अजय बोकिल
क्या ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का देश के साथ मजाक था या वे अपने सोशल मीडिया फालोअरों के धैर्य की परीक्षा ले रहे थे, साफ तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है। सोमवार की शाम जैसे ही ट्विटर पर मोदी का ट्वीट आया कि वे इस रविवार को (नामुराद) सोशल मीडिया को छोड़ने का मन बना रहे हैं तो लोगों ने उनके ‘मन की थाह’ लेना और सोशल मीडिया संन्यास के कारणों तथा भविष्य की मीमांसा शुरू कर दी। कुछ ने तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट बंद करने का ऐलान भी कर डाला। टीवी चैनलों ने तो इसे ‘सोशल मीडिया बम विस्फोट’ मानकर हाहाकार मचाना शुरू कर दिया। मानो मोदीजी का सोशल मीडिया अकाउंट बंद हो गया तो पूरे भारत का अकाउंट ही बंद हो जाएगा।
कुछ टीवी एंकर तो सोशल मीडिया पर ‘अनसोशल’ होने के आरोप लगाते हुए इस गम में चूडि़यां फोड़ने पर उतारू दिखीं। कुछ समय को लगा कि मोदी का यह ट्वीट अब दिल्ली के दंगों, सीएए-एनआरसी और कोरोना वायरस पर भी भारी पड़ने वाला है। इस ट्वीट के बाद हजारों गुहार भरे ट्वीट होने लगे कि मोदीजी हमे यूं छोड़कर न जाइए। आप का यूं ‘सोशली’ बिछड़ना हमारे लिए अकल्पनीय है। सोशल मीडिया यूजर खुद को ‘सोशली’ अनाथ महसूस करने लगेंगे। क्योंकि आप हैं तो सोशल मीडिया है, आप हैं तो इस मीडिया पर एक्टिव रहने की हिम्मत है, आप हैं तो जिंदगी को एक मकसद मिला हुआ है, आप हैं तो देश बचा हुआ है, आप हैं तो सब कुछ है, वगैरह।
गौरतलब है कि पीएम मोदी उन शख्सियतों में हैं, जिनके देश और विदेश में भी करोड़ो सोशल मीडिया फालोअर हैं। मोदी के ट्विटर पर 5 करोड़ 33 लाख तो फेसबुक पर 4 करोड़ 4 लाख फॉलोअर्स हैं। इंस्टाग्राम पर उनके 3 करोड़ 52 लाख फॉलोअर्स हैं। जबकि यूट्यूब पर उनके 45 लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैंI उनके नाम पर दर्जनों फर्जी अकाउंट भी हैं। मोदी ट्विटर पर खुद भी 2371 लोगों को फॉलो करते हैं, जिनमें कुछ विवादित लोग भी हैं। उनके फालोअरों में भक्त भी हैं और आलोचक भी हैं। लेकिन इसमें दो राय नहीं कि मोदी कोई भी बात अपने तरीके और अपने एंगल से लोगों तक पहुंचाने में माहिर हैं। यही उनकी ताकत भी है। समर्थक उनकी बातों पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं। यानी ‘मोदी है तो मुमकिन है..।‘
इसका दूसरा अर्थ यह हुआ कि अगर मोदी नहीं तो हर चीज नामुमकिन है। लिहाजा मोदी के सोशल मीडिया से क्षणिक संन्यास की सूचना ने भी लोगों को विचलित कर दिया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तत्काल सीख दी कि मोदी कुछ छोड़ना ही चाहते हैं तो नफरत छोड़ें बजाए ट्विटर के। बसपा सुप्रीमो मायावती ने आशंका जताई कि कहीं मोदी का ये कदम जनता का ध्यान बंटाने का एक और प्रयास न हो। हालांकि मोदी ने अपने ट्वीट में इतना ही कहा था कि वे सोशल मीडिया छोड़ने के बारे में ‘सोच’ रहे हैं। छोड़ा नहीं है। छोड़ ही देंगे यह भी तय नहीं है। इसके बावजूद कयासबाजी का सेंसेक्स छंलागें मारने लगा। शायद इसलिए क्योंकि मोदी कौन सी बात कब और किस मंशा से कह रहे हैं, इसको लेकर अक्सर असमंजस रहता है। उधर मोदी के इस ट्वीट को 49 हजार बार रिट्वीट किया गया।
इस बीच टीवी चैनलों की प्रायोजित बहसों में काल्पनिक प्रश्नपत्र बंटने लगा कि मोदीजी आखिर सोशल मीडिया त्याग क्यों कर रहे हैं, ऐसी कौन सी मजबूरियां हैं? इसके पीछे कहीं कोई भय या वितृष्णा तो नहीं? क्योंकि आजकल सोशल मीडिया पर भी नए किस्म का ‘टेरेरिज्म’ शुरू हो गया है। यह है ‘ट्रोल टेरेरिज्म’ यानी दुत्कारने का दहशतवाद। मोदी तो ट्विटर पर 2009 से हैं, जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि उनके भीतर सोशल मीडिया के प्रति वैराग्य भाव जाग उठा। अगर उन्होंने सच में वैराग्य धारण कर लिया तो सोशल मीडिया फालोअर्स का क्या होगा? भक्ति भाव का ये सिंदूर कहीं पुंछ तो नहीं जाएगा? गनीमत रही कि चैनलों ने ज्योतिषियों और तांत्रिकों से इस ‘सोशल मीडिया वैराग्य’ का कारण और तोड़ नहीं पूछा।
अलबत्ता कुछ जानकारों ने बताया कि मोदी का यह सोशल मीडिया परित्याग किसी तरह का वानप्रस्थ नहीं है, बल्कि उनके संभावित नमो एप को प्रमोट करने के लिए किया गया ‘टोटका’ है। कहा गया कि मोदी के सोशल मीडिया अकाउंट पर लोग फॉलो करने के साथ-साथ रिएक्ट भी करते हैं, जो कि ‘ठीक’ नहीं है। नमो एप पर लोग केवल मोदीजी के विचारों को ही पढ़ और देख पाएंगे। जिससे ‘मोदी उवाच’ की पवित्रता कायम रहेगी। आम भाषा में कहें तो जिस तरह प्रधानमंत्री रेडियो पर ‘मन की बात’ कहते हैं, उसी तर्ज पर अब वो एप के जरिए ‘मन की बात’ रखेंगे, जो जन की दखलंदाजी से दूर रहेगा। नमो एप पिछले साल ही रिलांच हुआ था। हालांकि इस एप की उपयोगिता और उद्देश्य को लेकर काफी आलोचना भी होती रही है। मोदी के सोशल मीडिया तजने की खबर से एक डर यह भी फैला कि अगर मोदी जैसी हस्तियां भी सोशल मीडिया से रुखसत हो रही हैं तो इस प्लेटफार्म पर रहेगा कौन?
