प्रदीप शर्मा
यूं तो जो भाग्यशाली होते हैं, उन पर लक्ष्मी जी की कृपा होती ही है,लेकिन जो अति भाग्यशाली होते हैं, उन पर महालक्ष्मी सदा प्रसन्न रहती है। कृपा का भी एक कोर्स होता है और जो इस कोर्स की दौड़ में आगे निकल जाते हैं उसे रेसकोर्स कहते हैं। जैसे शतरंज के मोहरों में घोड़ा भी एक मोहरा होता है, कभी कभी जिंदगी की दौड़ में इंसान खुद की जगह एक घोड़े को ही दांव पर लगा देता है। कोई शकुनि तो कोई धर्मराज, कहीं द्रौपदी दांव पर, तो कभी अश्व महाराज। सबका अपना अपना भाग..
आज भी आपको देश में हर जगह पोलोग्राउंड और रेसकोर्स रोड मिलेंगे। एक महाराणा प्रताप का चेतक था, जिसने अपने स्वामी के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी थी और एक अंग्रेज थे, जो न केवल घोड़ों पर बैठकर पोलो खेलते थे, वे घुड़दौड़ में घोड़ों पर भी दांव लगाते थे, कौन सा घोड़ा हॉर्स रेस में बाजी मारेगा। हमारी आज की राजनीति भी हॉर्स ट्रेडिंग पर ही टिकी है, जहां घोड़े गधे सभी इस दौड़ में शामिल हैं।
आइए मुंबई चलें! मुंबई में महालक्ष्मी रोड है और महालक्ष्मी मंदिर भी है, जहां लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर से लगाकर सभी सेलिब्रिटीज हर शुभ कार्य के पहले धन और वैभव की लक्ष्मी का आशीर्वाद लेने यहां अवश्य शीश नवाते हैं। यूं तो मुंबई की चकाचौंध देखते ही बनती है लेकिन यहीं घोड़ों की दौड़ के लिए 225 एकड़ में फैला महालक्ष्मी रेसकोर्स भी है, जहां घोड़े के साथ किसी का भाग्य बनता बिगड़ता रहता है।
सन् 1883 में निर्मित इस घुड़दौड़ के मैदान में एक ग्रैंडस्टैंड है जिसमें 1500 से 2000 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है। आप चाहें तो इसे किस्मत का खेल कहें अथवा सट्टा, लेकिन कइयों की तकदीर अगर यहां बनी भी है तो कई इस खेल में बर्बाद भी हुए हैं। अपने भाग्य को आजमाने आदमी कहां कहां जाता है। एक समय था जब अधिकांश राज्य सरकारें लॉटरी का खेल खेला करती थी। वर्ली मटका और रतन खत्री को कौन नहीं जानता। शेयर मार्केट के हल्के से उछाल से अगर कइयों का भाग्य बल्लियों उछल जाता है तो शेयर के भाव गिरने के साथ ही उनका भी दिल बैठने लगता है। अमीरों को हार्ट अटैक यूं ही नहीं आता।
एक समय था, जब हर हिंदी फिल्म में एक लालाजी हुआ करते थे, जिनकी आलीशान कोठी के साथ कम से कम एक खूबसूरत लड़की भी हुआ करती थी। अच्छी भली चलती फिल्म में अचानक लालाजी के पास एक फोन आता था, लालाजी आपका घोड़ा हार गया, सब बर्बाद हो गया। लालाजी को सदमा तो लगना ही था। परिवार पर पहाड़ तो टूटना ही था। इस स्थिति में भी अगर एक संजीदा गीत नहीं हुआ तो समझिए दर्शकों के साथ इंसाफ नहीं हुआ;
कल चमन था
आज एक सेहरा हुआ।
देखते ही देखते ये क्या हुआ।
लेकिन यकीन मानिए यह केवल फिल्मी मनोरंजन नहीं, एक कड़वी हकीकत है। कई नामी गिरामी लोग इस महालक्ष्मी में अपना भाग्य आजमा चुके हैं, कई ने मुंह की भी खाई है, और कई बर्बाद भी हुए हैं।
घोड़ों को पालना भी एक महंगा शौक है। ये घोड़े तैयार ही घुड़दौड़ के लिए किए जाते हैं। हास्य अभिनेता महमूद का सितारा जब बुलंदी पर था, तब वे सितारों की नगरी मुंबई छोड़कर बैंगलोर जा बसे थे, जहां उनका भी एक घोड़ों का फार्म था जिसे अंग्रेजी में stud farm कहा जाता है। हिंदी में हम इसे अश्वशाला, अस्तबल अथवा घुड़साल भी कह सकते हैं। रईसों के कई महंगे शौक होते हैं। जितना पैसा उतना महंगा शौक। आज एक समझदार व्यक्ति केवल शेयर मार्केट की ही रिस्क उठा सकता है। सेंसेक्स और निफ्टी में वह अपना भाग्य फिफ्टी-फिफ्टी आजमाता है।
हम पहले सिक्का उछालकर टॉस किया करते थे, आजकल एक नया सिक्का मार्केट में आ गया है, बिट कॉइन। जिसकी जेब में पैसा है, वही इसे उछाल सकता है। लेकिन जिन्हें खतरों से खेलना का शौक होता है, वे ही किसी घोड़े पर अपना दांव लगाते हैं। कब किसका दांव आखरी हो, कहा नहीं जा सकता। जगजीत सिंह जैसे महान कलाकार भी इस महंगे शौक से बच नहीं पाए। इतिहास गवाह है आज भी शतरंज के खिलाड़ी किसी भी कीमत पर अपना घोड़ा पीछे नहीं लेते। सल्तनत भले ही जाए तो जाए..!!