कोरोना से सबक कोई नहीं लेना चाहता

राकेश अचल

आप ये जानकर हैरान होंगे कि मध्यप्रदेश में राजनीतिक दल उपचुनाव ही नहीं बल्कि कोरोना के खिलाफ भी सामूहिक रूप से लड़ रहे हैं, वो भी कंधे से कंधा मिलकर ताकि कोरोना को निकलने की जगह ही न मिले। मध्यप्रदेश कोरोना प्रोटोकॉल को काल के गाल में पहुँचाने वाला पहला प्रदेश बन गया है। कोरोना जैसे-जैसे अपना प्रकोप दिखाता है, वैसे-वैसे प्रदेश के राजनैतिक दल अपने डंडे-झंडे लेकर मैदान में कूद जाते हैं।

देश में अनलॉक-4 के शुरू होने के साथ ही मध्यप्रदेश में 27  विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव की मजबूरी ने राजनीतिक दलों और जनता के बीच की तमाम दूरियों को मिटा दिया है।  सभी दलों के नेता जान हथेली पर रखकर मतदाताओं के बीच जा रहे हैं। सत्तारूढ़ दल के पास मतदाताओं को देने के लिए शिलान्यास, लोकार्पण और घोषणाओं के तोहफे हैं तो विपक्ष के पास जनता को लुभाने के लिए केवल नारे हैं, आरोप हैं। जनता खाली बैठी है, रोजी-रोजगार है नहीं सो इसी सियासी तमाशे में शामिल हो रही है। जनता ने भी अपनी जान हथेली पर ही रख ली है। सबकी अपनी-अपनी मजबूरी है।

मध्यप्रदेश के जिन अँचलों में विधानसभा के उप चुनाव होना हैं वहां जनसम्पर्क और रैलियों का सिलसिला जारी है। इन अंचलों में कोरोना के भी कम से कम दो सौ मरीज रोज सामने आते हैं। दस-पांच मर भी रहे हैं। हर अंचल में अस्पताल पूरी तरह से भरे हैं, कोई बिस्तर खाली नहीं है। लेकिन किसी को कोई चिंता नहीं। नेता चिंता को चिता के समान मानते हैं इसलिए कभी चिंता करते ही नहीं हैं।

प्रदेश की जनता भी निर्भीक है। प्रशासन ने भी कोरोना प्रोटोकॉल को नेताओं के लिए शिथिल कर दिया है, प्रशासन पर तो इन राजनैतिक कार्यक्रमों के कारण अतिरिक्त खर्च आ पड़ा है सो अलग। अब सरकारी पार्टी की सभाओं, रैलियों के लिए कोई पार्टी खर्च थोड़े ही करती है, प्रशासन को करना पड़ता है। राजनीति के चलते अंचल में नदी बचाने के लिए एक सद्भावना यात्रा भी जैसे-तैसे समाप्त हो गयी, इस यात्रा से ग्वालियर-चंबल की नदियों की सेहत पर कोई असर पड़ा या नहीं ये बाद में पता चलेगा। फिलहाल नदियाँ भी खुश हैं और नेता भी। कम से कम इस बहाने पांव फरहरे करने का मौक़ा तो मिला।

दुर्भाग्य ये कि इस महान और ऐतिहासिक यात्रा में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष, प्रतिपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ नहीं आये। उनके समर्थकों का कहना है की जहां कमल वालों को कोई खतरा होता है, वे वहां नहीं जाते। और तो और यात्रा के संयोजक ने पूर्व मंत्री और अपने छोटे भाई चौधरी राकेश सिंह को भी नहीं बुलाया। हमारे एक मित्र कह रहे थे कि मध्यप्रदेश में केंद्र और राज्य की सरकारें तो क्या खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन अमेरिकी तोपें लेक उतर आये तो भी कोरोना प्रोटोकाल का पालन नहीं करा सकता।

देश के दूसरे हिस्सों में जहां चुनाव होने वाले हैं वहां भी कमोबेश यही दशा है। बिहार और बंगाल की तो बात ही अलग है। इन प्रदेशों में बड़ी से बड़ी महामारी कुछ नहीं कर सकती। यहां की जनता का साफ कहना है कि- ‘आप अपना काम करो, हम अपना काम कर रहे हैं।‘ विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना प्रोटोकाल के खिलाफ इस बगावत को ‘एक्ट आफ गॉड’ मानकर चलने को मजबूर है। और वाकई में ये है भी कुछ-कुछ ऐसा ही।

दूसरे प्रदेशों का तो मुझे ज्यादा ज्ञान नहीं है लेकिन हमारे मध्यप्रदेश में जनता के साथ ही हमारे नेता भी कोरोना पोजेटिव बड़ी संख्या में हुए हैं, अस्पतालों में रह चुके हैं, लेकिन किसी ने भी हिम्मत नहीं हारी है और जनता से भी हिम्मत न हारने की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है कि कोरोना चुनाव और लोकतंत्र से बड़ा थोड़े ही होता है? लोकतंत्र और चुनाव सबसे बड़ी चीज है। आदमी से भी बड़ी चीज।

मध्यप्रदेश में अभी कोरोना से 1762 लोग ही तो शिकार हुए हैं। कोई 88 हजार संक्रमित हुए हैं और कोई 65 हजार के लगभग ठीक हुए हैं, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी है। हमारे यहां कहा जाता है कि- ‘हारिये न हिम्मत,बिसारिये न राम।‘ राम हमारे साथ है और हम राम के साथ। आप भी अपने आपको अकेला न समझें, हमारे साथ भी राम है। राम जी की कृपा से चुनाव भी हो जायेंगे।

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