भोपाल के एक सोशल मीडिया ग्रुप पर हिंदू और हिन्दुस्तान शब्दों को लेकर सवाल उठे। खूब बहस चली। कई सवाल उठाए गए। ऐसे कुछ सवालों का जवाब देते हुए पत्रकार मनोज जोशी ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी है। हम अपने पाठकों से वह पोस्ट शेयर कर रहे हैं। इस आग्रह के साथ कि यदि उनके पास इस सबंध में कुछ और प्रमाण हों या फिर पोस्ट में दिए गए तथ्यों को लेकर उनकी कुछ शंकाएं और सवाल हों तो वे नि:संकोच मध्यमत पर शेयर करें।– संपादक
मनोज जोशी की पोस्ट-
भोपाल के कुछ पत्रकारों के समूह में हिंदु, हिंदुस्थान और हिंदुत्व शब्द और धारणा को लेकर चर्चा शुरू हो गई। मैंने वादा किया था कि मैं सारे प्रश्नों का जवाब दूँगा और यह भी साफ किया था कि वर्तमान दौर में हिंदु या हिंदुत्व का किसी पूजा पद्धति से लेना-देना नहीं है। भारत में रहने वाले सभी लोग हिंदु हैं। क्योंकि सबके पूर्वज एक हैं और यह शब्द पूर्वजों का ही दिया हुआ है।
#1 सबसे पहले बात हिंदु शब्द की उत्पत्ति की
कहा जाता है कि पारसी लोगों ने सिंधु किनारे रहने वालों को हिंदु कहा, क्योंकि वे ‘स’ को ‘ह’ उच्चारण करते थे। माना कि ये फारसियों का दिया शब्द है, लेकिन भारत के लोग तो फारसी नहीं बोलते थे। फिर उन्होंने एक फारसी शब्द कैसे अपना लिया? न केवल अपना लिया बल्कि उसे अपनी पहचान मान लिया।
दरअसल अध्ययन करने पर सामने आने वाले तथ्य तो कुछ और कहते हैं- उस समय भारत की सीमा अफगान तक थी और भारत की सीमा के सबसे करीब काबुल नदी थी तो हमें काबुली क्यों नहीं कहा गया??
अब फारसी भाषा के व्याकरण की बात कर लीजिए। फारस या वे खुद को परस बोलते उसमे भी ‘स’ है पर वे तो खुद को ‘परह’ नहीं कहते थे। प्राचीन इराकी शहर ‘सुमेर’ को भी वे ‘सुमेर’ ही कहते थे। प्राचीन समय में सिंध राज्य था और उसे सिंध ही कहा गया। साथ ही आज के पाकिस्तान में सिंध प्रान्त है पर उसे भी सिंध ही कहते हैं। और यदि सिन्धु के दूसरी तरफ रहने वालों को हिन्दु कहा गया, तो सिंध को ‘सिंध’ ही क्यों ‘हिन्द’ क्यों नहीं? संस्कृत को भी ‘हंह्कृत’ नहीं कहते।
#2 एक और बात, पारसी पंथ की स्थापना 700 ईसा पूर्व की है। बाद में इस पंथ को संगठित रूप दिया जरथुस्त्र ने। लेकिन हिंदु शब्द का जिक्र पारसियों की किताब से पूर्व की किताबों में भी मिलता है।
उदाहरण देखिए –
मेरु तंत्र (शैव ग्रन्थ) में हिन्दु शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है…
‘हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्चते प्रिये’
( अर्थात- जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दु कहते हैं)
लगभग यही मंत्र कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है–
‘हीनं दूषयति इति हिन्दू’
( अर्थात- जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे वह हिन्दु है।)
पारिजात हरण में ‘हिन्दु’ को कुछ इस प्रकार कहा गया है |
हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टम ¡
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदुरभिधियते ।।
माधव दिग्विजय में हिन्दु शब्द का इस प्रकार उल्लेख है-
ओंकारमंत्रमूलाढ्य पुनर्जन्म दृढाशयः।
गोभक्तो भारतगुरू र्हिन्दुर्हिंसनदूषकः॥
( अर्थात- वो जो ओमकार को ईश्वरीय ध्वनि माने, कर्मो पर विश्वास करे, गो पालक रहे तथा बुराइयों को दूर रखे वो हिन्दु है)
#3 प्रश्न उठाया गया कि वेदों में हिंदु शब्द क्यों नहीं है?
