भोपाल/ यदि कोई आपसे कहे कि भारतीय समाज को अपराध मुक्त किया जा सकता है तो आप शायद उसे शेखचिल्ली ही समझेंगे। और यह बात भी यदि एक पुलिसवाला खुद कहे तो हो सकता है इस विचार का मखौल उड़ाने की आपकी डिग्री और बढ़ जाए। लेकिन मध्यप्रदेश में एक पुलिस वाला पूरी शिद्दत के साथ इस विचार को अमली जामा पहनाने में लगा है कि यदि ईमानदार कोशिश की जाए और संकल्पबद्ध होकर काम किया जाए तो ‘अपराध मुक्त भारत’ का लक्ष्य बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।
जिस पुलिस अफसर ने इस विचार को लेकर काम करना शुरू किया है उनका नाम है मैथिलीशरण गुप्त। भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी गुप्त इन दिनों मध्यप्रदेश में पुलिस रिफॉर्म्स के डायरेक्टर जनरल हैं। उन्होंने स्वचालित अन्वेषण समर्थन प्रणाली का उपयोग करके अपराध मुक्त भारत का निर्माण करने की एक संकल्पना को अमली जामा पहचाने की मुहिम शुरू की है। उनकी इस मुहिम को समाज के विभिन्न वर्गों से समर्थन भी मिला है।
गुप्त बताते हैं कि वे जांच और अपराधियों का पता लगाने में वैज्ञानिक और तकनीकी का उपयोग करते हुए इसके लिए एक मजबूत और तटस्थ संरचना का निर्माण कर रहे हैं जिसमें नवीन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके स्वचालित जांच समर्थन प्रणाली के माध्यम से अपराध मुक्त भारत की मजबूत नींव रखी जा सके।
इसी सिलसिले में एक यू-टयूब चैनल पर नियमित रूप से विमर्श भी आयोजित किया जा रहा है जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े लोग अपने विचार रखते हुए इस अवधारणा को मूर्त रूप देने की प्रक्रिया में भागीदार बन रहे हैं। यूट्यूब चैनल ‘क्राइम फ्री भारत’ के माध्यम से मेहमानों एवं दर्शकों द्वारा रखे गए प्रश्नों और शंकाओं पर विस्तार से चर्चा की जाती है। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण प्रत्येक सोमवार को शाम 5:30 बजे से 7:30 बजे तक किया जाता है।
27 जुलाई को प्रसारित ऐसी ही एक कड़ी में अपराध मुक्त भारत को लेकर चर्चा के तीन सत्र हुए जिसमें मुख्य विषय था- “अपराध मुक्त भारत: सक्रिय पुलिस की सहकर्मी समीक्षा का विश्लेषण एवं भविष्य की चुनौतियों की कल्पना” इस सत्र का संचालन सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट पीयूष द्विवेदी द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में श्रीमती तस्लीमा खान, सेकेंड इन कमांड, सीआरपीएफ, मध्य प्रदेश ने कहा कि अपराध मुक्त भारत बनाने में जनता और पुलिस का समन्वय बहुत महत्वपूर्ण है। वहीं श्री गुप्त का मत था कि पुलिस बहुत सारी जिम्मेदारियों से बोझिल है और अगर सीआरपीएफ खुद को और अच्छे तरीके से तैयार करती है तो वह पुलिस से बेहतर काम कर सकती है।
कार्यक्रम में सम्मिलित वरिष्ठ पत्रकार ललित शास्त्री ने कहा कि सार्वजनिक जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है। पुलिस को पेशेवर बल होना चाहिए ना कि अधीनस्थ बल। इस पर श्री गुप्त ने कहा कि वास्तविक समय आधारित तकनीक की मदद से हम प्रत्येक आपराधिक गतिविधि पर नजर रख सकते हैं और अपराध की वस्तुस्थिति को निश्चित कर सकते हैं।
श्री एस नितिन, शिक्षाविद, जेनेसिस सॉल्यूशंस ने कहा कि समय की आवश्यकता है कि समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए कॉलेज के पाठ्यक्रम में एफ आई आर दर्ज कराने संबंधित मूल प्रक्रियाओं को शामिल किया जाना चाहिए। श्री हरिओम अवस्थी, संविधान विधि विशेषज्ञ एवं सहायक प्राध्यापक, प्रेस्टीज इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट ग्वालियर ने बताया कि जनता और पुलिस के बीच विश्वास का स्तर बहुत खराब है और इस क्षेत्र में बहुत काम करने की आवश्यकता है। श्री गुप्त ने इसके जवाब में कहा कि यह तकनीक ना केवल प्राधिकरण बल्कि देश के आम नागरिकों को भी एकीकृत कर रही है और अपराध नियंत्रण में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. प्रेम कुमार अग्रवाल, विभागाध्यक्ष हुगली मोहसिन कॉलेज, ने सार्वजनिक अभियोजकों की कार्यशैली को प्रश्न चिन्हित करते हुए कहा कि जनता के हित एवं कानून के दायरे में उनके काम को नियंत्रित किया जाना चाहिए। पूरा सत्र आप https://youtu.be/X9MZy3eK9JE पर देख सकते हैं।