प्रकाश पुरोहित इंदौर के शाम के अखबार के सम्पादक हैं लेकिन मोबाइल नहीं रखते. उनके पास टीवी भी नहीं है क्योंकि वे टीवी देखना पसंद नहीं करते। वे फेसबुक पर नहीं हैं, ट्विटर पर भी नहीं। लिंक्डइन या इंस्टाग्राम पर भी उनका खाता नहीं है। मीडिया में हैं, पर सोशल मीडिया में नहीं। कार है पर सिटी बस से दफ़्तर जाते-आते हैं। कार के हॉर्न का उपयोग किये महीनों हो गये उन्हें। हॉर्न को समाज के प्रति अपराध मानते हैं; ‘नो हॉर्न, ओके?’ मोबाइल और टीवी के बिना उनका काम कैसे चलता है, यह पूछने पर कहते हैं कि मैं रेडियो पर ख़बरें सुनता हूँ; कम्प्यूटर पर न्यूज़ की साइट्स और ईपेपर पढ़ता हूँ।
मैं उनका शाम का दैनिक नहीं पढ़ता, लेकिन पता है कि राजेन्द्र माथुर और राहुल बारपुते के शिष्य होने के नाते वे पत्रकारिता अच्छी करते हैं। मेरे हमनाम हैं तो कई बार उनके लेख पढ़कर लोग मुझे बधाई दे देते हैं; पत्रकारिता की शुरूआत में नईदुनिया के सहकर्मी और मित्र होने के नाते मुझे वह शिरोधार्य होता है!
”तुम्हारे पास कार है, बंगला है; मोबाइल भी रखा करो यार” कहने पर बोलते हैं कि मेरा काम तो चल ही रहा है। दलील देते हैं कि जानेमाने क्रिकेट-कमेंटेटर सुशील दोषी और अनिल भाई त्रिवेदी भी नहीं रखते हैं मोबाइल। हम कहते हैं –”अब वे भी रखते हैं; बीवियां थमा देती हैं, पता है क्या?”
प्रकाश पुरोहित की पांच साल की पोती है, ”क्या नाम है उसका?”
”अभी कोई नाम नहीं है। हम क्यों थोपें अपनी पसंद का नाम ? बड़ी होगी तब जो पसंद आएगा, नाम रख लेगी. ”
”कुछ तो रखा होगा, स्कूल के लिए ?”
”वह स्कूल नहीं जाती, स्कूल उसके घर आता है!”
”…मतलब ?”
”वह स्कूल नहीं जाती, मतलब स्कूल नहीं जाती। घर पर जो सीखना चाहे, सीखती है। जब सोना चाहे, सोती है, जब जागना चाहे, जागती है। जब जो खेलना चाहे, खेलती है। स्कूल भेजने का मतलब उसे एक साँचे में ढलने के लिए झोंकना ! सुबह जल्दी उठाओ, स्कूल के लिए तैयार करो, नाश्ता कराओ, वाटर बॉटल और टिफिन बांधकर दो। फिर वह आये तब होमवर्क कराओ। ऐसे में कब खेलेगा बच्चा? कब सीखेगा जीवन के असली पाठ? उसे डांसर बनना हो तो डांस सीखे, चित्रकार बनना हो तो चित्रकारी सीखे, फोटोग्राफर बनना हो तो कैमरा थाम ले; यह क्या? नर्सरी, जूनियर केजी, सीनियर केजी, पहली, दूसरी, तीसरी… हां, 17-18 की होगी; तब 12 वीं की परीक्षा देना चाहे; तब दे देगी। और पढ़ना चाहे, पढ़ लेगी। धीरूभाई अम्बानी कौन से एमबीए थे? सचिन तेंडुलकर ने कौन सी पीएच-डी की है? दुनिया के सबसे धनी बिल गेट्स ग्रेज्युएट भी नहीं हैं। ए आर रहमान ने चार साल की उम्र में पियानो बजाना शुरू कर दिया था, क्योंकि उसे स्कूल की इल्लत नहीं थी। ”
”अगर बच्चा बड़ा होकर अभिभावकों को ही कोसने लगे कि स्कूल क्यों नहीं भेजा, तब?”
”बारहवीं बाद उसे खुद तय करना है। ”
”जीवन में बहुत बड़ी जोखिम ले रहे हो भाई!”
”जोखिम तो मेरे बेटे-बहू ले रहे हैं। मैं तो केवल उनके साथ खड़ा हूँ। ”
”कभी तुम अकेले पड़ जाओगे, डर नहीं लगता?”
”नहीं, देश भर में ऐसे करीब 50,000 बच्चे हैं, जो घर पर ही शिक्षा ले रहे हैं। असली शिक्षा स्कूल में ही मिले, ज़रूरी नहीं है। ”
मैं चुप ! उनकी बातों से मुझे लगा कि जिसे हम सच समझते हैं, केवल वही सच नहीं है। सच के कई रूप हो सकते हैं। दुनिया में अधिकांश लोग जो कर रहे हैं, वही करना आवश्यक नहीं है। लीक से हटकर भी कुछ अच्छा किया जा सकता है; पर उसके लिए हिम्मत चाहिए, हिम्मत !
(वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिन्दुस्तानी की फेसबुक वॉल से)