टूटे हुए कश्मीर में फिर दहशतगर्दी

राकेश अचल

टूटे हुए कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया तो शुरू नहीं हो पायी लेकिन पाकिस्तान की ओर से हमेशा की तरह दहशतगर्दी जरूर शुरू हो गयी। पाकिस्तान की ओर से एक तरफ भारतीय सेना के ठिकाने पर ड्रोन से हमला किया गया और दूसरी तरफ एक एसपीओ और उसकी पत्नी की हत्या आतंकियों ने कर दी। इन दोनों बातों का आपस में क्या रिश्ता है, ये जान लेना बहुत जरूरी है, इसे जाने बिना आप देश की सियासत में कश्मीर की भूमिका को नहीं समझ सकते।

आपको याद होगा कि टूटा हुआ कश्मीर बीते दो साल से केंद्र के अधीन है। ऐसे में वहां पाकिस्तान की ओर से ड्रोन के जरिये सैन्य ठिकाने पर हमला इस बात की ताईद करता है कि बीते दो साल में कश्मीर की दशा सुधरने के बजाय और खराब हुई है। खुदा का शुक्र है कि जम्मू में एयरफोर्स स्टेशन के टेक्निकल एरिया में रविवार को ड्रोन से हुए आतंकी हमले में नुकसान ज्यादा नहीं हुआ, लेकिन इसने सैन्य, इंटेलिजेंस और विदेश नीति को लेकर नए सिरे से सोचने को विवश कर दिया है।

अजब संयोग है कि भारत में जब-जब लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बात होती है ऐसे हमले शुरू हो जाते हैं। फरवरी 2019 को पुलवामा में हुए हमले के समय भी देश में चुनाव चल रहे थे। सत्तारूढ़ दल ने पुलवामा में शहीद हुए सैनिकों की तस्वीरें अपनी चुनावी सभाओं में लगाकर सियासी खेल खेला था। इस हमले में सीआरपीएफ के करीब 40 जवान मारे गए थे। सवाल ये है कि ये हमले ठीक उसी समय क्यों होते हैं जब भारत में कुछ नया होने को होता है, या फिर भारत सरकार दूसरे मसलो में उलझी होती है?

कश्मीर आजादी के बाद से ही बारूद के ढेर पर बैठा है, लेकिन वहां देश की कोई भी सरकार स्थायी शांति स्थापित नहीं कर पाई। 1971 में भारत-पाक युद्ध के बाद से पाकिस्तान कश्मीर को शांत रहने नहीं देता और भारत पाकिस्तान की मुश्कें बाँध नहीं पाता। भारत ने पाकितान से 1999 में कारगिल युद्ध भी लड़ा लेकिन बात बनी नहीं। मौजूदा सरकार ने भी कश्मीर समस्या का स्थायी निदान करने के बजाय उसके तीन टुकड़े कर दिए, अब इन टुकड़ों में भी शान्ति नहीं है।

सवाल ये है कि जब पाकिस्तान ने केंद्र शासित कश्मीर में ड्रोन हमले की तकनीक हासिल कर ली तब भारत ने क्या हासिल किया? भारत सरकार कश्मीर में किस आधार पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया आरम्भ करना चाहती है? जाहिर है कि न हमारी सरकार की रणनीति ठीक है और न पाकिस्तान सरकार की नीयत। मैं ये बिलकुल कहने नहीं जा रहा कि कश्मीर में अशांति और देश में चुनावों के बीच कोई सीधा रिश्ता है लेकिन मुझे इस बात से भी इंकार नहीं है कि ये रिश्ता हो भी सकता है। दरअसल देश में इस समय उस पार्टी की सरकार है जो विपक्ष में रहते हुए पाकिस्तानी सेना द्वारा मारे गए भारतीय सैनिकों के सर काटे जाने की नृशंस वारदात के समय ये कहते नहीं थकती थी कि उन्होंने यदि हमारे छह सैनिकों के सर काटे हैं तो हम बारह के काटेंगे।