इसी के साथ मन में यह सवाल भी कौंधा कि लोग आखिर सोशल मीडिया पर एक्टिव होते क्यों हैं? कुछ मौलिक सामग्री और जरूरी सूचनाओं को छोड़ दे तो इन प्लेटफार्म्स पर अमूमन जो कुछ पोस्ट किया जाता है और जिस तेजी से लोग इन पर ‘लाइक’ व रिएक्ट करते हैं, उससे लगता है कि लोगों के पास दूसरा कोई काम नहीं बचा है। जब लाइक्स की संख्या करोड़ों में जा पहुंचती है तो खुद पोस्ट करने वाले को भी समझ नहीं आता कि उसकी लाइकिंग वैल्यू क्या है? दरअसल सोशल मीडिया यूजर्स का अपना मनोविज्ञान है। सोशल मीडिया पर स्टेटस डालते रहना, उसे पल-पल चैक करते रहना, कुछ नया डलने में थोड़ा भी ब्रेक होने पर बैचेन हो उठना, पोस्ट डालते समय शील और अश्लील की लक्ष्मण रेखा को जिज्ञासा के डस्टर से मिटाते रहना, किसी भी पोस्ट पर तुरंत रिएक्ट होना, कोई भी लाइक आदि न मिलने पर जीवन को निस्सार मान लेना और सोशल मीडिया को ही जीने की एकमात्र वजह समझ लेना आधुनिक सोशल मीडिया कल्चर की अघोषित आचार संहिता है।
जाहिर है कि सोशल मीडिया ने हमारी वास्तविक जिंदगी के बरक्स एक ऐसी नकली दुनिया खड़ी कर दी है, जो हर घड़ी फेसबुक, ट्विटर अथवा व्हाट्स एप में ही धड़कती रहती है। सोशल मीडिया की लत ही इन सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की बेतहाशा कमाई का आधार है। जिसके जितने यूजर, उसकी जेब में उतने ही डॉलर। सोशल मीडिया की यह कमाई विज्ञापनों के जरिए होती है। लेकिन विज्ञापनों का मिलना भी यूजरों की संख्या पर निर्भर करता है। इसीलिए बड़े नेता, सेलेब्रिटी और तमाम विवादित बातें किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म के लिए केटेलिस्ट का काम करती हैं।
यूं आजकल कई लोग सोशल मीडिया के हमारी जिंदगी में अवांछित हस्तक्षेप से उकता कर इसे या तो छोड़ रहे हैं या फिर कुछ समय के लिए ‘ब्रेक’ ले रहे हैं। इस हिसाब से मोदीजी ने जो ट्वीट किया, उसमें कुछ भी गैर नहीं था। वे भी इंसान हैं और सोशल मीडिया पर रहना या नहीं रहना उनका निजी फैसला है। इस पर सक्रिय रहने की उनकी कोई संवैधानिक बाध्यता भी नहीं है। फिर भी मोदी ने उनके सोशल मीडिया फालोअरों को ‘झटका’ भी दिया तो क्यों? इसका राज भी खुद उन्होंने ही 16 घंटे बाद खोलते हुए ट्विटर पर बताया कि वे 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपना सोशल मीडिया अकाउंट उन महिलाओं के हवाले करेंगे, जिनका जीवन हमारे लिए प्रेरणास्पद है।
मोदी ने ऐसी महिलाओं का आव्हान किया कि वे अपनी कहानियां हैशटैग #SheInspiresUs (वह हमें प्रेरित करती हैं) पर साझा करें। आधे घंटे में यह हैशटैग इंडिया में टॉप ट्रेंड करने लगा। कई महिलाओं ने इसे मोदी का नवाचार माना तो विरोधियों की नजर में यह भी प्रधानमंत्री का नया प्रचार गिमिक था। यह भी मुमकिन है कि मोदीजी ने ‘अप्रैल फूल’ 2 मार्च को ही सेलिब्रेट कर मजे ले लिए हों।
(लेखक की फेसबुक वॉल से)