अजय बोकिल
बेशक यह अत्यंत क्षोभ का क्षण है और पत्रकारीय नवाचार का भी। अमेरिका के तीसरे सबसे बड़े अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने कोरोना वायरस के कारण देश में लगातार हो रही मौतों और भयावहता को 24 मई 2020 के रविवारीय अंक में नितांत अलग तरीके से प्रस्तुत किया। अखबार ने अपना मुखपृष्ठ तथा एक अन्य पेज कोविड 19 के कारण अपनी जानें गंवाने वाले उन अमेरिकियों को समर्पित किया, जो अब इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं।
अखबार ने ऐसे 1 हजार लोगों के नाम मय उनके व्यवसाय और शहर के साथ छापे हैं। कोरोना मृतकों की इस सूची को एक बैनर शीर्षक दिया गया- ‘ यूएस डेथ्स नीयर 100000, एन इनकेल्कुलेबल लॉस’। अर्थात अमेरिका में मौतें 1 लाख के करीब, अनगिनत हानि।
अखबार के प्रथम पृष्ठ पर कोई फोटो अथवा दूसरी खबर नहीं है। इस तरह अखबार की ओर से कोरोना मृतकों को (इनमें कई अखबार के पाठक भी हो सकते हैं) दिया यह अनोखा सम्मान भी है। इन 1 हजार लोगों के बारे में अखबार ने अपने स्रोतों से जानकारी इकट्ठा की है। क्योंकि कोरोना से मरने वालों में जीवन के हर क्षेत्र के लोग थे। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के भीतरी पेज पर जाने माने लेखक डेन बैरी का एक लेख भी है- ‘द ह्यूमन टोल।‘
अमेरिका में कोरोना वायरस से लड़ने में ट्रंप सरकार की नाकामी और तमाम कोशिशों के बाद भी वहां कोरोना नरसंहार न रुक पाने के बीच, एक समाचार पत्र द्वारा, एक असाधारण खबर की बिल्कुल अलग ढंग से प्रस्तुति, दुनिया के मीडिया जगत में चर्चा का विषय है। इस स्तम्भ के लिखे जाने तक दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में कोरोना वायरस से 97 हजार लोग मारे जा चुके हैं और 1 लाख का आंकड़ा बहुत दूर नहीं है। ऐसा लगता है कि कोविड 19 के आगे पूरा अमेरिका असहाय हो गया है।
दरअसल कोरोना काल ने पूरे विश्व में जहां मीडिया उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया है, वहीं खबरों की प्रस्तुति में कुछ नवाचार भी हुए हैं। कारण कि आज समूची दुनिया में कोर खबर कोरोना ही है। ऐसे में कोरोना केन्द्रित खबरों को कितने एंगल से, कितना शिक्षित और जागरूक करने के हिसाब से और कितनी विश्वसनीयता के साथ प्रस्तुत किया जाए, यह सबसे बड़ी चुनौती है।
ऐसे में अक्सर मीडिया का व्यवस्था का प्रवक्ता बन जाने का खतरा होता है। इस कोरोना काल में सोशल डिस्टेसिंग के चलते मीडिया में काफी काम ‘वर्क फ्रॉम होम’ हो रहा है, लेकिन मैदानी संवाददाता पूरे खतरे उठाकर भी कोरोना के कारण पैदा हो रही भयंकर समस्याओं, विसंगतियों, मानवीय पीड़ा और व्यवस्था की संवेदनहीना को भी सामने ला रहे हैं।
भारत में अगर यह प्रवासी मजदूरों के व्यापक स्थलांतर और अकाल मौतों के रूप में है तो विदेशों में यह कोरोना मृतकों के लिए कब्रिस्तानों का टोटा पड़ जाने तथा स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के ध्वस्त हो जाने के रूप में है।
कोरोना की इस अभूतपूर्व वैश्विक त्रासदी से मीडिया का स्वरूप भी बदल रहा है। समाचार पत्रों का प्रसार और आमदनी निरंतर घट रही है, तो डिजीटल मीडिया की तरफ पाठकों का रुझान बढ़ रहा है। इसका अर्थ यह नहीं कि लोगों की विचारों की भूख कम हो गई है, लेकिन उसे शांत करने के प्लेटफार्म बदल रहे हैं। यह इस बात का संकेत भी है कि भविष्य का मीडिया कैसा होगा, लोगों की उससे और उसकी लोगों से क्या अपेक्षाएं रहेंगी।
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ का जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि 170 साल पुराने और पत्रकारिता के 130 पुलित्जर पुरस्कार जीतने वाले इस अखबार ने डिजीटल एडीशन पर जाकर ग्राहक संख्या बढ़ाने और आमदनी में रिकॉर्ड कायम किया है। हालांकि इस अखबार का प्रिंट संस्करण अभी भी निकल रहा है, लेकिन नेट जेनरेशन आने के बाद अखबार का ‘स्पर्श सुख’ और ‘सुकून’ अब ऑनलाइन अखबार वाचन में तब्दील हो गया है।
