वस्‍तुओं से ज्‍यादा बड़ा संकट व चुनौती प्रबंधन की है

गिरीश उपाध्‍याय

कोरोना की दूसरी लहर के चलते देश में जो दृश्‍य देखने को मिल रहे हैं वे भयावह और दिल दहला देने वाले हैं। आधुनिक भारत में नागरिकों को ऐसे दिन भी देखना पड़ेंगे यह किसी ने नहीं सोचा था। मरीजों को समय पर इलाज की बात तो छोडि़ये कोई बीमार हो जाए तो जांच के लिए संघर्ष, जांच हो जाए तो डॉक्‍टर को दिखाने की मारामारी, डॉक्‍टर को दिखा दें और अस्‍पताल में भरती होने की नौबत हो तो वहां जगह मिलने की जद्दोजहद, अस्‍पताल में यदि जगह मिल जाए तो दवाइयों और सांस लेने के लिए ऑक्‍सीजन के लाले और यदि इन सारी बाधाओं को पार न कर सकने के कारण बदकिस्‍मती से किसी की मौत हो जाए तो श्‍मशान में अंतिम संस्‍कार तक के लिए अपनी बारी का इंतजार…

ये सारी स्थितियां बता रही हैं कि हमारी तमाम कोशिशों और दावों के बावजूद जमीनी स्‍तर पर स्थितियां उतनी प्रभावी और टिकाऊ नहीं हैं जितना कि उन्‍हें होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि सरकारें और प्रशासन स्थितियों से निपटने के लिए व्‍यवस्‍था नहीं कर रहे। हालात कितने बदतर और विस्‍फोटक हो गए हैं इसका अंदाजा सभी को है। लेकिन दिक्‍कत ये है कि चीजों का इंतजाम करने की कोशिशों के बावजूद कोशिशों का असर दिखाई नहीं दे रहा। इसका एक बड़ा कारण तो ये है कि आवश्‍यकता की तुलना में आपूर्ति या समाधान बहुत कम है और दूसरा बड़ा कारण है संसाधनों के युक्तियुक्‍त और कुशल प्रबंधन की कमी।

ऐसा नहीं है कि मांग और आपूर्ति का संकट देश ने पहले कभी नहीं झेला। कोरोना की पहली लहर में भी संकट कोई कम नहीं था, लेकिन तब हम शायद समय रहते संभल गए थे और जितने भी संसाधन उपलब्‍ध थे उनका उचित प्रबंधन करने में कमोबेश कामयाब हो पाए थे। इसलिए पहली लहर ने हम पर उतना असर नहीं दिखाया या कि उतना कहर नहीं ढाया। पर उस कथित विजेता भाव के मुगालते ने हमें इतना लापरवाह बना दिया कि हम उन चेतावनियों को भी भुला बैठे जो वैज्ञानिक और विशेषज्ञ चीख चीख कर बता रहे थे कि कोरोना की दूसरी, तीसरी, चौथी लहर आएगी ही… इसी लापरवाही ने हमें आज ये दिन दिखाया है।

लेकिन अब भी बात को संभाला जा सकता है। यदि हम प्रबंधन और प्रशासन के अपने कौशल को साबित करने पर आ जाएं तो स्थितियों को और बिगड़ने से रोक सकते हैं। स्थिति भयावह हो जाने और हाथ पैर फूल जाने के बाद जिस तरह ताबड़तोड़ इंतजाम की कोशिशें हो रही हैं उनके नतीजे आने वाले दिनों में निश्चित रूप से देखने को मिलेंगे। फिर चाहे रेमडेसिविर जैसे इंजेक्‍शन की बात हो या फिर ऑक्‍सीजन सप्‍लाई की। चौतरफा हो रहे प्रयासों से इन आवश्‍यक चीजों की आपूर्ति आने वाले दिनों में सुगम होगी। लेकिन उस समय भी सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि हम उपलब्‍ध सामग्री और संसाधनों का किस तरह युक्तियुक्‍त तरीके से इस्‍तेमाल करते हैं।

रेमडेसिविर हो या ऑक्‍सीजन, कोविड की अन्‍य दवाइयां हों या फिर अस्‍पतालों में बेड की उपलब्‍धता इनकी किल्‍लत एक प्रमुख कारण जमाखोरी और कालाबाजारी है। खबरें तो यहां तक हैं कि कालाबाजारी और जमाखोरी से अस्‍पतालों के बेड भी अछूते नहीं रहे हैं। इसके अलावा नकली दवाओं का जाल अलग से अपने पैर पसार रहा है। यानी स्थिति को विपरीत रूप से प्रभावित करने वाले तमाम कारक काम कर रहे हैं। इन सारी परिस्थितियों को संसाधनों के कौशलपूर्ण इस्‍तेमाल और उचित प्रबंधन से ही नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए आने वाले दिनों में इस बात पर पूरा ध्‍यान देना होगा कि कोरोना से निपटने का हमारा प्रबंधन कैसा है।

एक तरफ जहां कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं वहीं समानांतर रूप से दूसरी बड़ी चुनौती 18 साल से ऊपर की आयु वाले लोगों को कोरोना के टीके लगाने के अभियान के रूप में सामने आने वाली है। यह अभियान निश्चित रूप से बहुत जरूरी है लेकिन ध्‍यान रखा जाना चाहिए कि इससे उस स्‍वास्‍थ्‍य एवं चिकित्‍सा ढांचे पर और अधिक दबाव पड़ेगा जो पहले से ही चरम स्थिति के दबाव और तनाव से गुजर रहा है। हो सकता है यह स्थिति भी पैदा हो जाए कि स्‍वास्‍थ्‍य अमले को यह चुनाव करना पड़े कि उसे कोरोना प्रभावित मरीजों की जान बचाने के काम में लगना है या फिर टीकाकरण के काम में। ऐसी स्थिति में प्रबंधन की चुनौती दोहरी होगी और इससे कैसे निपटा जाए इसका विचार अभी से कर लिया जाना चाहिए। और सिर्फ विचार ही नहीं उसके लिए समुचित रणनीति और संसाधन के साथ साथ मेन पॉवर का इंतजाम करना भी बड़ी चुनौती होगा। क्‍या हम इसके लिए तैयार हैं?(मध्‍यमत)

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