जवाब लीजिए- ऋग्वेद के बृहस्पति अग्यम में हिन्दु शब्द इस प्रकार आया है-
हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
( अर्थात- हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिन्दुस्थान कहते हैं)
ऋग्वेद (८:२:४१) में ‘विवहिंदु’ नाम के राजा का वर्णन है जिसने 46000 गाएँ दान में दी थीं। विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानीराजा था और ऋग्वेद मंडल 8 में भी उसका वर्णन है|
#4 हमारे ग्रंथों के अलावा भी अनेक जगह पर हिन्दु शब्द का उल्लेख किया गया है।
– इस्लाम के चतुर्थ खलीफ़ा अली बिन अबी तालिब लिखते हैं कि वह भूमि जहां पुस्तकें सर्वप्रथम लिखी गईं, और जहां से विवेक तथा ज्ञान की नदियां प्रवाहित हुईं, वह भूमि हिन्दुस्तान है।
– नौवीं सदी के मुस्लिम इतिहासकार अल जहीज़ लिखते हैं-
‘’हिन्दु ज्योतिष शास्त्र में, गणित, औषधि विज्ञान तथा विभिन्न विज्ञानों में श्रेष्ठ हैं। मूर्ति कला, चित्रकला और वास्तुकला का उऩ्होंने पूर्णता तक विकास किया है। उनके पास कविताओं, दर्शन, साहित्य और नीति विज्ञान के संग्रह हैं। भारत से हमने ‘कलीलाह’ वा ‘दिम्नाह’ नामक पुस्तक प्राप्त की है।
इन लोगों में निर्णायक शक्ति है, ये बहादुर हैं। उनमें शुचिता एवं शुद्धता के सद्गुण हैं। मनन वहीं से शुरु हुआ है।
#5 एक और बात
चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय में ‘हिंदु’ शब्द प्रचलित था। चीनी भाषा में भी ‘इंदु को ‘इंतु’ कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष में राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को ‘इंतु’ या ‘हिंदु’ कहते थे।
मैंने कहीं पढ़ा है कि हिंदु शब्द संस्कृत से आया है। ह:+इंदु =हिंदु। अर्थात जिसका ह्रदय इंदु यानी चंद्रमा के समान पवित्र है, वह हिंदु है।
#6 एक मान्यता यह भी है कि हिंदु शब्द हिमालय के प्रथम अक्षर ‘हि’ एवं ‘इन्दु’ का अंतिम अक्षर ‘न्दु’। इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना ‘हिन्दु’ और यह भू-भाग #हिन्दुस्थान कहलाया।
(यह वह शब्द जहाँ से बात शुरू हुई थी और जिस पर चर्चा चल पङी थी)
#7 #हिंदुत्व ही #राष्ट्रीयत्व है
हिंदु शब्द की उत्पत्ति की बात मेरे ख्याल से स्पष्ट हो गई। हिंदु शब्द भारत के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। और यह ग्रंथ भारत में मुस्लिम और ईसाई पंथ के आगमन से पहले के हैं। भारत के मुस्लिम और ईसाई भी इस हिसाब से हिंदु ही हैं। क्योंकि हमारे पूर्वज एक हैं। इन ग्रंथों पर भारत के मुसलमानों और ईसाइयों का भी उतना ही अधिकार है जितना अन्य का। पूजा पद्धति बदल जाने से पूर्वज नहीं बदलते। केवल दो उदाहरण दूँगा पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना के पिताजी मुहम्मद अली के जन्म के भी बरसों बाद मुसलमान बने थे। अल्लामा इकबाल कश्मीरी ब्राह्मण थे। ‘हिन्दु’ शब्द किसी पंथ/मजहब/Religion की बजाय राष्ट्रीयता का परिचायक है।
#8 अब बात सनातन धर्म की-
सनातन का अर्थ शाश्वत होता है यानी कभी न खत्म होने वाला। हिंदुत्व सबसे प्राचीन विचारधारा है जिसके धारणत्व आचरण को धर्म कहा गया। जो किसी एक किताब से शुरू नही होती और ना ही खत्म होती है। आस्तिक-नास्तिक या निराकार साकार सब विषयों, विचारों को सनातन धर्म खुद में समाए हुए है। ध्यान से देखिए इसमें विश्व की सभी पूजा पद्धतियां समाहित हैं।
#9 अब पंथ यानी Religion की बात
अंग्रेजी के शब्द Religion का अनुवाद धर्म कर देने से भारत के संदर्भ में गड़बड़ हो गया। हमारे लिए धर्म का पूजा पद्धति से कोई लेना देना नहीं है। जो धारण करने योग्य है, वह धर्म है।
उच्चतम न्यायालय भी यही कहता है।
क्या हिन्दुत्व को सच्चे अर्थों में धर्म कहना सही है? इस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय ने– “शास्त्री यज्ञपुरष दास जी और अन्य विरुद्ध मूलदास भूरदास वैश्य और अन्य (1966 (3) एस.सी.आर.242) के प्रकरण पर विचार किया। इस प्रकरण में प्रश्न उठा था कि स्वामी नारायण सम्प्रदाय हिन्दुत्व का भाग है अथवा नहीं? इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री गजेन्द्र गडकर ने अपने निर्णय में लिखा–