कोरोना काल में मीडिया में कई तकनीकी नवाचार हुए हैं और हो रहे हैं। इसने खबरों की प्रस्तुति, संपादन, उन्मुखीकरण, न्यूजरूम वर्किंग और खबरों के प्रभाव पर भी असर डाला है। कोशिश यही है कि कोविड 19 के झटके को किस रूप में धारण किया जाए। मीडिया स्कॉलर डॉ. सेम्युअल डेंजन शेम्बादो ने ‘द पॉयंटर’ में लिखे एक लेख में बताया है कि मीडिया के सामने अब दोहरी चुनौती है। यानी कोरोना से जुड़ी फेक खबरों को परखने तथा सही सूचनाएं लोगों तक पहुंचाने की, ताकि कोविड 19 का फैलाव बेलगाम न हो।
डॉ. शेम्बादो के अनुसार कोरोना ने ‘स्वयंचलित पत्रकारिता’ (ऑटोमेटेड जर्नलिज्म) को जन्म दिया है। उनके मुताबिक यूरोप में कोरोना के प्रकोप के साथ ही स्वीडन के एक प्रमुख अखबार ‘एफ्टोब्लेडेट’ ने यूनाइटेड रोबोट्स कंपनी के साथ मिलकर ऑटोमेटेड सिस्टम तैयार किया, जिसमें स्वास्थ्य अधिकारियों की मदद से कोरोना संबधित खबरें स्वत: जनरेट होती हैं जिसे रिपोर्टर आसानी से मॉनिटर कर सकते हैं, उन्हें संपादित कर सकते हैं।
इसी तरह ब्रिटेन में न्यूज एजेंसी ‘राडार’ ने एक घंटे में कोविड 19 से सम्बन्धित 149 न्यूज स्टोरीज तैयार कर डालीं। यह बात अलग है कि ‘विश्वसनीय सूत्रों’ से मिली जानकारी के आधार पर तैयार इन समाचारकथाओं पर भी सवाल उठ रहे हैं। ये सवाल मुख्य रूप से कोविड 19 के डाटा को लेकर हैं। जो डाटा दिया जा रहा है, उसका स्रोत क्या है, उसकी प्रामाणिकता क्या है, वह कितना अद्यतन है?
साथ ही जो डाटा दिया जा रहा है, उसका ‘फैक्ट चैक’ भी जरूरी है। इसके लिए भी कुछ मीडिया संस्थानों ने ‘स्वचलित फैक्ट चैक सिस्टम’ तैयार किया है। कई नामी न्यूज एजेंसियां व अखबार, सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स के साथ मिलकर घातक कोरोना वायरस के बारे में ‘गलत सूचनाओं को लेकर अलर्ट शेयरिंग भी कर रही हैं।
भारत में भी कुछ अखबार, न्यूज साइट्स तथा टीवी चैनल, खबरों की लगातार फैक्ट चैकिंग कर रहे है। लेकिन इसका कमजोर पक्ष यह है कि गलत खबर जितनी तेजी से और जिस उत्सुकता से प्रसारित होती है, फैक्ट चेक उतनी ही मंद गति से प्रसारित हो पाता है। अधिकांश लोग ‘फैक्ट चैक’ पर ध्यान भी नहीं देते। इसी कारण सोशल मीडिया पर ‘मिस इन्फार्मेशन’ फैलाने वालों की बन आती है। ड्यूक यूनिवर्सिटी तो खबरों के फैक्ट चैक के लिए एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम भी विकसित कर रही है।
यहां कोरोना खबरों की प्रस्तुति, उनके समाज और प्रशासन पर पड़ने वाले असर की चर्चा भी जरूरी है। क्योंकि जहां कोरोना ‘पॉजिटिव’ की खबर लोगों में दहशत फैलाती है, वहीं मीडिया में ‘पॉजिटिव खबर’ का अर्थ बिल्कुल दूसरा और कई बार व्यावसायिक प्रतिबद्धता के प्रतिकूल ही होता है। पाठक कोरोना ‘पॉजिटिव’ पर तो भरोसा करता है, लेकिन खबरें अगर ‘पॉजिटिव’ रंग लेने लगती हैं तो मीडिया की नीयत पर सवाल उठने लगते हैं।
इसका अर्थ यह नहीं कि निगेटिव’ खबरें ही दी जानी चाहिए, लेकिन मीडिया की नैतिकता यही कहती है कि जो सूचना या खबर दी जाए, वह वस्तुनिष्ठ और तथ्यात्मक हो। हमारे यहां इसका पालन कुछ हद तक किया जा रहा है, लेकिन बहुत सी खबरें ऐसी हैं, जिनकी प्रस्तुति सत्ता की सुविधा से अथवा उसका प्रवक्ता बनकर की जा रही हैं।
बहरहाल ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अपने देश में कोरोना मृतकों को जो अनोखी ‘श्रद्धांजलि’ दी है, वह इस बात का प्रतीक है कि मीडिया भयंकर आपदा में भी मानवीय संवेदनाओं को कायम रखना नहीं भूलता। उसे भूलना भी नहीं चाहिए, क्योंकि मीडिया मानव समाज से है, मानवता के लिए है।
हमने भी कई प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं को झेला और पूरी शिद्दत से रिपोर्ट किया है। लेकिन कोरोना जैसी अबूझ बीमारी और उससे उपजी अभूतपूर्व परिस्थिति ने समूची मानवता को ही संशय में डाल दिया है। भारत के संदर्भ में यही दुआ करें कि हमारे यहां ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ जैसा खबरी नवाचार करने की नौबत कभी न आए।
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टीम मध्यमत