फजीहत तो हो ही रही है, बचा क्‍या है मुंह छिपाने को?

26 जनवरी के अवकाश से पहले प्रदेश में एक मसला बहुत चर्चा में था। वैसे तो यह मसला कानून व्‍यवस्‍था से जुड़ा है लेकिन इसमें घटनाओं ने कुछ ऐसा मोड़ लिया है कि बात निकली तो फिर पता नहीं कहां-कहां तक पहुंच गई। इसकी शुरुआत 19 जनवरी को राजगढ़ जिले के ब्‍यावरा में सीएए के समर्थन में आयोजित रैली से हुई थी। दरअसल उस रैली में शामिल भाजपा के एक नेता को कलेक्‍टर निधि निवेदिता ने थप्‍पड़ रसीद कर दिया था। उस दिन उनकी मातहत डिप्‍टी कलेक्‍टर प्रिया वर्मा भी इस मामले में पीछे नहीं रही थीं और उन्‍होंने भी रैली में शामिल लोगों पर हाथ आजमा लिए थे।

घटना के बाद आगबबूला हुई भाजपा ने अफसरशाही के इस रवैये का विरोध करने का ऐलान कर दिया। इसी विरोध के चलते जब भाजपा के दिग्‍गज नेता 22 जनवरी को ब्‍यावरा में जुटे तो वहां मंच से पूर्व मंत्री बद्रीलाल यादव ने महिला कलेक्‍टर को लेकर ऐसी टिप्‍पणी कर दी जिसने फ्रंट फुट पर आई भाजपा को न सिर्फ बैकफुट पर जाने के लिए मजबूर कर दिया बल्कि थप्‍पड़ कांड से कठघरे में खड़ी आ रही अफसरशाही को राजनेताओं के सामने सीना ठोक कर खड़ा होने का मौका भी दे दिया।

वैसे तो मामले में कई अफसरों ने प्रतिक्रिया दी और आईएएस एसोसिशन से लेकर राज्‍य प्रशासनिक सेवा संघ तक ने इसे लेकर अपना विरोध जताया लेकिन गुना जिले के कलेक्‍टर भास्‍कर लक्षकार प्रतिक्रिया देने में सबसे मुखर रहे। उन्‍होंने फेसबुक पर इस बारे में एक लंबी पोस्‍ट डाली जिसमें लिखा-

‘’हो यह गया है कि जिसका जो मन आता है, आप पर (आप यानी अफसर कलेक्टर या एस.पी. ही नहीं बल्कि छोटे साधारण कर्मचारी सब शामिल हैं इसमें) आरोप लगा के हें-हें ठें-ठें करता निकल जाता है। आप कुढ़ते, उबलते रह जाते हैं, वे सार्वजनिक रूप से झूठ बोलकर अपमानित करके निकल जाते हैं। वे उन लोगों के पक्ष में सीना ठोक के झूठ बोलते हैं और आपको कोसते हैं जिनकी दिन दहाड़े की डकैती और घपलेबाजियां सारा शहर जानता है।… आप अधिकारी हैं इसके विशेष अधिकार तो जो मिलते होंगे सो मिलते होंगे, लेकिन इस ठप्पे के कारण आप तमाम लोगों के निशाने पर बने ही रहते हैं। मज़ेदार यह है कि डकैत आपके बारे में न्यायाधीश बने फिरते हैं।‘’

भास्‍कर लक्षकार की इस प्रतिक्रिया ने एक बार फिर आग भड़काने का काम किया और उनकी फेसबुक पोस्‍ट पर जवाबी हमला ट्विटर से हुआ। हमला करने वाले थे मध्‍यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गोपाल भार्गव। भार्गव ने एक के बाद एक 11 पोस्‍ट डाली। उन्‍होंने लिखा-

‘’ब्यावरा राजगढ़ की घटना को लेकर आजकल प्रदेश के कुछ आईएएस अफसरों के मन में, कथन में और लेखन में भारी अकुलाहट है। पिछड़ा वर्ग के एक पूर्व मंत्री बद्रीलाल यादव द्वारा कहे गए कथन या भाषण से एलीट वर्ग घायल है। इस वर्ग को देवताओं ने भारत की जनता के लिए विशेष प्रसाद के रूप में दिया है, इसलिए वह ऐसे कवच कुंडल धारण किए हैं जिन पर अंबेडकर जी द्वारा लिखित संविधान और आईपीसी, सीआरपीसी के विधानों का कोई असर नहीं होता। उनकी नजर में सभी राजनीतिक व्यक्ति डाकू है और वह स्वयं में देव पुरुष हैं।‘’

