चुनाव के साल में शिवराज के लिए बढ़ती चुनौतियां

पिछले दिनों कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जो मध्‍यप्रदेश के राजनीतिक परिदृश्‍य में उथल पुथल के संकेत देती हैं। ऐसा लग रहा है मानो चुनौती का सामना करने को हरदम तैयार रहने वाले मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह, आने वाले दिनों में नई तरह की चुनौतियों से घिरने जा रहे हैं। इन चुनौतियों या संकट की आहट इसलिए भी वर्तमान नेतृत्‍व को चिंता में डालने वाली हैं क्‍योंकि राज्‍य में इसी साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं।

जिन घटनाओं की मैं बात कर रहा हूं उनमें सबसे पहली है हाल ही में आए नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे, फिर है देश के मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त के रूप में ओपी रावत की नियुक्ति और फिर इन सबसे ऊपर, गुजरात की पूर्व मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करीबी नेता आनंदीबेन पटेल को मध्‍यप्रदेश का पूर्णकालिक राज्‍यपाल बनाया जाना।

नवंबर में जब चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आए थे तो मैंने इसी कॉलम में सवाल उठाया था कि क्या चित्रकूट के नतीजे को समग्र रूप से भाजपा और शिवराज के प्रति ‘मोहभंग’ के रूप में देखा जा सकता है या यह किसी ‘स्थानीय राजनीतिक समीकरण’ का परिणाम है। मेरा तर्क था कि सिर्फ ‘मोहभंग’ के चलते ही प्रदेश में किसी राजनीतिक बदलाव की संभावना बनती है, अन्यथा तो चुनाव प्रबंधन, आर्थिक स्थिति और रणनीतिक व्यूह रचना के लिहाज से भाजपा आज भी कमजोर नहीं है।

अब नगरीय निकायों के जो परिणाम आए हैं उनमें कांग्रेस का प्रदर्शन बताता है कि उसकी स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है। वह भाजपा को बराबरी पर टक्‍कर देने की स्थिति में आ रही है और यह स्थिति तब है जब स्‍वयं कांग्रेस संगठन या उसके नेताओं की ओर से इस दिशा में किया गया योगदान कोई खास उल्‍लेखनीय नहीं है। तो क्‍या यह माना जाए कि प्रदेश में सत्‍तारूढ़ दल के प्रति मोहभंग की स्थिति बन रही हैयदि ऐसा है तो भाजपा और शिवराज के लिए यह बहुत, बहुत बड़ी चुनौती है।

दूसरा मामला यूं देखने में बहुत छोटा है और उसका प्रदेश की किसी राजनीतिक गतिविधि या उठापटक से कोई सीधा लेना देना भी दिखाई नहीं देता, लेकिन उसका इम्‍पेक्‍ट कतई कम करके नहीं आंका जा सकता। यह मामला मध्‍यप्रदेश कैडर के ही 1977 बैच के सेवानिवृत्‍त आईएएस अधिकारी और वर्तमान में भारत के चुनाव आयुक्‍त ओपी रावत की देश के मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त के रूप में नियुक्ति का है।

मध्‍यप्रदेश की नौकरशाही में ओपी रावत का नाम बड़े सम्‍मान से लिया जाता है। मध्‍यप्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर के प्रमुख सचिव रहने के अलावा वे प्रदेश में वाणिज्य और उद्योग, महिला एवं बाल विकास, जनजाति कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव और जनसंपर्क  निदेशक भी रहे हैं। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के रूप में उन्‍होंने नर्मदा घाटी परियोजनाओं को पूरा करने में उल्‍लेखनीय योगदान किया। आबकारी आयुक्त रहते हुए राज्‍य की आबकारी नीति में कई अहम बदलाव के लिए भी उन्‍हें जाना जाता है।

यह तथ्‍य किसी से छिपा नहीं है कि ओपी रावत प्रदेश के मुख्‍य सचिव पद के प्रमुख दावेदार थे और वे स्‍वयं भी इस प्रदेश से गहरा लगाव होने के कारण इस पद को पाने की इच्‍छा रखते थे। लेकिन काबिल और निष्‍ठावान अफसर होने के बावजूद रावत को शिवराजसिंह ने मुख्‍य सचिव नहीं बनाया। और रावत काफी दुखी मन से केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गए। वहीं से वे रिटायर हुए।

