गिरीश उपाध्याय
संसद के बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण और उस पर आए धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब में दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण पर यदि आप हलके फुलके अंदाज में कोई टिप्पणी करना चाहें तो यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के भीतर पनपा जी-23 अब जी-24 हो गया है। ऐसा इसलिये है कि अब इस ग्रुप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी साथ मिल गया है जिन्होंने सात फरवरी को संसद के अपने भाषण में कांग्रेस पर हमला करते हुए ठीक वही एप्रोच अपनाई जो कांग्रेस के भीतर बने जी-23 की है।
ऐसा करते हुए प्रधानमंत्री ने एक ही तीर से कई शिकार कर लिए हैं। अब तक होता यह रहा है कि कांग्रेस पर हमला करने का काम भाजपा के बड़े बड़े नेता करते रहे हैं। वे गाहे बगाहे राहुल गांधी को निशाना बनाते रहते हैं। पर इस बार लगता है, भाजपा ने खुद पर आया हमले का यह बोझ कांग्रेस के भीतर के ही लोगों से साझा करने की रणनीति अपनाई है। प्रधानमंत्री के भाषण से साफ है कि वे अब कांग्रेस के भीतर उन लोगों की आवाज को ताकत देने का काम कर रहे हैं जो लंबे समय से वर्तमान नेतृत्व की क्षमता और कार्यशैली को लेकर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उंगली उठाते रहे हैं।
दरअसल इस बात को लेकर कांग्रेस में भीतर ही भीतर खदबदाहट तो है कि आखिर पार्टी को क्या हो गया है और यदि ऐसा ही चलता रहा तो उसका भविष्य क्या है? समय-समय पर अलग-अलग मंचों से कांग्रेस के नेता यह बात उठाते भी रहे हैं। लेकिन जब-जब भी ऐसी आवाज उठी है ऐसे लोगों को नेतृत्व ने या तो नजरअंदाज कर दिया है या फिर दरकिनार… और इसमें वे कई बड़े नाम शामिल हैं जो एक समय कांग्रेस के शलाका पुरुष हुआ करते थे। ऐसे लोगों के साथ कांग्रेस नेतृत्व द्वारा किए गए व्यवहार को ही इंगित करते हुए शायद मोदी ने संसद में वो कविता सुनाई जो कहती है-
वो जब दिन को रात कहें तो तुरंत मान जाओ,
नहीं मानोगे तो वो दिन में नकाब ओढ़ लेंगे,
जरुरत हुई तो हकीकत को थोड़ा-बहुत मरोड़ लेंगे,
वो मग़रूर हैं खुद की समझ पर बेइंतहा,
उन्हें आइना मत दिखाओ, वो आइने को भी तोड़ देंगे।
प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके उन्होंने नागालैण्ड, ओडिशा, गोवा, त्रिपुरा, यूपी, बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, झारखंड जैसे राज्यों में पिछले लगभग पचास सालों में हुए कांग्रेस के हश्र के आंकड़े देते हुए सवाल पूछा कि आखिर इन राज्यों में हुई कांग्रेस की दुर्दशा के कारणों को भी वो पार्टी क्यों नहीं पहचान रही है। इन राज्यों की स्थिति बता रही है कि देश के लोगों का कांग्रेस से लगातार मोहभंग हो रहा है। मोदी ने कहा-‘’ सवाल चुनाव नतीजों का नहीं है, सवाल उन लोगों की नीयत का है, उनकी नेकदिली का है। इतने बड़े लोकतंत्र में, इतने साल तक शासन में रहने के बाद भी देश की जनता हमेशा-हमेशा के लिए उनको क्यों नकार रही है? जहां भी ठीक से लोगों ने राह पकड़ ली, दोबारा आपको प्रवेश करने नहीं दिया है। हम तो यदि एक भी चुनाव हार जाएं तो हमारा इको-सिस्टम न जाने क्या-क्या करता है, लेकिन इतनी सारी पराजय होने के बावजूद, न आपका अहंकार जाता है, न आपका इको-सिस्टम आपके अहंकार को जाने देता है।…’’
जाहिर है, नाम भले ही न लिया हो लेकिर इस ‘अहंकार’ शब्द का इस्तेमाल मोदी ने राहुल गांधी के लिए ही किया। और इसे बाद उन्होंने जो कहा वो कांग्रेस के लिए सबसे घातक था। राहुल गांधी ने इससे पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए भारत के राष्ट्र होने और उसके स्वरूप को लेकर टिप्पणी की थी। मोदी ने राहुल की बात का खुद जवाब देने के बजाय वो जवाब राहुल के नाना और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मुंह से दिलवाया। उन्होंने कहा, नेहरू कहते थे- ‘’यह जानकारी बेहद हैरत में डालने वाली है कि बंगाली, मराठी, गुजराती, तमिल, आंध्र, उडि़या, असमी, कन्नड़, मलयाली, सिंधी, पंजाबी, पठान, कश्मीरी, राजपूत और हिन्दुस्तानी भाषा-भाषी जनता से बसा हुआ विशाल मध्य भाग कैसे सैकड़ों वर्षों से अपनी अलग पहचान बनाए है। इसके बावजूद सबके गुण-दोष कमोबेश एक से हैं। इसकी जानकारी पुरानी पंरपरा और अभिलेखों से मिलती है। साथ ही इस दौरान वे स्पष्ट रूप से भारतीय बने रहे जिनकी राष्ट्रीय विरासत एक ही थी और उनकी नैतिक और मानसिक विशेषताएं भी समान थीं।‘’
नेहरू की पुस्तक ‘भारत एक खोज’ से लिए गए इस उद्धरण का उपयोग करते हुए मोदी ने कहा, इस उद्धरण में ‘राष्ट्रीय विरासत’ शब्द ध्यान देने लायक है। हमारी राष्ट्रीय विरासत एक है, हमारी नैतिक और मानसिक विशेषताएं एक हैं, क्या बिना राष्ट्र के यह संभव है? बगैर राहुल गांधी का नाम लिए मोदी ने कहा कि- इस सदन का यह कहकर अपमान किया गया कि हमारे संविधान में राष्ट्र शब्द नहीं आता। संविधान की प्रस्तावना में ही लिखा ‘राष्ट्र‘ शब्द किसी के पढ़ने में न आए यह हो नहीं सकता। कांग्रेस (राष्ट्र का) यह अपमान क्यों कर रही है?
