विजयमनोहर तिवारी
तीनों महत्वपूर्ण हिंदी भाषी राज्य छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में गूंजा एक वाक्य अगले लोकसभा चुनाव का मूलमंत्र बनना तय है-मोदी की गारंटी। यह गारंटी राज्यों के नेतृत्व में आमूलचूल बदलाव की थी, यह परिणाम के बाद स्पष्ट हो चुका है। एक सीएम के साथ दो डिप्टी सीएम के रूप में बिल्कुल ही नए चेहरे।
अब मंत्रिमंडलों में गारंटी का अगला असर दिखाई देगा, जब कई नए-पुराने विधायक पहली बार शपथ लेकर नेतृत्व की कतार में ससम्मान आएँगे। पार्टी दिवाली की रँगाई-पुताई में चमके घर जैसी नजर आएगी, जब कुछ फर्नीचर बदला जाता है, खिड़की-दरवाजों पर नए परदे और दीवारों पर कुछ नई तस्वीरें टँग जाती हैं। कुछ जरूरी सामान नए सिरे से किसी और इस्तेमाल में लाने के लिए रख लिया जाता है और बड़ी मात्रा में कूड़ा साफ हो जाता है। ये चुनाव बीजेपी के लिए दिवाली की सफाई सिद्ध हुए और अब यहाँ से एक नई शुरुआत है।
सभी नए सीएम, उनसे दुगनी संख्या में डिप्टी सीएम, नए मंत्रियों, सभी विधायकों और संगठन की इकाइयों में चमकने वाले नए चेहरों से पार्टी नेतृत्व की अपेक्षाएँ तो अपार हैं ही, सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि आम जनता भी उनसे अतिरिक्त अच्छे प्रदर्शन की आशा लिए बैठी है। वे यह न भूलें कि मोदी की गारंटी पर वे चुने गए हैं और सत्ता तो सीधी उन्होंने ही सौंपी है। वे किसी और की जमानत पर हैं और उन्हें हर दिन यह सिद्ध करना है कि गारंटी सही दी गई थी। माल चोखा और चौबीस कैरेट का है। इन्हीं में से भविष्य की बीजेपी के नेता उभरेंगे। वृक्ष बनकर बीज यह साबित करेंगे कि उनमें कोई खराबी नहीं थी।
ये तीन राज्य ऐसे हैं, जहाँ बीते बीस वर्ष से कोई दो बार, कोई तीन बार और कोई चार बार सत्ता में रहा। इन दो दशकों में बीजेपी की पूरी राजनीति की धुरी तीन बड़े नेताओं के इर्दगिर्द ही घूमती रही। वसुंधरा राजे, रमन सिंह और इन दोनों से अधिक जमीन से जुड़े शिवराजसिंह चौहान। तीनों राज्यों के नए मुख्यमंत्रियों के लिए नेतृत्व की एक लाइन इन पूर्ववर्ती नेताओं ने खींच रखी हैं, जिनसे अलग और आगे उन्हें अपनी लाइन खींचनी है। लेकिन बीते दस वर्षों से भी कम समय में दूसरी दो रेखाएँ उत्तरप्रदेश और असम में योगी आदित्यनाथ और हेमंत बिस्व सरमा ने भी चमका रखी हैं। ये बीजेपी की लीडरशिप का नेक्स्ट लेवल है। तीनों राज्यों के नए मुख्यमंत्रियों को अपनी ‘चाल’ और अपने ‘चलन’ से इन दोहरी रेखाओं को स्पर्श करके आगे बढ़ना आसान नहीं होगा।
दो मोर्चों पर उन्हें अपना प्रदर्शन अविलंब आरंभ करना है। सत्ता के लीडर के रूप में एक सख्त और कुशल प्रशासक की भूमिका और वैचारिक पृष्ठभूमि के लिए एक संवेदनशील पोषक की भूमिका। वे यह भलीभांति जानते होंगे कि लोक लुभावन घोषणाएँ, नारों का शोर, भाषणों का प्रभाव, आक्रामक प्रचार उनकी जीत में जितना महत्वपूर्ण रहा है, उससे अधिक महत्वपूर्ण वैचारिक पक्ष और संगठन के लाखों निस्वार्थ कार्यकर्ताओं का अथक परिश्रम भी है। सुशासन और विकास के साथ वैचारिक नींव को मजबूत करना भी एक बराबरी की जिम्मेदारी है। राष्ट्र के निर्माण में स्पष्ट और ठोस वैचारिक पृष्ठभूमि ही है, जो बीजेपी को दूसरे दलों से अलग करती है। वही मोदी के भरोसे की गारंटी है।
उत्तरप्रदेश और असम इसी के आशाजनक मॉडल बनकर उभरे हैं। अल्प समय में ही योगी आदित्यनाथ और हेमंत बिस्व सरमा ने केवल अपने राज्य में नहीं बल्कि भारतीय राजनीति में लंबी दूरी की अपनी भूमिका सुनिश्चित कर ली है। तीनों नए मुख्यमंत्रियों के लिए यह मैदान उतना ही खुला है, जितना योगी और हेमंत के लिए। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इसके उदाहरण हैं, जो 20-25 सालों में ही गुजरात के छोटे मैदान से स्वयं को शक्ति संपन्न करते हुए शीर्ष तक पहुँचे हैं। साफ दृष्टि से स्वयं को पूरी तरह झोंके बिना इस स्तर के परिणाम कोई कहीं नहीं ला सकता।
लंबे लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने के लिए कुछ शुरुआती सावधानियाँ-