समय का फेर देखिए कि आज वे प्रशासनिक दृष्टि से देश के ऐसे ताकतवर पद पर हैं जो राजनीति के लिहाज से बहुत अहम है। मैं यह नहीं कहता कि देश के मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त के तौर पर ओपी रावत मध्‍यप्रदेश के राजनीतिक नेतृत्‍व के साथ कोई बदले की भावना से काम करेंगे। यह न तो उनकी फितरत में है और न वे कभी ऐसा कुछ करके अपनी प्रतिष्‍ठा पर आंच आने देंगे।

लेकिन हां, मध्‍यप्रदेश की प्रशासनिक व राजनीतिक मशीनरी को बहुत सावधान हो जाना चाहिए, क्‍योंकि चुनाव के दौरान यहां होने वाली किसी भी संभावित गड़बड़ी पर अब चुनाव आयोग की बहुत ही बारीक नजर रहेगी। मध्‍यप्रदेश के ही प्रशासनिक अधिकारी होने और मैदानी स्‍तर से लेकर मुख्‍यमंत्री सचिवालय तक में काम करने के कारण यहां होने वाली तमाम गतिविधियां रावत से अछूती नहीं हैं। यहां उनका तगड़ा संपर्क तंत्र है, लिहाजा सत्‍तारूढ़ दल को बहुत संभलकर चलना होगा।  

तीसरा और सबसे महत्‍वपूर्ण मामला गुजरात की पूर्व मुख्‍यमंत्री आनंदीबेन पटेल को प्रदेश का राज्‍यपाल बनाया जाना है। आनंदीबेन के रूप में मध्‍यप्रदेश को लंबे समय बाद कोई ‘सक्रिय’ राजनेता पूर्णकालिक राज्‍यपाल के रूप में मिला है। सब जानते हैं कि आनंदीबेन ने गुजरात में मुख्‍यमंत्री पद से भले ही इस्‍तीफा दिया हो लेकिन राजनीति में उनकी दिलचस्‍पी और सक्रियता दोनों कम नहीं हुई है।

मध्‍यप्रदेश की राज्‍यपाल बनने के बाद आनंदीबेन के तेवर क्‍या होंगे इसकी एक झलक सोमवार को उनके मध्‍यप्रदेश प्रवेश से ही मिल गई है। आमतौर पर अब तक यही होता आया है कि राज्‍यपाल नियुक्‍त किए गए किसी भी व्‍यक्ति को लेने राज्‍य सरकार का हवाई जहाज जाता है। लेकिन आनंदीबेन ने गुजरात से मध्‍यप्रदेश आने के लिए राजकीय विमान के बजाय चार्टर्ड बस का विकल्‍प चुना।

जैसे रंगमंच में किसी कलाकार की एंट्री से ही मंच पर उसके कला-प्रदर्शन के आसार दिख जाते हैं, आनंदीबेन ने उसी तरह मध्‍यप्रदेश के राजनीतिक रंगमंच पर बहुत ही धांसू एंट्री ली है। शिवराज को यात्राएं निकालने का बहुत शौक है, मोदी ने अब उन्‍हें ऐसा ही शौक रखने वाला उनसे भी ऊंचा ओहदेदार दे दिया है। पहले ही कदम में आनंदीबेन ने लाटसाहबी वाला चोगा अलग रखकर खुद को आम आदमी की शक्‍ल में प्रस्‍तुत किया है। यह इस बात का संकेत है कि राजभवन भविष्‍य में सिर्फ कागजों पर सील सिक्‍के लगाना वाला दफ्तर मात्र नहीं रहेगा, बल्कि लोगों से मिलने जुलने और उनका दुखदर्द जानने में भी उसकी सक्रिय भूमिका होगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आनंदीबेन के बीच आज भी विश्‍वास का रिश्‍ता कायम है। ऐसे में मध्‍यप्रदेश की तमाम अंदरूनी और पल पल की जानकारियां अब पीएमओ या खुद नरेंद्र मोदी तक बिना लागलपेट के पहुंचेंगी। दिल्‍ली पहुंचने वाली सूचनाओं में न तो कोई मिलावट की जा सकेगी और न ही उन्‍हें चासनी चढ़ाकर प्रस्‍तुत किया जा सकेगा। वैसे भी राज्‍यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है, लेकिन यहां तो राज्‍यपाल केंद्र की विश्‍वस्‍त निगहबान भी होंगी।

इसीलिए मैंने कहा कि चुनाव के साल में शिवराज की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं और मुश्किलें भी…

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here