राकेश दुबे

देश में हर वर्ष करीब से 6 प्रतिशत की दर से हवाई यात्रियों की संख्या में वृद्धि दर्ज हुई है। भारतीय हवाईअड्डों पर भीड़भाड़ बढ़ रही है। अधिकतर बड़े हवाईअड्डे अपनी हैंडलिंग क्षमता से 85 प्रतिशत से 120 प्रतिशत पर काम कर रहे हैं। अब देश में चालू हवाईअड्डों की संख्या 140 हो गयी है। वर्ष 2014 में, ऐसे हवाई अड्डों की संख्या 74 थी। केंद्र सरकार ने आगामी पांच वर्षों में 220 हवाईअड्डों के विकास और संचालन का लक्ष्य निर्धारित किया है। ऐसे में बहुत कुछ होना शेष है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के प्रमुख हवाईअड्डों में लगभग 83 प्रतिशत कुल यात्री यातायात है। ये हवाईअड्डे अपनी सैचुरेशन लिमिट के बहुत करीब हैं और इसलिए मंत्रालय का कहना है कि टियर-2 और टियर-3 शहरों को अधिक संख्या में एविएशन नेटवर्क से जोड़ने की जरूरत है।

क्षेत्रीय हवाई कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने और आम लोगों के लिए हवाई यात्रा को सस्ता बनाने के लिए 2016 में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना को शुरू किया गया। 2016-17 से 2021-22 के दौरान पांच वर्षों के लिए इस योजना का बजट 4,500 करोड़ रुपए है। 16 दिसंबर, 2021 तक इसके लिए 46 प्रतिशत राशि जारी कर दी गई है। 2022-23 में इस योजना के लिए 601 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया जो 2021-22 के संशोधित अनुमानों (994 करोड़ रुपए) से 60 प्रतिशत कम है।

उल्लेखनीय है कि कोविड महामारी के दौरान उड्डयन क्षेत्र को भारी नुकसान सहना पड़ा था और एयरलाइन कंपनियां अभी भी घाटे की भरपाई में जुटी हुई हैं। विशेषज्ञों का आकलन है कि 2024 तक भारत का उड्डयन बाजार दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन जायेगा। अर्थव्यवस्था में तीव्र वृद्धि को बनाये रखने के लिए नये हवाई अड्डों और अन्य संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना आवश्यक है।

कहने को व्यावसायिक और यात्री आवागमन के साथ-साथ पर्यटन के व्यापक विस्तार को भी ध्यान में रखा जा रहा है। आज मध्य आय वर्गीय परिवारों की आमदनी बढ़ने, उड़ान सेवा में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार के साथ सकारात्मक नीतिगत आधार के कारण यह क्षेत्र बढ़ता जा रहा है।

वर्ष 2010 में हमारे देश में 7.90 करोड़ लोगों ने हवाई यात्रा की थी। वर्ष 2017 में यह आंकड़ा 15.80 करोड़ हो गया1 अनुमान है कि 2037 तक यह संख्या 52 करोड़ तक पहुंच जायेगी। वर्तमान वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में देश की आर्थिक प्रगति के लिए गति-शक्ति योजना के तहत जिन सात इंजनों का उल्लेख किया गया था, उसमें एक हवाईअड्डों का विस्तार भी था|

भारतीय उड्डयन बाजार के लगभग 14-15 प्रतिशत वार्षिक विकास दर के साथ 2025 तक 4.33 अरब डॉलर होने का अनुमान है। इस क्षेत्र में सेवाओं का विस्तार और उनकी गुणवत्ता बढ़ाने के काम में ढेर सारी कंपनियों के साथ 42 से अधिक स्टार्टअप भी सक्रिय हैं। पायलट और अन्य कर्मचारियों की मांग भी बढ़ती जा रही है। अभी देश में 34 उड़ान प्रशिक्षण संस्थान हैं। इनकी संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है। माना जा रहा है कि 2026 तक भारतीय ड्रोन उद्योग का आकार भी 1.8 अरब डॉलर हो जायेगा। इसके लिए भी संचालकों की मांग बढ़ेगी। उड़ान कंपनियों को सुरक्षा पर भी समुचित ध्यान देना चाहिए।

देश में नागरिक उड्डयन से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने, उसे अपग्रेड करने, उसके रखरखाव और प्रबंधन का काम भारतीय एयरपोर्ट अथॉरिटी (एएआई) के जिम्मे है। कुछ हवाईअड्डों का स्वामित्व एएआई के पास है और कनसेशन की अवधि पूरी होने के बाद कुछ निजी हवाई अड्डों का परिचालन एएआई के पास वापस चला जाएगा। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने कहा था कि सरकार के पास 2024 तक 24 पीपीपी हवाईअड्डे होने की उम्मीद है। 

कमिटी ने हवाईअड्डों को कनसेशन पर देने के तरीके में संरचनागत मुद्दों पर गौर किया। अब तक जो कंपनियां सबसे बड़ी राशि की बोली लगाती हैं, उन्हें हवाईअड्डे के परिचालन का अधिकार दिया जाता है। इससे एयलाइन ऑपरेटर ज्यादा प्रभार वसूलते हैं। इस प्रणाली में सेवा की वास्तविक लागत पर ध्यान नहीं दिया जाता और एयरलाइन ऑपरेटरों की लागत में बेतहाशा बढ़ोतरी होती है। जिसका सीधा असर उपभोक्ता की जेब पर होता है। भविष्य में नीतियों से संबंधित मुद्दों में एएआई की बड़ी भूमिका होगी जिसमें अच्छी क्वालिटी, सुरक्षित और ग्राहक अनुकूल हवाईअड्डे और एयर नैविगेशन सेवाएं प्रदान करना शामिल है।
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