“जब हम हिन्दु धर्म के संबंध में सोचते हैं तो हमें हिन्दु धर्म को परिभाषित करने में कठिनाई अनुभव होती है। विश्व के अन्य मजहबों के विपरीत हिन्दु धर्म किसी एक दूत को नहीं मानता, किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं है, वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, यह किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति नीति को नहीं मानता, वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की संतुष्टि नहीं करता है। वृहद रूप में हम इसे एक जीवन पद्धति के रूप में ही परिभाषित कर सकते हैं– इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं।”
रमेश यशवंत प्रभु विरुद्ध प्रभाकर कुन्टे (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 1113) के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय को विचार करना था कि विधानसभा के चुनावों के दौरान मतदाताओं से हिन्दुत्व के नाम पर वोट माँगना क्या मजहबी भ्रष्ट आचरण है। उच्चतम न्यायालय ने इस प्रश्न का नकारात्मक उत्तर देते हुए अपने निर्णय में कहा-
“हिन्दु, हिन्दुत्व, हिन्दुइज्म को संक्षिप्त अर्थों में परिभाषित कर किन्हीं मजहबी संकीर्ण सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता है। इसे भारतीय संस्कृति और परंपरा से अलग नहीं किया जा सकता।”
#10 कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हिन्दुत्व शब्द इस उपमहाद्वीप के लोगों की जीवन पद्धति से संबंधित है। इसे संकीर्णता नहीं कहा जा सकता। साधारण रूप में हिन्दुत्व को एक जीवन पद्धति ही समझा जा सकता है।
#11 चर्चा में वीर सावरकर का नाम आया था।
वीर सावरकर ने हिंदुत्व की परिभाषा करते हुए लिखा है-
आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता,
भारत भूमिका यस्य,
पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव
सा वै हिंदू रीती स्मृत:
अर्थात जो भारत भूमि को पितृ-भूमि व पुण्य भूमि मानता है वह हिंदु है। जो इस देश के महापुरुषों को अपना पूर्वज मानता है वह हिंदु है। आखिर सावरकर ने गलत क्या कह दिया?
#12 चर्चा में भाजपा का नाम भी आया और राजनीति का भी जिक्र हुआ था। उसकी बात नहीं होगी तो जवाब अधूरा रह जाएगा। भाजपा की पूर्ववर्ती जनसंघ के संस्थापक सदस्य प्रो. बलराज मधोक ने मुसलमानों के लिए मोहम्मदपंथी हिंदू, ईसाइयों के लिए इशूपंथी हिंदू नाम सुझाए थे। उनका मत था कि उपासना पद्धत्ति के आधार पर किसी को बाहर से आए प्रवासी होने का एहसास नहीं होना चाहिए। हिंदु शब्द राष्ट्रीयता के रूप में इन सभी उपासान पद्धतियों के लिए गोंद का काम कर सकता है।
#13 चर्चा में कवि रसखान का नाम भी आया था। इशारा यह था कि हिंदुत्व की बात करने वाले लोग इनका जिक्र नहीं करते। आप लोग किसी भी दिन सुबह संघ की किसी भी शाखा में चले जाइए। वहाँ एकात्मता स्तोत्रम का वाचन सुन लीजिए, उसमे रसखान आदि का जिक्र है।
#14 फिर भी अब मैं पूरे जोर से कहता हूँ कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व का ठेकेदार नहीं है। लेकिन यह बात भी सही है कि आज की तारीख में हिंदुत्व की रक्षा और उन्नति के लिए संघ से बेहतर कार्य करने वाला संगठन भी नहीं है। हिंदुत्व शब्द की व्याख्या करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत कहते हैं कि- हिंदुस्तान में रहने वाला हर नागरिक उसी तरह हिंदु कहलाएगा, जैसे अमेरिका में रहनेवाला हर नागरिक अमेरिकी कहलाता है, उसका धर्म चाहे जो हो। आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार या उनके बाद गुरु गोलवलकर जी ने कभी नहीं कहा कि वे हिंदुत्व का संचालन करेंगे। उन्होंने हर बार यही कहा कि भारत का गौरव लौटाना है। भारत की प्राचीन संस्कृति को पुनर्स्थापित करना है। मैं विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता रहा हूँ। हम कहते हैं-राष्ट्रीय पुनर्निर्माण (नया नहीं पुनः निर्माण) करना है। पुनः निर्माण करना है यानी पुरानी संस्कृति फिर से जीवित करना है। इसीलिए #हिंदु #हिंदुत्व और #हिंदुस्थान की बात करते हैं।
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आग्रह
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टीम मध्यमत