अजय बोकिल
कांग्रेस चाहे तो इसे एक वामपंथी लेखक की बिन मांगी सलाह मानकर खारिज कर सकती है और भाजपा इसे एक ‘हिंदुत्व विरोधी’ इतिहासकार की कांग्रेस को ‘खरी खरी’ मानकर खुश हो सकती है। जाने-माने वामपंथी लेखक, इतिहासकार, विचारक रामचंद्र गुहा ने हाल में कोजीकोड में चल रहे ‘केरल लिटरेचर फेस्टिवल’ में कहा कि राज्य के वायनाड से राहुल गांधी का लोकसभा सांसद चुना जाना सबसे ‘विनाशकारी घटनाओं’ में से एक है। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से मेरे मन में राहुल गांधी के खिलाफ कुछ भी नहीं है। वे एक बढि़या और सुसंस्कृत व्यक्ति हैं। लेकिन आज का युवा भारत ‘एक वंश की पांचवीं पीढ़ी’ को झेलने की स्थिति में नहीं है।
गुहा ने मलयालियों को यह कहकर चेताया कि राहुल को चुनकर भेजने की यही गलती अगर आपने वर्ष 2024 में भी दोहराई तो आप नरेन्द्र मोदी को ही फायदा पहुंचाएंगे। गुहा ने अपने भाषण में वंशवाद को पोसने के लिए कांग्रेस को जी भर कर कोसा। साथ ही वामपंथियों को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उन्हें स्वदेश से ज्यादा दूसरे देशों से प्यार है।
जान लें कि ‘केरल लिटरेचर फेस्टिवल’ 2016 से आयोजित हो रहा है। इसका आयोजन डीसी किजाकुमारी फाउंडेशन, कोजीकोड संस्कारिका वेदी तथा कुछ अन्य संगठन मिलकर करते हैं। इस फेस्टिवल में अमूमन वामपंथी विचारकों, लेखकों, कलाकारों को ही बुलाया जाता है। लेकिन गुहा का यह बयान चौंकाने वाला इसलिए है कि वो नेहरू और उनकी नीतियों के समर्थक रहे हैं। पिछले दिनों उनकी चर्चित किताब महात्मा गांधी की जीवनी ‘गांधी: द ईयर्स दैट चेंज द वर्ल्ड’ के नाम से आई। गुहा क्रिकेट, पर्यावरण और अन्य कई विषयों पर भी आधिकारिक रूप से लिखते रहे हैं।
कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित गुहा बेबाक बयानी के लिए भी जाने जाते हैं। वो हिंदुत्ववादी विचारधारा के कठोर आलोचक और नरेन्द्र मोदी के भी घोर विरोधी रहे हैं। गुहा ने एक बार ट्वीट किया था कि गुजरात आर्थिक रूप से भले प्रगत हो, लेकिन सांस्कृतिक रूप से पिछड़ा राज्य है, इसके विपरीत बंगाल आर्थिक रूप से भले पिछड़ा हो, लेकिन सांस्कृतिक रूप से प्रगत राज्य है। गुहा का यह परोक्ष कटाक्ष मोदी पर था।
गौरतलब बात यह है कि गुहा का ताजा बयान उस परिप्रेक्ष्य में आया है, जब कांग्रेस में एक तरफ नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठ रही है तो दूसरी तरफ पिछले चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपने की बात हो रही है। पार्टी में वर्तमान नेतृत्व की कार्य क्षमता को लेकर कार्यकर्ताओं की बेचैनी को निलंबित कांग्रेस नेता संजय झा के उस दावे से समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी के करीब सौ नेताओं ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा है। इस पत्र में कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन और कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव कराने की मांग की गई थी।
हालांकि कांग्रेस ने झा के दावे को यह कहकर खारिज कर दिया था कि भाजपा की फेसबुक से साठगांठ जैसे अहम मुद्दों से देश का ध्यान हटाने के लिए ऐसी बातें उछाली जा रही हैं। इसके पूर्व पिछले माह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा पार्टी के राज्यसभा सांसदों के साथ की गई वीडियो कान्फ्रेसिंग में कई सदस्यों ने राहुल गांधी को फिर से पार्टी का अध्यक्ष बनाने की मांग की थी। तर्क था कि राहुल गांधी ही विपक्ष में ऐसी इकलौती आवाज हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे रहे हैं।
सवाल पूछा जा सकता है कि क्या वाकई राहुल मोदी को तगड़ी राजनीतिक चुनौती दे रहे हैं या दे सकते हैं? ऐसे में गुहा का यह कहना कि राहुल गांधी में मोदी का मुकाबला करने की क्षमता नहीं है, बहुत मायने रखता है। गुहा ने अपने भाषण में कांग्रेस की यह कहकर आलोचना की कि जो कांग्रेस स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक ‘महान पार्टी थी, वो अब एक ‘दयनीय खानदानी फर्म’ में सिमट गई है। इस देश में ‘हिंदुत्व’ के उभार का यह एक बड़ा कारण है।
गुहा ने दावा किया कि अगर राहुल ज्यादा मेहनती, ज्यादा बुद्धिमान होते और यूरोप में छुट्टियां न मनाते होते तो इससे मोदी की राह कठिन हो सकती थी। अपने व्याख्यान में गुहा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी यह कहकर हमला बोला कि उनकी कार्यशैली मुझे उन बाद के मुगल बादशाहों की याद दिला देती है, जिनकी रुचि साम्राज्य को सुशासित करने की जगह केवल तख्त पर जमे रहने में थी।
