राकेश अचल
यकीन मानिये मुझे पता नहीं है कि देश में बिजली के कुल कितने खंभे हैं, लेकिन मुझे पता है कि देश के दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में ढाई लाख से ज्यादा बिजली के खंभे हैं और सबके सब राम भरोसे हैं क्योंकि इनकी देखभाल के लिए मध्यप्रदेश विद्युत मंडल के पास लाइनमैन ही नहीं हैं। खुद बिजली मंत्री के गृह जिले में मात्र 152 लाइनमैन है। ये खबर मैं आपको चौंकाने के लिए नहीं बता रहा बल्कि इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि ये एक अजूबा है जो केवल मध्यप्रदेश या हिन्दुस्तान में ही मुमकिन है।
मध्यप्रदेश के बिजली मंत्री को शायद इस स्थिति की जानकारी है इसलिए बेचारे अपने गृहनगर में तो खुद दस्ताने पहनकर बिजली के खंभों पर चढ़ जाते हैं फिर भी उनके नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ श्रीमती यशोधरा राजे कैबिनेट की बैठक में बिजली मंत्री को डपट देती हैं, जैसे सारा दोष उसी गरीब का हो। मध्यप्रदेश में बिजली खरीदने और आपूर्ति करने के काम चार अलग-अलग कंपनियों के जिम्मे हैं। इन कंपनियों के सीईओ प्रदेश के सबसे ज्यादा होशियार आईएएस अफसर बनाये जाते हैं, लेकिन जो हकीकत है सो आपके सामने है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हमारे देश में बिजली के खंभे गांव-गांव तक पहुँचाने को ही विद्युतीकरण कहते हैं। बिजली के खंभों पर तार लगना और फिर उनके संधारण की कोई पुख्ता व्यवस्था हमारे यहां किसी योजना में नहीं होती भले ही वो योजना पंडित दीनदयाल उपाध्याय को ही सम्मानित करने के लिए क्यों न बनाई गयी हो। देश में सम्पूर्ण विद्युतीकरण के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के मुखिया यानि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 15 अगस्त, 2015 को लालकिले की प्राचीर से यह घोषणा की थी कि अगले 1000 दिन में देश के हरेक गाँव को बिजली से जोड़ दिया जाएगा। लेकिन, 1236 गाँव ऐसे भी हैं जहाँ कोई रहता नहीं है और 35 गाँवों को ‘चारागाह रिजर्व’ के रूप में घोषित किया गया है। स्थानीय और राजस्व की भाषा में ऐसे गांवों को ‘बे-चिराग’ गांव कहा जाता है।
बीते सत्रह साल से भाजपा की सत्ता में जी रहे मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में बीते तीन दशक से बिजली के खंभे भले ही लगाये जाते रहे हों लेकिन इनकी देखरेख के लिए लाइनमैन की भर्ती यहां नहीं हुई। यानि सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या भाजपा की, किसी को भी लाइनमैन भर्ती करने की जरूरत समझ में नहीं आयी, सब खंभे लगाने में ही मशगूल रहे। बिजली वितरण और संधारण का काम देख रही कम्पनियां इस समय 152 स्थाई लाइनमैनों के अलावा 345 आउटसोर्सिंग के और 63 संविदाकर्मियों के भरोसे है यानि कुल 562 लोग इस काम को अंजाम दे रहे हैं। यानि एक कर्मचारी के जिम्मे कम से कम 115 खंभे तो हैं ही।
आबादी बढ़ने के साथ ही प्रदेश में तीस साल में उपभोक्ताओं की संख्या में भी तीन गुना इजाफा हुआ है किन्तु सरकार स्टाफ बढ़ाने के लिए राजी नहीं है। पिछले दिनों बिजली के खंभे पर चढ़ने की वजह से सुर्ख़ियों में रहे मध्यप्रदेश के बिजली मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के पास लाइनमैनों की कमी को लेकर तो कोई जवाब नहीं है लेकिन उनका दावा है कि प्रदेश में विद्युत क्षेत्र के विकास और विस्तार के लिए सभी आवश्यक और सुविचारित कदमों का उठाया जाना इन आयामों को छूने के पीछे है। परिणाम भी सामने है और वह यह कि 31 दिसंबर, 2020 की स्थिति में प्रदेश की उपलब्ध विद्युत क्षमता 21 हजार 361 मेगावॉट हो जाना। इसी दिन प्रदेश के इतिहास में सर्वाधिक 15 हजार 425 मेगावॉट शीर्ष मांग की पूर्ति भी सफलतापूर्वक की गई है।
मध्यप्रदेश के बिजली मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर कमलनाथ सरकार में सार्वजनिक वितरण मंत्री थे। वे सार्वजनिक शौचालय, नाले साफ़ करने को लेकर उस समय भी सुर्ख़ियों में रहते थे। उन्हें अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पैरों में बैठने के लिए भी सुर्खियां मिलती रही हैं, लेकिन उनकी सारी मकड़ी यशोधरा राजे सिंधिया ने उतार दी। इस बारे में प्रदेश के प्रमुख अखबार में छपी खबर का सरकार ने खंडन कर दिया लेकिन कोई उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया के गुस्से के अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं।
अब देखना ये है कि बिजली मंत्री को उनकी ही सहयोगी द्वारा दिए गए कथित झटके के बाद प्रदेश में बिजली व्यवस्था और सुधरती है या नहीं? क्योंकि बिजली मंत्री तो मंत्री बनने के बाद अभी तक पूरे प्रदेश का दौरा करने गए ही नहीं हैं। उनका ज्यादातर समय अपने चुनाव क्षेत्र में ही बीतता है। उनका क्या, प्रदेश के अधिकांश मंत्री कहने को मध्यप्रदेश के मंत्री हैं लेकिन उनकी गतिविधियां अपने-अपने चुनाव क्षेत्रों तक सीमित हैं। अब मजबूरी में प्रभारी मंत्री बनाये जाने की वजह से उन्हें अपने प्रभार के जिलों में जाना पड़ रहा है।(मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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