इसी तरह मोदी ने कर्तव्यों के बारे में भी नेहरू को कोट करते हुए अपनी बात रखी। मतलब साफ है कि अब भाजपा की रणनीति राहुल को नेहरू के खिलाफ साबित करने की भी है। और यह बात यदि दूर तक जाती है, जिसे दूर तक ले जाने का उपक्रम पूरी ताकत से आने वाले दिनों में किया जाएगा, तो कांग्रेस का और कांग्रेस का ही नहीं देश की राजनीति और जनमानस का वह वर्ग जो तमाम विपरीतताओं के बावजूद नेहरू को मानता आया है, वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व से छिटकेगा। कोशिश इस बात को पैठाने की है कि जो राहुल गांधी अपने नाना जवाहरलाल नेहरू की बात से सहमत नहीं है वे पार्टी और देश को स्वीकार्य कैसे हो सकते हैं।
मोदी ने अपने भाषण में एक और गहरी चोट बहुत चतुराई से की। उन्होंने बिना नाम लिए कांग्रेस के वामपंथियों से संबंधों को सदन में उघाड़ा। मोदी ने कहा- ‘’जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते वे इतिहास में खो जाते हैं। 60 से 80 के दशक में जो लोग देश का नेतृत्व कर रहे थे, उनके समय क्या नैरेटिव होता था। कांग्रेस के ही सत्ता साथी, कांग्रेस के साथ रहकर सुख भोगने वाले लोग ही, पंडित नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार के बारे में कहते थे कि यह तो टाटा-बिड़ला की सरकार है, इसे टाटा-बिड़ला ही चला रहे हैं। 60 से 80 के दशक तक नेहरू और इंदिरा के लिए यही बातें बोली जाती थीं और आपने उन लोगों के साथ सत्ता में भागीदारी की, लेकिन आपने उनकी आदतें भी ले लीं, आप भी उसी भाषा को बोल रहे हैं…’’
मुझे लगता है मोदी के भाषण का यह अंश उनका मास्टर स्ट्रोक है। इसमें राजनीतिक चतुराई का जो प्रदर्शन हुआ है वह बेमिसाल है। एक तरफ मोदी ने कांग्रेस को उन वामपंथियों की असलियत बताने की कोशिश की जो साथ में रहकर भी कांग्रेस के नेताओं को कोस रहे थे, वहीं दूसरी ओर उन्होंने टाटा-बिड़ला के उदाहरण को वर्तमान संदर्भों में अंबानी-अडाणी के लिए कही जा रही बातों पर लाकर टिका दिया। नाम भले ही उन्होंने किसी का नहीं लिया लेकिन देश के उद्योगपतियों को लेकर की जा रही टीका टिप्पणियों पर करारा जवाब जरूर दिया। मोदी का निशाना कहां था उसका अर्थ आप उनके भाषण के इसी वाक्य से निकालिये कि- ‘’मुझे लगता है कि आज पंचिंग बैग बदल गया है।‘’
मैं मानता हूं कि मोदी का यह भाषण कांग्रेस पर दो तरह से हमला करने की रणनीति का हिस्सा है। एक तो कांग्रेस के भीतर ही कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व के विरुद्ध सशक्त लॉबी तैयार करवाना और दूसरे कांग्रेस को उस वामपंथी विचारधारा से भी अलग करना जो अब तक कांग्रेस की वैचारिक लड़ाई को धार और हवा दोनों देती आई है।
अंत में एक बार फिर मैं उसी रूपक पर लौटता हूं जिसका मैंने शुरू में जिक्र किया था- जी-23 हां, ये जी-23 के विचार और भाव को ही ताकत देने का उपक्रम है। उसी जी-23 को जिसने करीब सवा साल पहले ‘सेव द आइडिया ऑफ इंडिया’ नाम से एक अभियान शुरू किया था। जीवन में कई बातें ऊपरी तौर पर संयोग दिखाई देती हैं पर असलियत में वे संयोग मात्र ही नहीं होती। जरा याद करिये उस समय को जब मीडिया में जी-23 की बात करते हुए उसके सदस्यों की सूची जारी हुई थी। उसमें पहला नाम गुलाम नबी आजाद का था। और देखिये क्या संयोग है कि उन्हीं गुलाम नबी आजाद को इस बार सरकार ने पद्मभूषण सम्मान के लिए चुना। पर क्या यह सिर्फ संयोग ही है… इसका जवाब आप चाहें तो मोदी के ससंद में दिए गए भाषण में भी ढूंढ सकते हैं।(मध्यमत)
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