रामचंद्र गुहा ने केरलवासियों की तारीफ करते हुए कहा कि आप लोगों ने कई बहुत अच्छे काम किए हैं, केवल एक को छोड़कर। और वो है राहुल गांधी को वायनाड से चुनकर भेजना। ध्यान रहे कि राहुल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में वायनाड सीट से माकपा के पीपी सुनीर को 4 लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। हालांकि इसी चुनाव में वो अमेठी से अपनी परंपरागत सीट पर भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए थे।
इसी संदर्भ में यह सवाल भी मौजूं है कि क्या 21 वीं सदी में भी देश वंशवाद को झेलने की स्थिति में है, बावजूद इसके कि आज भाजपा समेत अधिकांश पार्टियां वंशवाद के औचित्य और अनौचित्य की व्याख्या अपनी सुविधा से करती हैं? गुहा ने कहा कि आज का भारत तुलनात्मक रूप से ज्यादा लोकतांत्रिक और कम सामंतवादी है। गांधी परिवार को इस बात को समझना चाहिए। सोनिया गांधी की ओर इशारा करते हुए गुहा ने कहा कि आप दिल्ली में बैठी हैं और आपका साम्राज्य दिनोदिन सिकुड़ता जा रहा है, लेकिन चमचे आप को यही बता रहे हैं कि आप अभी भी बादशाह हैं।
गुहा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह कहकर तारीफ की कि वो ‘राहुल गांधी’ नहीं हैं। मोदी ‘सेल्फ मेड’ नेता हैं। उन्होंने एक राज्य को मुख्यमंत्री के रूप में 15 साल तक चलाया है। उनके पास भरपूर प्रशासनिक अनुभव है। वो अतुलनीय रूप से कठोर मेहनत करने वाले व्यक्ति हैं, जो कभी यूरोप में छुट्टियां मनाने नहीं जाते। गुहा ने कहा कि मैं ये सारी बातें बहुत गंभीरता से कह रहा हूं।
अपने भाषण में गुहा ने प्रख्यात भारतीय समाजशास्त्री आंन्द्रे बेतीले को उद्धृत करते हुए कहा कि नेहरू-गांधी परिवार की कहानी बाइबल में उल्लेखित उलटबांसी का क्लासिक उदाहरण है, जिसमें कहा गया है कि पिता के पापों को सात पीढि़यों को ढोना पड़ता है। यहां तो नेहरू के बाद की पीढि़यों के पापों को नेहरू को ढोना पड़ रहा है। गुहा के अनुसार इस पर तो राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए कि क्यों नेहरू को हमें याद करना पड़ता है? क्यों मोदी बार-बार यह कहते हैं कि ‘नेहरू ने कश्मीर में ये किया, नेहरू ने चीन में वो किया, तीन तलाक में ये किया..। मोदी इसलिए ऐसा कहते हैं कि क्योंकि उनके सामने राहुल गांधी हैं। अगर राहुल गांधी मोदी के मुकाबिल नहीं होंगे तो मोदी को अपनी ही नीतियों की नाकामयाबियों के बारे में बात करना पड़ेगी।
यहां बुनियादी प्रश्न यह है कि रामचंद्र गुहा की असली मंशा क्या थी? क्या वो केरल में लेफ्ट की सरकार होने के चलते केरल में विपक्ष में बैठी कांग्रेस की आलोचना कर वाम को खुश करना चाहते थे या फिर कांग्रेस को आईना दिखाना चाहते थे? हालांकि भाषण में उन्होंने वामपंथियों की भी आलोचना की, लेकिन उनका वास्तविक सुर पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी नीतियों का बचाव और उनके वंशजों से देश को मिल रही हताशा से था। गुहा ने जो भी कहा वो हकीकत है, इसमें दो राय नहीं। दरअसल कांग्रेस ने वंशवाद से खुद को इतना ज्यादा आईडेंटीफाई कर लिया है कि उससे अलग होना उसके लिए संजीवनी कम खुदकुशी करने जैसा ज्यादा है।
गुहा ने अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ की तो इसका मतलब मोदी के बारे में उनकी राय बदल गई है, ऐसा नहीं है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि मोदी अपने दम पर उभरे और बने हुए नेता हैं। उनकी नीतियों से असहमति हो सकती है, उनके बड़बोलेपन पर सवाल हो सकते हैं, लेकिन कार्यनिष्ठा और कठोर श्रम पर प्रश्न करना सचाई को झुठलाना है।
हालांकि गुहा ने बाद में स्पष्ट किया कि उनका सम्बोधन ‘संवैधानिक राष्ट्रवाद बनाम हिंदुत्व के अंधराष्ट्रवाद’ को लेकर था। गुहा के मुताबिक भारत में हिंदुत्ववादी विचारधारा के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन इसलिए कमजोर पड़ गया, क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य पार्टी (कांग्रेस) आज एक परिवार द्वारा नियंत्रित है। अब तो देश के आम नागरिक को ही संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए आगे आना होगा, जैसे कि सीएए विरोध के रूप में हुआ।
गुहा की बात में दम है क्योंकि आज वक्त, परिस्थितियां और तकाजे बदल चुके हैं। नई पीढ़ी की आकांक्षाएं और आग्रह बदल चुके हैं। उनकी इस बात से असहमति नहीं हो सकती कि आखिर देश एक वंश विशेष की पांचवीं पीढ़ी को क्यों ढोए? गुहा ने तो पाप का उदाहरण दिया, लेकिन इसकी जगह पुण्य की भी बात की जाए तो एक पीढ़ी की पुण्याई की बैटरी भी पांचवीं पीढ़ी तक कितनी रोशनी देगी?