बड़ों की बात सुनें और समझें…

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डॉ. प्रदीप उपाध्याय

अब देखिये, उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर कितनी गहरी बात कही है। प्रदेश का मुखिया रहते हुए वे अपना तीसरा टर्म भी करीब-करीब पूरा कर ही लेंगे। उनके विचारों में ही उनकी सफलता का राज छुपा हुआ है। उन्होंने अपने विधायकों की ट्रेनिंग के समापन के अवसर पर कितनी मूल्यवान सलाह दी है। उनकी समझाइश काबिले गौर है।

उन्होंने अपने विधायकों से कहा है कि आर्थिक रूप से सशक्त बनो लेकिन गाड़ी, मकान या दुकान नहीं खोलो जो दिखाई दे। उन्होंने यह भी कहा है कि वे संयुक्त परिवार छोड़ चुके हैं। अब कोई उनका नाम लेकर यह नहीं बोल सकता कि सीएम हाउस से बोल रहा हूँ। प्रशिक्षण सत्र में यह बात भी सामने आयी है कि आम जनों के फोन जरूर उठाये जाना चाहिए, भले ही, “कुछ सुनाई नहीं दे रहा”, कहकर फोन काट दो।

यह सब अनुभवजन्य बातें स्वानुभवी जन ही आपको बता सकते हैं वरना जिन्हें नयी-नयी चिन्दी हासिल होती है, वे सूट-बूट के चक्कर में फँस जाते हैं। जिन्हें बार-बार कर्ज लेने की आदत होती है वे अपने साहूकारों के फोन काल्स यही कहकर काट देते हैं कि आवाज नहीं आ रही है, कुछ सुनाई नहीं दे रहा है और हेलो-हेलो कहकर फोन काट दिया जाता है। वोट देने वाला भी तो अपने आप को साहूकार ही मानता है और नेताजी को कर्जदार मानकर फोन लगाकर वोट का कर्ज चुकाने की अपेक्षा के साथ परेशान हाल कर देता है, ऐसे में वे फोन काल्स ही अटेण्ड नहीं करते हैं। फिर से यदि वोट का कर्ज लेना है तो फोन काल्स अटेण्ड करना ही पडेंगे। अतः अपने साहूकार की खुशफहमी बरकरार रखने के लिए हेलो-हेलो तो करना ही पड़ेगी।

इसी तरह जमकर पैसा बनाओ, सोना-चाँदी, हीरे-मोती, जवाहरात इकठ्ठा कर लो, गाड़ी-बंगला, नौकर-चाकर, कारोबार फैला लो परन्तु किसी की नजर में मत आओ, यही इस ज्ञान का सार है। आपके लिए तो दूसरे सारी सुविधाऐं जुटा ही देंगे, तब आपको इनके प्रदर्शन की क्या आवश्यकता है। जो भी आप संग्रहित करेंगे, वह आपके वनवास काल में काम आयेगा ही। एतद,खुलकर देश के अन्य भागों में निवेश करें, विदेशों में निवेश करें, किन्तु अपनी भोली-भाली प्रजा के सामने आप भी भोले-भाले और साफ-सुथरे बने रहें।

कुछ तो नौकरशाहों से भी सीखा जाना चाहिए। आचार संहिता का भी कितना पालन करना पड़ता है। क्या आपने कभी उनकी लक्जरियस कार, दुकानें, बंगलें, प्लाट्स, भूमि देखी हैं? क्या कभी वे संयुक्त परिवार के साथ रहे हैं, नहीं न। उनके पास आने वाले फोन काल्स पर भी यही सुनने को मिलेगा कि साहब अभी मीटिंग में हैं अर्थात वे बात तो करना चाहते हैं लेकिन अभी व्यस्त हैं। तब इस तरह की ज्ञान की बातें इन लोगों की समझ में क्यों नहीं आती है। सादगी,सहजता और सर्व उपलब्धता के प्रदर्शन के सहारे आप वह सब पा सकते हैं जिसकी आप कामना करते हैं। बस जरूरत इस बात की है कि अपनों से बड़ों की बात सुन और समझ लें।

 

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