यह ध्यान रखना होगा कि सत्ता में नव नियुक्त लीडर अपने परिवारों को जितना संभव हो राजनीति और प्रशासन में हस्तक्षेप से दूर रखें। अपने बेटे, बेटियों, भाई, भतीजों, भांजों, दामादों को अपने आवास और अपने कार्यालय में अदृश्य रखना ही उनके राजनीतिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा। जितना संभव हो, उनके परिजन, सगे संबंधी, नातेदार, जाति बंधु सत्ता और राजनीति से दूर दूसरे कामों में ही खुद को कृपापूर्वक व्यस्त रखें और मुख्यमंत्री को निर्विध्न पूरा प्रदेश देखने दें। लालच बुरी बला है, यह बचपन की शुरुआती सीखें हैं, जिन पर अमल करने का समय उनके लिए अब आया है।
अगर मोदी और योगी राजनीति के विश्वसनीय ब्रांड बनकर करोड़ों भावुक भारतीयों के दिलों में गहरी जगह बना पाए हैं तो इसलिए कि हमें नहीं मालूम कि मोदी के कितने भाई, भतीजे विधायक या सांसद हैं या मोदीजी के सत्ता में आने के बाद उनके बिजनेस क्या से क्या हो गए? हमें उनके नाम तक नहीं मालूम, न ही यह कि वे करते क्या हैं। हमने कभी गाँधीनगर के सीएम आवास में उन्हें मंडराते हुए नहीं देखा। योगी तो योगी ही हैं। हमने उनकी एक बहन को साधारण दुकान चलाते हुए जरूर देखा। जनता ऐसी ही अपेक्षा हरेक नेता से करती है। विशेष रूप से बीजेपी से। बीजेपी के हरेक लीडर के लिए ये आँखों के सामने की सबसे ताजा मिसालें हैं। जनता उनसे ऐसी ही अपेक्षा करती है।
वरना ध्यान रखें, सत्ता एक मायावी दुनिया है, जहाँ एक शपथ के बाद ही संसार बदल जाता है। आप एक अलग हाई वोल्टेज फ्रीक्वेंसी पर सेट हो जाते हैं। चश्मे के नंबर चेंज हो जाते हैं ताकि सब कुछ मनोरम ही दिखाई दे। निश्चित ही तीनों राज्यों की राजधानियों में वे शक्तियाँ सक्रिय हो गई होंगी, जो इस आकर्षक फ्रीक्वेंसी की उम्दा मशीनें लिए मंडराने को सदा तैयार रही हैं। ये हुनरमंद चलताऊ भाषा में “दलाल और कमीशनखोर’ कहलाते हैं।
मगर मेरी निष्पक्ष दृष्टि में वे जादूगर हैं, जो सबको बोतल में उतारना जानते हैं। खेल के बड़े खिलाड़ी, जो कइयों को ले डूबे हैं और स्वयं अमरत्व को प्राप्त हैं। दिखने को इनके वेश कुछ भी हो सकते हैं- रिश्तेदार, नेता, अफसर, कारोबारी, पत्रकार, एनजीओ। इनसे प्रतिपल सावधान रहने का विवेक जरूरी होगा। ये “फिदायीन’ साबित हो सकते हैं। मोदी ने इनकी गारंटी बिल्कुल नहीं दी है।
नई सरकारों के बनने पर अफसरों के तबादले इस ढंग से शुरू होते हैं जैसे देवलोक से देवताओं की नई खेप इस लोक में उतर रही है और अब राज्य का कायाकल्प आरंभ होने की शुभ घड़ी आ गई है। अपने उल्लुओं को सीधा करने वाले मीडिया के दो ही प्रकार हैं-पालतू और फालतू। दोनों के वीर विश्लेषक इस प्रक्रिया को प्रशासनिक सर्जरी कहते हैं। तबादला एक उद्योग है जो चंद हफ्तों या महीनों में ही गोटियाँ इधर की उधर करने में करोड़ों इधर-उधर करा देता है कि नोट गिनने की मशीनें लगने की अफवाहें उड़ते देर नहीं लगती। इस आवश्यक रस्म में उतरने के पहले मुख्यमंत्रियों को यह ध्यान रखना ही होगा कि मनमाफिक जिला या विभाग प्राप्त करने के लिए उनके आसपास उचित मूल्य की दुकान की तरह “सिंगल विंडो सिस्टम’ न पनपने पाए। मोदी ने इसकी गारंटी कहाँ दी है?
जरा सी असावधानी तकनीकी रूप से संपन्न आज की दुनिया में घातक हो सकती है। “बड़ी डील’ की एक उच्चस्तरीय वीडियो वार्ता या “छोटे सौदे’ की एक निम्न स्तरीय ऑडियो वार्ता वरदान की तरह प्राप्त इस विजय पर पहला कलंक लगा देगी। यही पहला कलंक उस बड़ी रेखा को खींचने में सदा ग्रहण की भांति लगा रहेगा, जिसकी अपेक्षा जनता ने की है। जनता तीनों मुख्यमंत्रियों को तो आज पहली बार पहचान रही है, वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय को पहले से जानती है और उनके दर्शन से अभिभूत है। वह सबसे बड़ी और वजनदार गारंटी है, जिसे लाखों निस्वार्थ स्वयंसेवकों ने अपने अतुलनीय त्याग से सींचकर राजसी शपथ का यह आधार राजधानियों में तैयार किया है।
मोदी की गारंटी अगर 2047 के महान् भारत के निर्माण की दिशा में बीजेपी का एक मंत्र बन गया है तो इस मंत्र की सिद्धि में हरेक राज्य के हरेक छोटे-बड़े नेता को अपने हिस्से के तप को भी जोड़ना होगा। तीन राज्यों में प्राप्त सत्ता एक महान सुअवसर सिद्ध हो सकती है, यह आशा तो की ही जानी चाहिए।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्‍ट से साभार)
(मध्‍यमत)

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