मासूम बालकों को दबावपूर्वक मादक पदार्थों के सेवन हेतु बाध्य करना या उनको पैडलर के रूप में उपयोग करना एनडीपीएस एक्ट में संगीन अपराध है। समानन्तर रूप से किशोर न्याय अधिनियम भी इस मामले में सख्त करवाई का प्रावधान करता है। ऐसे मामलों में सामान्य से दो गुनी सजा का प्रावधान है जो दस से बीस वर्षों तक भी संभव है।
ड्रग्स की जद में भारत का बचपन तेजी से घिरता जा रहा है यह स्थिति समाज के लिए बेहद चिंतनीय है और इसका समाधान सामूहिक चेतना से ही संभव है। यह बात चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 14 वी ई संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मप्र डीआरआई के प्रभारी डॉ. दिनेश बिसेन (आईआरएस) ने कही। संगोष्ठी को गुना के ख्यातिनाम चिकित्सक औऱ नशा मुक्ति कार्यकर्ता डॉ. आर.एस. भाटी ने भी संबोधित किया।
दर्जन भर राज्यों से जुड़े बाल अधिकार कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए डॉ. बिसेन ने बताया कि एनडीपीएस एक्ट मादक पदार्थों के अवैध कारोबार को रोकने के साथ ही पीड़ित लोगों के पुनर्वास की भी व्यापक व्यवस्था करता है। इस कानून की बुनियादी भावना वैश्विक मापदंडों औऱ परिभाषाओं के अनुरूप समाज को प्रतिबंधित मादक पदार्थों से मुक्त बनाए रखना है। गांजा औऱ इसके परिशोधित उत्पाद आज के दौर में सबसे गंभीर चुनौती बनकर उभरे हैं। बड़े पैमाने पर समाज के सभी स्तरों पर इसका चलन खतरनाक हद तक बढ़ रहा है।
युवाओं के अलावा बालकों में भी ई-सिगरेट का चलन खतरनाक ट्रेंड है, क्योंकि बचपन में नशे की लत अंततः समाज को समग्र तौर पर प्रभावित करती है। डॉ. बिसेन के अनुसार सीबीडी ऑयल, कोकीन, ओपीएम हेरोइन जैसे प्रतिबंधित मादक पदार्थ की नाबालिगों के बीच आज आसानी से उपलब्धता बड़ी सामाजिक समस्या बन गया है। एनडीपीएस एक्ट के सख्त कानूनी प्रावधान अकेले इस त्रासदी से समाज को मुक्त नहीं करा सकते है इसके लिए समाज में जागरूकता का स्तर बढ़ाया जाना आवश्यक है। सभी प्रतिभागियों से आग्रह है कि वे अपने कार्यक्षेत्र में बालकों को मादक पदार्थों से दूर रखने के लिए प्रभावी तरीके से जागरूकता सुनिश्चित करें।
नशा मुक्ति के क्षेत्र में अनुकरणीय काम कर रहे डॉ. आर.एस. भाटी ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए बताया कि बालकों में नशे की लत का सबसे प्रमुख कारण पारिवारिक परवरिश में बहुपक्षीय न्यूनता के साथ कतिपय सामाजिक संस्वीकृति भी है। हमारे आसपास आज भी तंबाकू, गुटखा या धूम्रपान को एक बुराई के रूप में नहीं बल्कि लोकजीवन की आम प्रचलित परम्परा के रूप में लिया जाता है। छोटे बच्चे जब अपने घर, पास-पड़ोस औऱ सामाजिकी में इसे देखते हैं तो नशे के प्रति उन्मुख हो जाते है। इसी तरह पारिवारिक देखरेख में समग्रता का भाव भी अक्सर बच्चों को मादक पदार्थों की ओर मोड़ता है।
जिन परिवारों में अल्कोहल का सेवन वयस्क लोग नियमित रूप से करते है वहा बच्चों में 60 फीसदी नशे को अपनाने की संभावना रहती है। ड्रग्स का सेवन पिछले कुछ समय से देश के छोटे नगरों में भी तेजी के साथ बढ़ा है। यानी ड्रग्स की दुनियां केवल धनी औऱ सम्पन्न वर्गों तक सीमित नहीं है बल्कि इसका विस्तार कस्बाई इलाकों में भी हुआ है। जिस तरह हमारा बचपन तेजी से नशे की गिरफ्त में जा रहा है वह भविष्य के लिए त्रासदी से कम नहीं है।
डॉ. भाटी ने बताया कि ऑनलाइन प्लेटफार्म जितना सहज हुआ है उसी अनुपात में नशे का दायरा भी बढ़ रहा है। लॉकडाउन अवधि में राष्ट्रीय पोर्टल पर दोगुने से ज्यादा फोन कॉल्स आने का मतलब है कि लोग नशे की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। नशा मुक्ति हेल्पलाइन नंबर 1800110031 पर विहित प्रक्रिया अपनाकर नशा मुक्ति पुनर्वास सुनिश्चित किया जाता है। एक परिवार चैतन्य रहकर अपने बच्चों को इस दलदल में जाने से रोक सकते है क्योंकि शुरुआती दौर में ऐसे बालकों का व्यवहार सामान्य से अलग होता है और इसे माँ पिता आसानी से चिन्हित कर सकते हैं। आज भी नशा मुक्ति केंद्रों पर पश्चिमी देशों की तरह हमारे यहां आधारभूत सुविधाओं और विशेषज्ञ सलाहकारों की कमी है।
बोकारो झारखण्ड से प्रभाकर सिंह ने बताया कि उनके राज्य में भिक्षावृत्ति औऱ बाल श्रम में सलंग्न बालकों की बड़ी संख्या नशे की गिरफ्त में है। नामी स्कूलों के बच्चों द्वारा ई-सिगरेट एवं अन्य महंगे नशों की ओर भी श्री प्रभाकर ने ध्यान आकृष्ट किया। फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. राघवेंद्र शर्मा ने गुना में डॉ. भाटी के नशा मुक्ति प्रकल्प को अनुकरणीय मिसाल निरूपित करते हुए इस मॉडल के देशव्यापी विस्तार की आवश्यकता पर बल दिया। डॉ. शर्मा ने भरोसा जताया कि चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन इस मामले में शासन स्तर पर नीतिगत पहल के लिए भी प्रयास करेगा।
फाउंडेशन के सचिव डॉ. कृपाशंकर चौबे ने एम्स के एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि देश में 83 फीसदी नशा तंबाकू, 67 फीसदी अल्कोहल, 38 फीसदी कोकीन और 35 फीसदी सूंघने वाला मसलन सॉल्यूशन, व्हाइटनर, आयोडेक्स व अन्य पदार्थों से होता है। डॉ. चौबे ने अल्लामा इकबाल का शेर पढ़ते हुए बच्चों को नशे की त्रासदी से दूर करने का आह्वान किया-
“नशा पिला के गिराना तो सबको आता है।
मजा तो तब है कि गिरतों को थाम ले कोई”
इस 14 वीं ई-संगोष्ठी में मप्र के अलावा बिहार, बंगाल, आसाम, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, छतीसगढ़, यूपी, महाराष्ट्र, उत्तराखंड के सीडब्ल्यूसी एवं जेजेबी सदस्यों ने भाग लिया।