पुडुचेरी से नहीं हिली सियासत

राकेश अचल

पुडुचेरी में कांग्रेस की सरकार गिर गयी लेकिन कहीं कोई हलचल नहीं हुई, क्योंकि अब देश में सरकारें गिरना आम बात हो गयी है। पहले किसी जमाने में सरकार गिराना खेल नहीं कहा जाता था किन्तु अब खेल-खेल में सरकारें गिर जाती हैं और कहीं कोई खरखसा नहीं होता। खरखसा यानि सूखे पत्तों पर चलने से होने वाली आवाज। बहुमत गंवा चुके मुख्यमंत्री नारायण सामी के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि कांग्रेस के विधायकों को भाजपा की दीमक ने बीमार कर दिया था।

देश में निर्वाचित सरकारें गिराने का इतिहास अभी केवल कांग्रेस के नाम था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस से ये तमगा छिन गया। कांग्रेस से अब सब कुछ छीना ही जा रहा है। कांग्रेस नया हासिल करना तो दूर जो कुछ पुराना है उसे भी बचाने में नाकाम साबित हो रही है और इसके लिए कोई माने या न माने कांग्रेस के प्रमुख राहुल गांधी का अव्यावहारिक नेतृत्व जिम्मेदार है। राहुल गांधी के पास सब कुछ है लेकिन राजनीतिक दल चलाने का हुनर नहीं है, उन्होंने जब भी मौक़ा मिला कांग्रेस को नवजीवन देने की कोशिश की लेकिन उनका हर पांसा उलटा पड़ता चला गया।

पुडुचेरी में सत्ता खोने के बाद अब दक्षिण में एक तरह से कांग्रेस का सफाया हो गया है। दक्षिण के सभी राज्यों में भले भाजपा न हो लेकिन कांग्रेस तो बिलकुल नहीं है। दक्षिण में कांग्रेस दोबार अपनी पुरानी हैसियत हासिल कर पाएगी या नहीं, इस बाबद भी मैं कोई भविष्यवाणी कर सकता हूँ। कांग्रेस को पहले से पता था कि पुडुचेरी में नारायण सामी सरकार सुरक्षित नहीं है, बावजूद इसके कांग्रेस सत्ता बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकी। कर भी क्या सकती थी? कांग्रेस के पास अब चमत्कार दिखाने वाले नेता बचे ही कहाँ हैं? जो हैं उनकी आक्रामकता को घुन लग चुका है।

आपको याद होगा कि 17 फरवरी को पुडुचेरी में राहुल गांधी की रैली से पहले कांग्रेस के चार विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद रविवार को एक और कांग्रेस विधायक के. लक्ष्मीनारायणन ने भी अपना इस्तीफा विधानसभा स्पीकर को सौंप दिया। 5 कांग्रेस विधायकों के अलावा डीएमके के एक विधायक ने भी अपना इस्तीफा स्पीकर को सौंपा। विपक्ष की मांग पर उपराज्यपाल तमिलिसाई सौंदरराजन ने मुख्यमंत्री से सोमवार को बहुमत साबित करने को कहा और आंकड़ें पूरे ना होने के चलते वी. नारायण सामी को इस्तीफा देना पड़ा। कांग्रेस और डीएमके की अगुवाई वाली सरकार बहुमत के जरूरी 14 विधायकों का समर्थन नहीं जुटा पाई। पुडुचेरी विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 26 है। गौरतलब है कि कांग्रेस के 5 और डीएमके के एक विधायक के इस्तीफा देने के बाद नारायण सामी के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं रह गया था।

देश में जैसे डीजल-पेट्रोल की कीमतें आसमान छूकर आगे निकल गयीं, पर सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा वैसे ही पुडुचेरी की सरकार भी चली गयी पर कहीं कुछ नहीं हुआ। सबको पता था कि नारायण सामी की सरकार जाने वाली है किन्तु राहुल और उनकी टीम सरकार बचाने के लिए कुछ कर नहीं पायी। कभी-कभी लगता है कि कांग्रेस का सत्ता से मोहभंग हो चुका है। कांग्रेस अब शायद समाज सेवा के जरिये लोगों के बीच अपनी पकड़ बनाने में एक बार फिर से जुट जाना चाहती है।

