राजनीति हो या प्रशासन, दोनों क्षेत्रों में पारदिर्शता की जरूरत पर बहुत जोर दिया जाता है। लेकिन जिन लोगों का भी इन दोनों क्षेत्रों से वास्ता पड़ा है, उनका अनुभव रहा है कि दोनों ही क्षेत्रों में लोग, बातों को उजागर करने के बजाय उन्हें छिपाने या दबाने में ज्यादा भरोसा करते हैं। अलबत्ता मध्यप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी इस मामले में बहुत खुशनसीब है कि उसे बेइंतहा पारदर्शिता वाला नेतृत्व मिला है। ऐसा लगता है कि प्रदेश भाजपा ‘नेतृत्व’ कपड़े भी कांच के ही पहनता है। दिखाने छिपाने का कोई झंझट ही नहीं…
उजागरी (खबरदार इसे बाजीगरी कतई न पढ़ें) भी इतनी कि कभी कभी तो सामने वाले को लगने लगता है कि अरे यह बात तो नहीं कहनी या बतानी चाहिए थी, लेकिन ‘नेतृत्व‘ के माथे पर बल ही नहीं पड़ते। वह सीना ठोक कर बात करता है, वहां ‘गोपनीय’ कुछ भी नहीं सब कुछ ‘ओपनीय’ है। कई बार दूसरे लोग मन ही मन घबराने लगते हैं कि मुंह से निकली कौनसी बात, बतंगड़ बनकर सामने आ जाए, लेकिन‘नेतृत्व’ निश्चिंत भाव से जो मन में आए कह डालता है।
अब जरा गुरुवार का ही मामला ले लीजिए। प्रसंग था भारतीय जनता युवा मोर्चा की सोशल मीडिया कार्यशाला का। उसमें ‘नेतृत्व’ ने पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली आईटी टीम की पीठ ठोकते हुए खुलासा किया कि ‘’गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी के एक भाषण को आईटी टीम ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया था। इसका नतीजा यह हुआ कि वह बयान काफी वायरल हो गया और राहुल गांधी की काफी फजीहत हुई। नेतृत्व ने उसी तर्ज पर प्रदेश के आईटी सेल वालों को गुरुमंत्र दिया कि वे इससे सीखें। विपक्षी पार्टिंयों के नेताओं के बयानों पर ध्यान दें।
मीडिया में खबर आई है कि प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमारसिंह चौहान ने कार्यकर्ताओं को सीख देते हुए कहा कि ‘’गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी के ‘आलू डालो, सोना निकालो‘ वाले बयान को भाजपा की आईटी टीम ने तोड़-मरोड़ के पेश किया और राहुल की सोशल मीडिया पर खूब खिल्ली उड़ी। गत नवंबर में राहुल गांधी ने पाटन में एक भाषण में मोदी के शब्दों को दोहराते हुए कहा था कि मैं ऐसी मशीन बनाऊंगा कि एक तरफ से आलू डालो और दूसरी तरफ से सोना निकालो।‘’
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नंदकुमार सिंह चौहान यही नहीं रुके, उन्होंने कहा कि ‘’मोर्चा ऐसा आत्मघाती दस्ता तैयार करे, जो कांग्रेस की सभा में तिरंगा लपेट कर जाए। नेताओं के भाषण का वीडियो बनाए और हमारी सुविधानुसार उसे पोस्ट किया जाए। कांग्रेस की आलोचना हो तो यह राहुल गांधी से लेकर इटली तक पहुंचना चाहिए।‘’
अब जब अध्यक्षजी इतनी खुलकर बात कर रहे थे तो मुख्यमंत्री कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि यदि कोई मुझे गाली दे तो क्या करना चाहिए? फिर खुद ही जवाब देते हुए वे बोले– ऐसे समय पूरी टीम को सोशल मीडिया पर इस तरह सक्रिय हो जाना चाहिए कि मुझे गाली देने वाला परेशान हो जाए।
