिज आ गए थे तो उन्हें एक पल गंवाए बिना कांग्रेस छोड़कर सरकार से बाहर आ जाना था। उनकी अपनी कायरता के कारण उन्हें धक्के देकर सरकार से बाहर किया गया है और मुमकिन है कि अंतत: वे कांग्रेस से भी बाहर कर दिए जाएं। सचिन से बेहतर तो मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया निकले। उन्होंने भी सचिन की ही तरह जनता की चुनी सरकार को गिराने का अक्षम्य अपराध किया, लेकिन डंके की चोट किया और अपनी ताकत का मुजाहिरा भी कर दिखाया।

बहरहाल राजस्थान इस समय एक लंगड़ी सरकार के हाथों में है, उसके पास बहुमत है लेकिन उसकी बात सुनने को  राज्यपाल राजी नहीं। और अदालत में अभी वक्त लग रहा है। भाजपा पिछले दरवाजे से राज्य में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों का प्रवेश कर एक निर्वाचित सरकार को हड़काना चाहती है, क्योंकि मुख्यमंत्री ने राजभवन को घेर लिया है। राजभवन के घेराव की ये पहली घटना है। गहलोत ने अपनी लड़ाई में राज्य की जनता को भी शामिल करने की चेतावनी दी है। यदि सोमवार तक अदालत या विधानसभा के भीतर ये मामला न सुलझा तो स्थितियां अप्रत्याशित रूप से बदल सकतीं है। आप जानते ही हैं कि जब पानी खतरे के निशान के ऊपर जाता है तो कैसा विनाश होता है। सबको इस विनाश से राजस्थान को बचाना चाहिए ।

इस पूरे धारावाहिक में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि कांग्रेस नेतृत्व कोई भी साहसिक फैसला नहीं कर पाया है। कांग्रेस सचिन को पार्टी से बाहर का रास्ता इसलिए नहीं दिखा पा रही क्योंकि इससे सचिन का सपना आसानी से पूरा हो जाएगा। कांग्रेस सचिन एंड कम्पनी को विधानसभा अध्यक्ष के अधिकारों के जरिये निपटाना चाहती है और बेचारे विधानसभा अध्यक्ष भी अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। शायद देश में राम राज आने वाला है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here