‘’रेत खदानों, शराब दुकानों, परिवहन नाकों जैसे अनेक ईश्वर प्रदत्त कमाई के जरियों से इसी राज्य में इसी वर्ग के दंपति के पास अरबों रुपयों की संपत्ति बरामद हुई थी। वह तो एक छोटा सा उदाहरण मात्र है, लेकिन नेता तो डाकू है और आप देवपुरुष हैं। … मैंने अपने राजनीतिक जीवन में देखा कि यही अधिकारी मुख्यमंत्री के यहां उनके दरवाजे और दरबार में मनचाही पदस्थापना के लिए दरबारी बनकर बैठे रहते हैं। यही देवपुरुष जनता की गाढ़ी कमाई को लूट कर मधुपान करते हैं और फिर ट्रैप में फंसते हैं. तब जाकर वीडियो के बदले एक करोड़ रुपए तक देते हैं।‘’

‘’यह पैसा कहाँ से आता है? ऐसे लगभग 8 देवपुरुषों के वीडियो मेरे एक परिचित के पास हैं। मैं चाहता तो सब खुलासा करता लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि यह गंदगी फैले और मेरा मध्यप्रदेश पूरे देश और दुनिया में कुकर्मी प्रदेश के रूप में जाना जाए। इस कारण मैं अभी तक चुप रहा। ब्यावरा घटना एवं देवपुरुषोंके वक्तव्यों से अब पानी सिर से ऊपर है। मैं यह भी नहीं चाहता था कि ईडी, आईडी और सीबीआई जैसी संस्थाएं राज्य में आकर कार्यवाही करें और मेरे ही राज्य की फजीहत हो लेकिन जो देवपुत्रगटकने की अति कर रहे हैं, उनके बारे में मुझे पार्टी की मंशा अनुसार तय करना है…’’

जिन लोगों की रुचि भास्‍कर लक्षकार और गोपाल भार्गव की पूरी पोस्‍ट जानने में है वे दोनों के क्रमश: फेसबुक और ट्विटर हैंडल देख सकते हैं। लेकिन असली मुद्दा अफसरों और राजनेताओं की यह तू-तू, मैं-मैं नहीं बल्कि इससे उपजने वाले सवाल हैं। सोशल मीडिया प्‍लेटफार्म पर आई, ऊपर संदर्भित इन दो पोस्‍ट का ही संज्ञान लें तो यह गवर्नेंस के दो प्रमुख स्‍तंभों के बीच पनप रही खतरनाक टकराहट की ओर इशारा करते हैं। राजनीतिक नेतृत्‍व और अफसरशाही का काम मिलकर देश और प्रदेश को सुशासन देना है, यदि दोनों के बीच तलवारें खिंच जाएं तो उनका कुछ हो या न हो लेकिन प्रदेश और जनता का कबाड़ा होना तय है।

दूसरी बात देश में इन दिनों खतरनाक वायरस की तरह फैल रही ‘सिलेक्टिव समर्थन’ और ‘सिलेक्टिव विरोध’ की प्रवृत्ति की है। एक कलेक्‍टर के समर्थन में उतरे प्रशासनिक अधिकारियों के संगठनों और व्‍यक्तिगत स्‍तर पर सोशल मीडिया में प्रतिक्रिया देने वाले अफसरों के पास इस सवाल का क्‍या जवाब है कि अपनी छवि और गरिमा की चिंता उन्‍हें उस समय क्‍यों नहीं हुई जब उनकी ही बिरादरी के स्‍वनामधन्‍य लोगों के नाम ‘हनी ट्रैप’ में सामने आए। उस समय क्‍यों आपके संगठनों को यह बयान जारी करने की सुध नहीं आई कि ये लोग पूरे कैडर के नाम पर कलंक हैं और इसमें जो जो भी शामिल हैं उनके नाम सार्वजनिक किए जाकर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। जब आप स्‍वयं ‘दुग्‍धपान’ और ‘मधुपान’ में भेद करते हुए ‘सिलेक्टिव’ तरीके से विरोध या समर्थन करेंगे तो आपकी बात का वजन ही क्‍या रहेगा?

रही बात राजनेताओं के जवाब की, तो सवाल गोपाल भार्गव से भी बनता है कि यदि उनके पास किसी अपराध के सबूत हैं तो ‘न्‍याय-हित’ में उनका पहला कर्तव्‍य उन्‍हें उजागर करना है। यदि ऐसा नहीं होता तो यह क्‍यों न माना जाए कि राजनीतिक बिरादरी भी जानते बूझते ऐसे अपराधियों को संरक्षण दे रही है। जहां तक राज्‍य की फजीहत जैसे ‘आदर्शवादी’ तर्क का प्रश्‍न है, तो अब उसका कोई मतलब नहीं बचा है। ऐसी फजीहत तो जाने कब से हो रही है, व्‍यापमं से लेकर हनी ट्रैप तक हुई ही है, अब बचा क्‍या है मुंह छिपाने को…

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