मुझे आशंका है कि हमारी समझदार सरकार ने टूटे हुए कश्मीर में लोकतंत्र बहाली के लिए जो समय चुना है उसका सीधा संबंध 2022 में होने वाले विधानसभा के चुनावों से है। सरकार कश्मीर में अशांति की आड़ लेकर एक बार फिर पुलवामा हमले के शहीदों की तरह कुछ न कुछ ऐसा खेल खेलने की धृष्टता करने वाली है जिससे कि आने वाले विधानसभा चुनाव जीते जा सकें। कश्मीर में लोकतंत्र बहाली तो एक बहाना है।

आपको याद होगा कि अब कश्मीर में आतंकियों के हमले में हमारे किसी सैनिक या आम नागरिक के मारे जाने की कोई मजबूत प्रतिक्रिया नहीं होती, क्योंकि सरकार और अवाम भी इसकी अभ्यस्त हो गयी है। भारत अमेरिका नहीं है जो अपने एक-एक सैनिक की मौत का हिसाब रखकर हिसाब करता हो? हम आजतक पुलवामा के शहीदों का हिसाब नहीं ले पाए हालांकि हमने पकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक करने का दुस्साहसिक कारनामा कर दिखाया था।

टूटे हुए कश्मीर में अब किसी राजनीतिक दल की चुनी हुई सरकार नहीं है। वहां केंद्र सरकार प्रशासन सम्हाले हुए है, इसलिए सारी जिम्मेदारी केंद्र की है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह ने बताया, “जम्मू में भारतीय वायुसेना स्टेशन पर हुआ हमला एक आतंकी घटना थी। इस घटना के पीछे लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद का हाथ हो सकता है।” घटना की जांच होने के बाद केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसकी समीक्षा करेंगे। समीक्षा के अलावा हमारे रक्षामंत्री करते भी क्या हैं? हाँ उन्हें दुनिया ने रफेल विमानों की पूजा करते हुए फ्रांस में जरूर देखा था।

पिछले दिनों 24 जून को ही केंद्र सरकार ने टूटे कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने के लिए भूतपूर्व राज्य के राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ गुफ्तगू की थी, लेकिन इसके बारे में देश को ज्यादा नहीं पता। बताने की जरूरत भी नहीं समझती केंद्र सरकार। जनता को छोड़िये हमारे राष्ट्रपति को नहीं पता की केंद्र सरकार आखिर कर क्या रही है? लेकिन शायद पाकिस्तान को पता है कि केंद्र कश्मीर में क्या करने वाला है?

मुमकिन है कि पाकिस्तान टूटे कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाली में बाधा डालना चाहता हो, लेकिन इससे पकिस्तान को हासिल क्या होना है? जिस कश्मीर के लिए पाकिस्तान बीते सत्तर सालों से भारत के साथ गोलीबारी कर रहा है उसे तो तोड़ा जा चुका है, ठीक उसी तर्ज पर कि- हम खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ देंगे। खेल तो बिगड़ ही चुका है। यदि कश्मीर को खंडित करने के बाद भी वहां दुश्मन ड्रोन से सैन्य ठिकानों पर हमले का दुस्साहस कर सकता है तो आने वाले दिनों में कुछ भी कर सकता है, क्योंकि पाकिस्तान के पास अपने देश में करने के लिए कुछ बचा ही नहीं है।

हमारे प्रधानमंत्री बीते डेढ़ साल से एक ढाका को छोड़ कहीं गए नहीं हैं इसलिए ये उम्मीद की जा सकती थी कि उन्होंने कश्मीर को तोड़ने के बाद वहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी कर दिए होंगे, लेकिन आज के ड्रोन हमले ने इस उम्मीद को भी नाउम्मीद में बदल दिया। केंद्र इस घटना का क्या उत्तर देगा ये किसी को नहीं पता लेकिन सबको पता है कि केंद्र का इरादा तनातनी के इसी माहौल में यूपी समेत दूसरे राज्यों में अपने पावों के नीचे से खिसकती जमीन को बचाने का है। मैं तो ईश्वर से प्रार्थन करूंगा की वो भाजपा को तमाम चुनाव जिता दे ताकि भारत कभी न हारे। (मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

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