वैसे दिखने में यह आंकड़ा गणित का बहुत साधारण सवाल लगता है लेकिन इसके पीछे जो सवाल छिपा है वह उतना ही मुश्किल और रोंगटे खड़े कर देने वाला है। अंकगणित के हिसाब से 16 गुणा 2 गुणा 6 का सवाल हल करना कोई मुश्किल काम नहीं है लेकिन सामाजिक मनोविज्ञान के हिसाब से इस सवाल का हल ढूंढना आसान नहीं है।
यह सवाल खड़ा हुआ है मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ के एक सरकारी स्कूल से। केंद्र के अधीन चलने वाला यह जवाहर नवोदय आवासीय विद्यालय इन दिनों सुर्खियों में है। झाबुआ जिला मुख्यालय से 34 किमी दूर थांदला के इस स्कूल की एक घटना ने न सिर्फ खबरनवीसों का बल्कि शिक्षा और सामाजिक मनोविज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों का भी ध्यान खींचा है।
पहले यह जान लीजिए कि आखिर इस स्कूल में ऐसा हुआ क्या है? दरअसल इस स्कूल की छठी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा अनुष्का सिंह के पिता शिवप्रतापसिंह ने स्कूल प्रिंसिपल से शिकायत की है कि होमवर्क नहीं करने पर उनकी बेटी को एक शिक्षक ने कक्षा की ही लड़कियों से 168 थप्पड़ लगवाए।
प्रिंसिपल को की गई लिखित शिकायत के मुताबिक लड़की के पिता ने कहा कि उनकी बेटी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी, और उपचार के लिए रोज उसे अस्पताल ले जाना पड़ता था। इसके कारण वह होमवर्क में पिछड़ गई थी। बीमारी के बाद उसने स्कूल जाना शुरू किया तो 11 जनवरी को होमवर्क पूरा नहीं कर पाने पर विज्ञान के शिक्षक मनोज कुमार वर्मा ने उसे यह कठोर सजा देने का फैसला सुनाया।
लड़की के पिता के मुताबिक अनुष्का के गालों पर उसकी कक्षा की ही 14 बालिकाओं से 11 से 16 जनवरी यानी तक छह दिन तक रोज 2-2 थप्पड़ लगवाए गए। यानी अनुष्का के गालों पर कुल 168 थप्पड़ मारे गए। इस वजह से उनकी बेटी मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का शिकार होकर दहशत के कारण फिर से बीमार हो गई।
बेटी के अचानक फिर से बीमार हो जाने पर जब घरवालों ने पूछताछ की तो छात्रा ने सारी आपबीती सुनाई। शिक्षक की इस हरकत के कारण बालिका बहुत डरी हुई है और अब स्कूल ही नहीं जाना चाहती। बालिका का थांदला के सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है।
लड़की के घरवालों ने मामले की शिकायत पुलिस में भी की और थांदला थाने के निरीक्षक एसएस बघेल ने कहा कि शिकायत की जांच की जा रही है। मेडिकल परीक्षण में छात्रा को कोई चोट नहीं पाई गई है, लेकिन अन्य छात्राओं ने घटना की पुष्टि की है। फिलहाल कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है।
इस बीच स्कूल प्रशासन ने मामले को रफादफा करने की कोशिश भी की। स्कूल के प्रिंसिपल के. सागर ने शिक्षक का बचाव करते हुए इसे एक ‘फ्रेंडली सजा’ बताया और कहा, ‘जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते हैं, उन्हें विद्यालय नियमों के तहत शिक्षक सजा नहीं दे सकते। लिहाजा बच्चे के सुधार के लिए शिक्षक ने अन्य बच्चों के जरिये छात्रा को यह सजा दिलवाई।
प्रिंसिपल ने दावा किया है कि साथी बालिकाओं ने बच्ची को थप्पड़ जोर से नहीं मारे हैं, यह एक फ्रेंडली सजा है। फिर भी हम इस मामले पर ध्यान देंगे और अभिभावकों को बुलाकर इस मामले में चर्चा करेंगे। जबकि जिला कलेक्टर आशीष सक्सेना का कहना है कि उन्हें मामले की जानकारी मिली है और जांच के बाद ही इस मामले में कोई कार्रवाई की जाएगी।
दरअसल यह मामला सिर्फ एक स्कूल से जुड़ी घटना भर का नहीं है। इसके पीछे बच्चों को स्कूल में शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताडि़त करने वाली सजा न दिए का शाश्वत विवाद भी है। यह बात हमेशा से ही उठती रही है कि स्कूलों में बच्चों की शरारतों या उनके ठीक से न पढ़ पाने की समस्या से कैसे निपटा जाए।
इस मामले में एक तरफ शिक्षकों पर बेहतर रिजल्ट देने का दबाव है तो दूसरी तरफ बच्चों पर प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का अभिभावकों का दबाव। ऐसे में बच्चे दोनों तरफ से पिस रहे हैं। और यही कारण है कि ऐसी चुनौतियों से निपटने में जरा से भी कमजोर बच्चे आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।
समय बदलने के साथ हमारी शिक्षा प्रणाली में यह आम धारणा आज भी नहीं बदल सकी है कि पिटाई ही बच्चों को सुधारने का एकमात्र उपाय या विकल्प है। बच्चों पर बढ़ते मनौवैज्ञानिक दबाव को समझते हुए उनके साथ उसी हिसाब से व्यवहार करने में अक्षम और अप्रशिक्षित शिक्षक शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना या सजा को सारी समस्याओं का हल मान बैठे हैं।
चाहे बाल अधिकार संरक्षण संस्थाएं हों या सीबीएसई जैसी स्कूलों को संचालित करने वाली संस्थाएं। सभी ने ‘कॉरपोरल पनिशमेंट’ यानी गंभीर शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना से बच्चों को बचाने के लिए समय समय पर दिशा निर्देश जारी किए हैं। सीबीएसई के साफ निर्देश हैं कि बच्चों को शिक्षण के दौरान किसी भी सूरत में ऐसी प्रताड़ना न दी जाए। स्कूलों के प्राचार्यों से अपेक्षा की गई है कि वे इन दिशानिर्देशों के बारे में सभी शिक्षकों को जानकारी देने के साथ यह भी सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना का शिकार न हो।
वर्ष 2007 में केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक स्कूलों में हर तीन छात्रों में से दो छात्र ‘कॉरपोरल पनिशमेंट’ का शिकार हो रहे हैं। एक अप्रैल 2010 से लागू आरटीई एक्ट के तहत बच्चों को शारीरिक या मानसिक दंड अथवा प्रताड़ना देना आपराधिक कृत्य माना गया है और इस एक्ट की धारा 17(2) के तहत इसमें सजा का प्रावधान भी है।
लेकिन ऐसा लगता है कि बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों ने खुद कभी इन नियमों को नहीं पढ़ा है। जरूरत इस बात की है कि बच्चों को शिक्षित करने से पहले शिक्षकों को इस मामले में शिक्षित किया जाए ताकि झाबुआ जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। और हां, यदि आपके कानूनों, नियमों और दिशानिर्देशों में प्रावधान है तो ऐसी घटनाओं के दोषी व्यक्ति को सजा भी मिलनी चाहिए ताकि दूसरा कोई इस तरह का कदम उठाने से थोड़ा तो डरे…