एक पखवाड़ा मौत के साथ- 12
सिद्धांता रेडक्रॉस में वो हमारा 15वां दिन था। अस्पताल में वैसे भी एक एक दिन काटना मुश्किल होता है, ऐसे में जब आप अपने पेशेंट की हालत को लेकर अनिश्चितता के शिकार हों तो ये दिन काटना और भी भारी पड़ता है। मरीज यदि ठीक हो रहा हो या उसकी हालत में सुधार हो रहा हो तो मन में एक तसल्ली रहती है, लेकिन सबकुछ करने के बावजूद मरीज को लेकर कोई आश्वस्ति न हो तो मन में तरह तरह के विचार आते रहते हैं। जाहिर है इनमें नकारात्मक या बुरे विचार अधिक होते हैं…
तो डॉक्टरों ने जब 20 मार्च को दिन में हमें हिंट किया कि आज ममता की हालत कुछ गड़बड़ है तो सभी का मन और उदास हो गया। इधर हम महसूस कर रहे थे कि डॉक्टर कुछ कर नहीं पा रहे हैं, उधर हमें NIMHNS बेंगलुरू की रिपोर्ट का इंतजार था। वहां से कोई रिपोर्ट आ जाती तो भविष्य की लाइन तय हो जाती। ममता अभी तक बेहोश या डॉक्टरों की भाषा में पेरेलाइज्ड थी और उसके शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी।
रेबीज को लेकर डॉक्टर हमें इतना डरा चुके थे कि मन में तरह तरह के विचार आते। डॉक्टरों ने कह रखा था कि हममें से कोई उसके नजदीक न जाए, उसकी लार या खून के संपर्क में तो कतई न आएं। सो सारे लोग एहतियात बरत रहे थे। ऐसे समय में दिल और दिमाग बिलकुल अलग अलग तरीके से सोचते और काम करने लगते हैं। दिल कहता था कि सब ठीक हो जाएगा और दिमाग यह सवाल पूछ रहा था कि यदि कोई अनहोनी हो गई तो बाद में क्या क्या सावधानियां बरतनी होंगी।
देर शाम तक आईसीयू से कोई नई खबर नहीं आई। हम डॉक्टरों से बराबर पूछते रहे और वे केवल इतना ही कहते रहे कि हालत ठीक नहीं है। आज की रात बहुत भारी है। हम भी समझ रहे थे कि जब डॉक्टर कहें कि हालत ठीक नहीं है या कि आज की रात बहुत भारी है तो इसका मतलब क्या होता है। यह वैसा ही है जैसा पहले के जमाने में कहीं से भी तार आने पर हुआ करता था। तार में सूचना भले ही कोई दूसरी लिखी हो लेकिन सबसे पहला खयाल किसी बुरी खबर का ही कौंधता था..
जब से ममता की तबियत खराब हुई थी तब से भोपाल के बाहर रहने वाले रिश्तेदार भी आकर उसका हालचाल जान चुके थे। परिवार वाले एक साथ बैठते तो पुरानी यादों का सिलसिला शुरू हो जाता। ऐसे ही किसी ने याद दिलाया कि अगले साल तो ममता की शादी की 25 वीं सालगिरह है और उसने परिवार के कुछ और सदस्यों के साथ मिलकर जयपुर में जश्न मनाने का प्रोग्राम बना रखा है।
अस्पताल में रात 10-11 बजे तक परिवार के कई सदस्य रोज ही रुके रहते थे। रात का खाना खाने भी सब लोग उसके बाद ही जाते। उस दिन स्थिति को देखते हुए ममता के पति राम को सारे लोगों ने जल्दी घर भेज दिया। बाकी लोगों को भी धीरे धीरे जाने को कह दिया गया ताकि वे खाना तो खा लें। हम लोग भी घर आ गए। घर पर ही मुझे ममता के देवर का संदेश आया कि आप अपना फोन चालू रखना, उसे साइलेंट मोड पर भी मत रखना, कोई बात होगी तो हम आपको सूचित करेंगे।
पत्रकारिता का पेशा वैसे भी आपको जल्दी न सोने की आदत डाल देता है। मैं करीब एक बजे सोया। आंख लगी ही होगी कि थोड़ी देर बाद फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ ममता का देवर प्रवीण था। उसने बहुत डूबी हुई आवाज में सूचना दी, भाभी नहीं रहीं…
कुछ देर तक दोनों तरफ से कोई कुछ नहीं बोला… चारों तरफ सन्नाटा था… मैंने ही चुप्पी तोड़ते हुए पूछा कब हुआ? प्रवीण ने बताया‘’शायद डेढ़ बजे के आसपास हुआ होगा। अस्पताल से कुछ देर पहले ही फोन आया था। वे बता रहे थे कि हम लोग आखिरी कोशिश कर रहे हैं, कुछ लाइफ सेविंग इंजेक्शन दिए हैं, यदि इनका कुछ असर हुआ तो ठीक वरना…’’
प्रवीण बोलता जा रहा था- ‘’हम लोग यहां आ गए हैं। डॉक्टरों ने कहा है कि आप सुबह बॉडी जल्दी ले जाने का इंतजाम कर लेना, हम ज्यादा देर तक नहीं रख पाएंगे।‘’ मैंने कहा, हम लोग वहीं आते हैं। प्रवीण ने मना कर दिया। बोला- ‘’अभी आकर आप क्या करेंगे। आप सुबह जल्दी आ जाइएगा, बहुत सारे इंतजाम करने होंगे, कल पूरा दिन लग सकता है, आपकी नींद नहीं हुई तो आपको दिक्कत होगी…’’
मैंने प्रवीण की बात मान तो ली, लेकिन नींद किसे आनी थी। सुबह होने तक हम बस पुरानी यादों के पन्ने खोलते, बंद करते रहे… पत्नी को भाई के साथ साथ उसके बच्चों की चिंता थी। ऐसी ही कई सारी चिंताओं में पता नहीं कब बैठे बैठे आंख लग गई। कुछ खटपट की आवाज से नींद खुली तो देखा पत्नी तैयार हो चुकी है। सुबह होने को थी। मैं भी तैयार हुआ और हम दोनों अस्पताल के लिए निकल पड़े।
रास्ते भर मैं पता नहीं क्या क्या सोचता रहा। मुझे मालूम था कि बड़ा होने के कारण आज मेरे कंधों को आंसुओं का बोझ सहना है। मेरे पास शोक व्यक्त करने का अवकाश नहीं था, मेरी जिम्मेदारी सभी को संभालने और दिन में होने वाली अंतिम क्रियाओं की तैयारी करवाने की थी। प्रवीण ने रात को ही मुझे खबर देने के साथ पूछा था कि क्या हम अखबारों में अभी सूचना छपवा सकते हैं? मैंने बताया था कि अब तो सारे अखबार छप चुके होंगे, अब बात करने से कोई फायदा नहीं…
ऐसी परिस्थितियों में आजकल सोशल मीडिया बहुत काम आता है। प्रवीण ने कहा- ‘’साहब, आप वाट्सएप के लिए एक मैसेज बना दो, हम अपने सारे ग्रुपों में डाल देते हैं, सभी को सूचना हो जाएगी…’’
और जो ममता मुझसे 15 दिन पहले गुजारिश कर रही थी कि भैया मुझे घर ले चलो… ठीक सोलहवें दिन मैं उसके बारे में अपने मोबाइल पर शोक संदेश टाइप करते हुए, उसे आखिरी बार घर ले जाने की तैयारी करवा रहा था…
कल पढ़ें- ममता राख हो चुकी थी, पर क्लाइमेक्स अभी बाकी था…