बूलगढ़ी की निर्भया

राकेश अचल 

देश आठ साल पहले जहां था, उससे एक कदम आगे नहीं बढ़ा। राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए बहुचर्चित निर्भयाकांड के बाद जागा देश, नया क़ानून बनने के बाद कंबल ओढ़ कर सो गया। नया कानून बनने के बाद देश में न निर्भयाकांड रुके और न पुलिस की, समाज की नजरें बदलीं। जो 16 दिसंबर 2012 को हुया था, वो ही सब 14 सितंबर 2020 को उत्तरप्रदेश के हाथरस जिले के बूलगढ़ी में हुआ। बूलगढ़ी की निर्भया की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई है की यूपी के ही बलरामपुर में फिर एक निर्भया दरिंदगी की शिकार हो गयी है। सवाल ये है कि हाथरस में लोकतंत्र था भी या नहीं?

बूलगढ़ी में सामूहिक बलात्कार की शिकार लड़की के साथ दोहरा अतिचार हुआ। पहले बलात्कारियों ने लड़की की अस्मत तार-तार की फिर उसकी कमर तोड़ी और जीभ काट दी ताकि वो बोल न सके। बात यहीं तक होती तो शायद आगे न बढ़ती लेकिन पुलिस ने बलात्कार की रपट लिखने में 9 दिन लगाए और जब लड़की मर गयी तो उसकी लाश बिना उसके परिजनों की सहमति के जबरन जला दी। बूलगढ़ी काण्ड निर्भया काण्ड से न कम है और न ज्यादा। ऐसे कांड देश में निर्भयाकांड के बाद बने नए क़ानून के बावजूद रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। लेकिन आश्चर्य है कि न समाज बदल रहा है और न पुलिस।

बूलगढ़ी काण्ड को लेकर पुलिस की भूमिका ने देश का दिल हिलाकर रख दिया है। बूलगढ़ी की पीड़िता न आतंकवादी थी, न कोरोना का शिकार और न विजातीय, फिर उसका शव रात के अँधेरे में पुलिस ने जबरन क्यों जलाया? पुलिस क्यों जबरदस्ती पर आमादा रही, क्यों पुलिस ने मीडिया और मृतक के परिजनों को जबरन रोककर बिना जरूरी क्रियाकर्म के लड़की का शव जला दिया? इन सवालों के जवाब कोई देने को तैयार नहीं। किसी ने कल्पना नहीं की थी की योगी आदित्यनाथ के राम राज में पुलिस इतनी अधिक उच्‍छृंखल, उद्दंड और घामड़ हो जाएगी।

सब जानते हैं की बूलगढ़ी कभी भी दिल्ली नहीं हो सकती, बूलगढ़ी की निर्भया दिल्ली को, देश को नहीं हिला सकती। बूलगढ़ी के लिए कोई राजपथ पर मोमबत्तियां जलाकर सोती हुई सरकार को नहीं जगा सकता। बूलगढ़ी पर संसद और विधानसभाओं के तो बोलने का सवाल ही नहीं है। प्रधानमंत्री यदि दखल न दें तो शायद बूलगढ़ी काण्ड की जांच के लिए योगी एसआईटी भी न बनायें। फिर ये एसआईटी भी क्या कर लेगी, कोई नहीं जानता?

यूपी की पुलिस का इकबाल वैसे ही मिटटी में मिला हुआ है। फर्जी मुठभेड़ों का कलंक अपने माथे पर लिए घूम रही यूपी की पुलिस ने शायद पॉक्‍सो एक्ट पढ़ा ही नहीं है, यदि पढ़ा होता तो बलात्कार का मामला दर्ज करने में उसे नौ दिन न लगते। हाथरस के पुलिस अधीक्षक को अब भी इस मामले में फोरेंसिक प्रमाणों की तलाश है। मृतका का मृत्युपूर्व बयान उन्हें नाकाफी लगता है। ऐसे नादान और भोले पुलिस वालों को फौरन मैदानी पोस्टिंग से हटा देना चाहिए, लेकिन सवाल   यही है कि ऐसा कौन करे? मुख्यमंत्री को पीड़िता से ज्यादा अपनी पुलिस पर यकीन है।