इस कार्यक्रम का उद्घाटन भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रदेश के प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे ने किया था। उनका कहना था कि ‘’पैसे देकर सोशल मीडिया पर लाइक्स न बढ़ाएं। दीपावली के वक्त मेरे पास भी यह ऑफर आया था। फेसबुक और टि्वटर से आगे अब ‘कोरा‘ पर भी भाजपा की टीम को सक्रिय होना चाहिए।‘’
सवाल यह है कि बयानों की तोड़ मरोड़ करने की सीख देकर भाजपा आखिर क्या संदेश देना चाहती है। एक समय था जब नसीहत यह होती थी कि तथ्य को तथ्य की तरह ही प्रस्तुत किया जाए, लेकिन अब पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व ही अपने आईटी या सोशल मीडिया सेल को यह निर्देश देने लगे हैं कि वे बयानों को तोड़मरोड़कर प्रस्तुत करना सीखें।
यानी तथ्य या वास्तविकता के निकट पहुंच सकने की जो थोड़ी बहुत गुंजाइश बचती थी उसे भी सप्रयास खत्म किया जा रहा है। ऐसे में पहले से ही अविश्वसनीयता के हिंडोले पर झूल रही राजनीति, झूठ की नित नई पींगे भरने लगेगी और भ्रम का वातावरण और अधिक गहरा होता जाएगा।
मेरा मानना है कि यह पूरा समय ही न केवल राजनीति को बल्कि हर लोकतंत्रिक और संवैधानिक संस्था को संदिग्ध बना देने का है। विपक्षी दलों को, विपक्षी नेताओं को, संसद को, सुप्रीम कोर्ट को यानी हर उस संस्था या मंच को अविश्वसनीय बनाया जा रहा है जहां से कोई सवाल पूछा जा सकता है या आपके किए पर उंगली उठाई जा सकती है।
अविश्वास और संदेह के इस कुंहासे में सारी छवियां इतनी धुंधली बना दी जा रही हैं कि उनका असली रूप लोगों को दिखाई ही न दे सके। और जब असली रूप रंग ही दिखाई नहीं देगा तो कौन किसे पहचानेगा और कौन किसके पक्ष या विपक्ष में खड़ा होगा। भ्रम के इस वातावरण का सबसे ज्यादा फायदा यह होता है कि जनता किसी सही निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाती। और मकसद भी तो यही है कि जनता को तार्किक रूप से किसी निष्कर्ष तक न पहुंचने दिया जाए।
दुर्भाग्य है कि इसके लिए संचार के आधुनिक और सबसे लोकप्रिय मंच ‘सोशल मीडिया’ का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि इस खेल में कोई एक ही दल मैदान में है, बल्कि सचाई यह है कि आज राजनीतिक दलों में ये जो ‘वॉर रूम’ जैसी संरचनाएं हैं, उनका मुख्य काम ही झूठ फैलाना है। झूठ यदि न फैलाया जा सके तो उनका अगला कदम तथ्यों की तोड़मरोड़ होता है, जिसका हुनर सीखने की नसीहत नंदकुमारसिंह अपने ‘सोशल सैनिकों’ को दे रहे थे।
खासतौर से चुनाव के मौसम में तो झूठ की इन मशीनों की सक्रियता देखते ही बनती है। पार्टियों के वॉर रूप में ऐसे ‘टेढ़े मेढ़े कुरकुरे’आयटम का धड़ल्ले से उत्पादन होने लगता है। हाल के गुजरात चुनाव में इसकी बानगी अच्छे से देखी जा सकती है। टीवी चैनलों के वायरल सच जैसे कार्यक्रमों की लोकप्रियता भी बताती है कि झूठ का यह संसार कितनी तेजी से फैल रहा है। यह ऐसा धंधा है जिसमें मुनाफा लागत से कई गुना अधिक हासिल होता है। शायद इसीलिए आजकल सभी इस चोखे धंधे में लगे हैं…