राकेश अचल
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान से सीधा कोई परिचय न होने के बावजूद यदि आज उनके निधन पर खिराजे अकीदत पेश न करूँ तो ये न सिर्फ पासवान के प्रति बल्कि खुद मेरे साथ अन्याय होगा। पासवान भारतीय राजनीति के उन विशिष्ट राजनेताओं में से थे जिन्होंने एक दलित नेता के रूप में न सिर्फ आजीवन सत्ता सुख उठाया बल्कि अपने पीछे एक विरासत भी छोड़ गए। उनके बनाये कीर्तिमान अब इतिहास का हिस्सा बन गए हैं, जिन्हें अब शायद ही कोई दूसरा दोहरा सके।
पासवान अब स्वर्गीय हो गए हैं। जब वे थे तब भी उनके प्रति मेरे मन में बहुत अधिक श्रद्धा नहीं थी। उम्र में बड़े थे, अनुभवी थे, विनम्र थे, सहज थे, इसलिए उनके प्रति एक आदरभाव अवश्य था। पासवान से अनेक अवसरों पर मिलने का मौका मिला। ग्वालियर वे आते ही रहते थे। क्योंकि वे लगातार छह प्रधानमंत्रियों के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। उन्होंने 32 वर्ष में लोकसभा के 9 और राज्य सभा के 2 चुनाव लड़े और जीते। ये अपने आपमें उनका कौशल और उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि थी। इस मामले में बिहार की मेधा को फिर प्रणाम करना ही होगा।
बिहार ने रामविलास पासवान से पहले देश को एक और दलित नेता दिया था। उनका नाम था बाबू जगजीवन राम। बाबू जगजीवन राम की राजननीतिक यात्रा 50 वर्ष की थी। वे आपातकाल के बाद एक अपवाद को छोड़ आजीवन कांग्रेस में रहे, लेकिन लगातार पद पर रहने वाले वे रामविलास पासवान जैसे पहले नेता थे। रामविलास पासवान चाहकर भी बाबू जगजीवनराम नहीं बन पाए। बाबू जगजीवनराम स्वतंत्रता संग्राम से निकले नेता थे, लेकिन पासवान परिस्थितियों से जन्मे नेता थे।
अपना पहला विधानसभा चुनाव जनता के पैसे से लड़कर हारे रामविलास ने जब केंद्रीय राजनीति में कदम रखा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। हाजीपुर से पहला लोकसभा चुनाव लड़कर रिकार्ड मतों से जीते। रामविलास हारते-जीतते हुए आगे बढ़े। जिस हाजीपुर ने उनके नाम से सर्वाधिक मतों से जीतने का कीर्तिमान लिखा था उसी हाजीपुर ने उन्हें अस्वीकार भी किया। बावजूद पासवान जब भी जीते केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बने। रामविलास पासवान को इसलिए भूला पाना आसान नहीं होगा क्योंकि अब उनके जैसा शायद ही कोई नेता राजनीति में आये।
बिहार का गौरव वे थे या नहीं ये तो मैं नहीं कह सकता लेकिन इतना जरूर है कि बाबू जगजीवनराम के बाद उन्हीं के पास सबसे ज्यादा मंत्रालयों में काम करने का रिकार्ड दर्ज है। मंत्री पद पर रहना उनका प्रारब्ध था। दलबदल उनका स्वभाव, सौदेबाजी उनका चरित्र रहा और इसी के आधार पर वे कांग्रेस को छोड़ हर दल की जरूरत रहे, यहां तक कि महाबली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केबिनेट में वे एक महत्वपूर्ण मंत्रालय सम्हाल रहे थे। उन्होंने अपनी एक पार्टी बनाई और उसी के बूते अपना काम चलाते रहे। अब उनका राजनीतिक उत्तराधिकार उनके बेटे चिराग के पास है। चिराग रामविलास पासवान साबित होंगे या नहीं ये आने वाले कल की बात है। आज तो रामविलास पासवान हमारे बीच नहीं है ये ही सबसे बड़ा सत्य है।
रामविलास पासवान से जब भी भेंट हुई, इतनी सहज हुई कि कभी लगा नहीं कि वे केंद्रीय राजनीति में इतने बड़े नेता हैं। सहजता और विनम्रता और विनोदप्रियता उनका नैसर्गिक गुण था और अपने इन्हीं गुणों के लिए उन्हें याद भी किया जाएगा। सबसे बड़ी बात ये कि 74 वर्ष की आयु में भी वे चिर युवा थे। उन्होंने अपने आपको बूढ़ा होने ही नहीं दिया। उनकी केशराशि और दाढ़ी-मूंछें हमेशा गहरे काले खिजाब से चमकती रहती थी। शायद वे फिल्म अभिनेता देवानंद से प्रभावित रहे हों। जो अपने प्रशंसकों के बीच कभी बूढ़े बनकर नहीं आये। वे अपने तीन दशक से लम्बे राजनीति जीवन में देश के दलितों को क्या दे गए और क्या ले गए इसका हिसाब फिर कभी। अभी पासवान जी को अंतिम प्रणाम। ईश्वर उन्हें अपनी शरण में स्थान दें।