जैसा कि होता आया है कि खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचती है वैसे ही कांग्रेसी भी इस घटनाक्रम पर आंय-बांय टिप्पणियां कर रहे हैं। मुझे भी कांग्रेस के नेताओं पर लाज आने लगी है। नेताओं की मजबूरी है कि वे बेचारे कांग्रेस में हैं इसलिए ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहते। नारायण सामी चाहकर भी कुछ नहीं कर पाए, जो करना था वो सब निवर्तमान राज्यपाल ने कर दिखाया, उन्हें केंद्र ने उनका मिशन पूरा होते ही दिल्ली वापस बुला लिया। श्रीमती किरण बेदी पुडुचेरी में राज्‍यपाल थीं। उन्हें राज्यपाल के पद पर बहुत सोच समझकर पुडुचेरी भेजा गया। वे किसी बलिवेदी पर नहीं चढ़ीं। उन्होंने अपनी भूमिका को पूरी मुस्तैदी से पूरा किया। वे बंगाल के राज्‍यपाल धनकड़ कि तरह मुख्यमंत्री से जूझी नहीं, उन्होंने अपना काम अपने ढंग से किया।

मजे की बात देखिये कि भाजपा ने जिस पुडुचेरी में कांग्रेस को विरथ किया है वहां भाजपा का एक भी विधायक नहीं है। हालाँकि इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के पांच विधायकों में से दो ने बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया है। भाजपा  आजकल अपना कुनबा इसी तरह बढ़ा रही है यानि आप कह सकते हैं कि राजनीति में भी अब टेस्ट ट्यूब बेबी प्रणाली को अपना लिया गया है। भाजपा को हर हाल में सत्ता चाहिए और ऐसी कामना करना कोई बुरी बात नहीं है। बुरी बात तो ये है कि कांग्रेस लगातार बाँझ होती जा रही है।

पुडुचेरी में नयी सरकार बने या वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाये ये केंद्र की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार पर निर्भर है। मुमकिन है कि केंद्र पुडुचेरी में राष्ट्रपति शासन के चलते ही अपने अनुकूल वातावरण बनाते हुए नया जनादेश हासिल करने का प्रयास करे। वहां भाजपा समर्थक सरकार बनने के लक्षण कम ही नजर आ रहे हैं। पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस खामोश है। कांग्रेस को खामोश ही रहना चाहिए, खामोशी ही उसे दुर्दशा से उबार सकती है। कांग्रेस को बचाने के लिए राहुल गांधी क्या करें या क्या नहीं करें ये उनकी अपनी चिंता है। हमारी चिंता तो सिर्फ इतनी है कि बिना मजबूत विपक्ष के सब कुछ उलटा-पुल्टा होता जा रहा है।

पिछले सात साल में कांग्रेस ने यदि कुछ नहीं सीखा है तो ये देश का कम कांग्रेस का दुर्भाग्य ज्‍यादा है। देश आज नहीं तो कल हर झंझावात से बाहर निकल आएगा लेकिन कांग्रेस के लिए अब अवसर लगातार कम होते जा रहे हैं। तीन माह से चल रहा किसान आंदोलन भी देश की राजनीति की दशा और दिशा नहीं बदल पाया है। लगता है जैसे किसान इस देश के वासी हैं ही नहीं। देश में यदि एक समर्थ और तत्पर निर्णय करने वाला विपक्ष होता तो मुमकिन है कि ये दिन न देखना पड़ते। पुडुचेरी को राज्यपाल चलते हैं या कोई जोड़तोड़ वाली सरकार इससे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ने वाला है। फर्क इस बात से पडेगा कि क्या निरंकुशता इसी तरह अपनी जबान लपलपाती रहेगी?

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