सवाल ये नहीं है कि ये वारदात यूपी में हुई। ऐसी वारदातें राजस्थान में हों, मध्यप्रदेश में हों या हैदराबाद में, सभी जगह पुलिस का व्यवहार निर्मम और निंदनीय है। पुलिस ऐसे मामलों में बजाय सीधी कार्रवाई करने के उनकी लीपापोती में लग जाती है। पुलिस पीड़ितों को न्याय दिलाने के बजाय अपनी सरकार की बदनामी रोकने की फिराक में रहती है। देशभक्ति, जनसेवा का संकल्प सरकार की भक्ति और सरकार की सेवा में बदल जाता है

पॉक्‍सो एक्ट बनने के बाद यदि आप एनसीआरबी की रिपोर्ट देखें तो आपको सब कुछ समझ आ जाएगा कि देश में कानूनों की हैसियत क्या है? निर्भया कांड के बाद नया क़ानून बनने के बाद कायदे से महिलाओं के प्रति अपराधों में कमी आना चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। साल 2015 में महिलाओं के प्रति अपराध के 3,29, 243 मामले दर्ज किए गए। 2016 में इस आंकड़े में 9,711 मामलों की बढ़ोतरी हुई और 3,38,954 मामले दर्ज किए गए।

वहीं साल 2017 में ऐसे 20, 895 मामले और बढ़ गए और इस साल 3,59, 849 मामले दर्ज किए गए। यूपी में महिलाओं के प्रति अपराध के मामले सबसे ज्यादा दर्ज हुए हैं और उतनी ही तेजी से बढ़े भी हैं। वहीं, लक्षद्वीप, दमन व दीव, दादर व नगर हवेली जैसे केंद्र शासित प्रदेश और नागालैंड में महिलाओं के प्रति अपराध के सबसे कम मामले दर्ज किए गए हैं। ताजा आंकड़े और हैरान करने वाले हैं।

इसी साल 20 मार्च को निर्भयाकांड के आरोपियों को फांसी पर लटकाया गया, लेकिन किसी ने इस सजा से सबक नहीं लिया। देश 20 मार्च को निर्भया न्याय दिवस के रूप में मनाने की योजना बनाता रह गया और हर रोज निर्भया काण्ड सामने आने लगे। बलात्कार की वारदातों को राजनीति से जोड़े बिना देखकर भी बात की जाये तो यह कहना कठिन है कि समाज इस तरह की नृशंसता के खिलाफ किस हद तक जाएगा। समाज तो समाज हमारा सिस्टम ही नहीं जाएगा, यदि जाना होता तो यूपी की पुलिस एक दूसरी निर्भया का शव बिना कर्मकांड के रात के अँधेरे में यूं न जलाती।

बूलगढ़ी में बीती रात जो हुआ उसने पूरे देश की पुलिस को अमानवीय बना दिया है। अब ये मामला केवल यूपी का नहीं रहा। देश की संसद को इस पर बात गौर करना चाहिए। देश की सबसे बड़ी अदालत को इसमें संज्ञान लेना चाहिए क्योंकि जिस तरह से दिल्ली की निर्भया के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी गयी उसी तरह से बूलगढ़ी की लड़ाई शायद न लड़ी जा सके।

नित नए निर्भयाकांडों पर देश में गुस्सा दूध में आने वाले उफान जैसा होता है, इसका नतीजा ये है कि बूलगढ़ी के फौरन   बाद यूपी के ही बलरामपुर में दलित युवती के साथ हैवानियत बरती गई। 22 साल की दलित छात्रा के साथ गैंगरेप के बाद उसकी कमर और दोनों पैर तोड़ दिए गए। इसके बाद छात्रा को रिक्शे में बिठाकर घर भेज दिया गया, जहां कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई। मामले में दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। पूरा इलाका छावनी में तब्दील हो गया है।

यहां भी पुलिस को सबूत नहीं मिल रहे हैं। अब जब तक पूरा देश इन मामलों के खिलाफ उठकर खड़ा नहीं होता, तब तक ये मामले रुकने वाले नहीं हैं। अब ये मामले कुर्सियों से जुड़े नहीं हैं, इन वारदातों से देश की छवि खराब हो रही है। समाज में लड़कियों की मौजूदगी खतरे में पड़ गयी है।

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