कोरोना संकट : सुनो, क्या जंगल कुछ कह रहे हैं?

अनिल यादव 

पूरी दुनिया कोरोना के भय से काँप रही है, अभी तक विभिन्न देशों में तीन लाख से अधिक लोग कोरोना से मारे जा चुके हैं। जब से इंसान पर कोरोना के हमले शुरू हुए हैं तब से उस पर दुनिया भर में कई तरह के अध्ययन किये जा रहे हैं।

यूं तो दुनिया में वायरसों की कोई कमी नहीं है लेकिन कोविड-19 जैसा मारक वायरस कैसे अस्तित्व में आया, इस बारे में कई मत हैं। कुछ इसे चीन द्वारा लैब में बनाया गया कृत्रिम वायरस मान रहे हैं, तो कई दूसरे इसको वुहान शहर के मांस मार्केट से पैदा हुआ मान रहे हैं। कई का दावा है इस तरह के अनेक वायरस चमगादड़ों में पाए जाते हैं और उनके जूठे फल खाने से यह पेंगोलिन में आया और ऐसे वन्यजीवों को भी भोजन मानने वाली चीनी संस्कृति से ये वायरस पहले चीनियों और फिर धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फ़ैल गया। और अब हालात बेकाबू हैं।

हमारे देश में भी हालात बहुत ठीक नहीं है। फिर भी सवा अरब की आबादी में कोरोना से हुई मृत्यु दर सवा तीन प्रतिशत है जो विकसित देशों के मुकाबले आधी से भी कम है। यह भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। जितने लोग आज तक भारत में संक्रमित पाए गए है उतने तो (नब्बे हजार से ज्यादा) अब तक महाबली अमेरिका में कोरोना से जान गवाँ चुके हैं।

अमेरिका जैसे कई देश कोविड-19 के अस्तित्व और प्रसार के लिए पूरी तरह चीन को ही जवाबदार मान रहे हैं और चीन के खिलाफ लामबंद हो चले हैं। कोरोना वायरस के असली अपराधी को जानने में तो अभी वक्त लगेगा लेकिन फिलहाल इस बात पर आमराय बनती जा रही है कि इंसान द्वारा प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ भी कोविड-19 के अस्तित्व में आने का एक कारण है।

इस बीच मप्र वन विभाग का एक अध्ययन सामने आया है जिसमें कोविड-19 के प्रसार और सघन वन क्षेत्र का आपसी सम्बन्ध समझने की कोशिश की गई है, हालांकि इसे सामने लाने वाले वन विभाग के अधिकारी रजनीश के. सिंह का कहना है कि इसे अध्ययन से ज्यादा अवलोकन कहना ठीक रहेगा।

वन विभाग के अवलोकन के अनुसार मप्र में कोविड-19 के प्रसार के आधार पर बनाये गये रेड, ओरेंज तथा ग्रीन जोन का, संबंधित जिले में वनों के प्रतिशत तथा प्रति हजार व्यक्ति के मान से उपलब्ध वन क्षेत्र के लिहाज से आपसी संबंध क्‍या है यह समझने की कोशिश की गई है। इस अवलोकन के नतीजे पहली नजर में तो साफ़-साफ़ कुछ कहते से लग रहे हैं बशर्ते हम सुनना-समझना चाहें तो।

वन विभाग के अवलोकन से पता चल रहा है कि प्रदेश के जिन जिलों में प्रति हजार व्यक्ति, दो सौ हेक्टेयर से अधिक का वनक्षेत्र है वे जिले सामान्यतः ग्रीन जोन में हैं। मप्र में उज्जैन, इन्दौर, खरगोन, भोपाल, मुरैना में सर्वाधिक कोरोना संक्रमण पाया गया है और इन्हें रेड जोन घोषित किया गया है। यहां ये तथ्य ध्यान देने लायक है कि इन सभी जिलों में वनक्षेत्र की उपलब्धता प्रति हजार व्यक्ति पर सौ हेक्टेयर से भी कम है।

प्रदेश में बैतूल, छिंदवाड़ा जैसे जिले अधिक वन घनत्व वाले हैं जहां प्रति व्यक्ति के मान से वनों की उपलब्धता भी अधिक है। महाराष्‍ट्र के रेड जोन घोषित किये गए जिलों से सटे होने के बावजूद, मप्र के ये जिले, ओरेंज जोन में हैं। जबकि ये दूसरी ओर मप्र के होशंगाबाद से भी लगे हुए हैं जिसे शासन ने रेड जोन घोषित किया है।

वन विभाग के इस आरम्भिक अवलोकन में यह ख़ास बात भी उजागर हुई है कि बालाघाट, शहडोल, पन्ना, अनुपपूर, उमरिया जैसे कई जिले, जहाँ से बड़ी संख्या में मजदूर बाहर काम करने जाते है, इन मजदूरों के लौट आने के वाबजूद ग्रीन जोन में हैं। इसमें बहुत ध्यान देने लायक बात ये भी है कि ये सभी अधिक वन घनत्व वाले जिले हैं।

वनविभाग के इस अवलोकन में कहा गया है कि पहली नजर में ऐसा प्रभाव बनता है की जिन क्षेत्रों में भी वनों की उपलब्धता अधिक है उन क्षेत्रों में नागरिकों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत बेहतर है।

वन क्षेत्र और कोरोना प्रसार के सहसंबंध पर वनविभाग के इस अवलोकन से कोरोना के प्रसार की प्रवृत्ति के कुछ संकेत तो मिलते हैं, लेकिन बेहतर होगा यदि भोपाल स्थित आईआईएमएफ जैसा कोई शैक्षणिक संस्थान इस अवलोकन के आधार पर कोई विज्ञान सम्मत विस्तृत अध्ययन करा ले। यदि ऐसा किया जाता है तो हो सकता है सरकारें ऒर इंसान अपनी आदतें सुधारना शुरू कर दें।

क्योंकि कोरोना उर्फ़ कोविड-19 वायरस सम्पूर्ण मानव प्रजाति के स्वस्थ्य जीवन के लिए एक चुनौती बन गया है, वैज्ञानिकों का एक वर्ग तो यहाँ तक कह रहा है कोविड-19 जाने वाला नहीं है और अब हमें उसके साथ ही बने रहने और जीने की आदत डाल लेनी चाहिए।

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निवेदन

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टीम मध्‍यमत

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