खबर आई है, ‘अंगूठे’ अब तेज चलने लगे हैं…

कभी-कभी कुछ खबरें न सिर्फ हैरान कर देती हैं बल्कि स्‍थापित मान्‍यताओं की भी धज्जियां उड़ा देती हैं। ऐसी ही एक खबर ने मुझे चौंका दिया। खबर यह है कि स्‍मार्ट फोन पर अंगूठों से टाइप करने वालों ने टाइपिंग की गति में ‘की-बोर्ड’ से टाइप करने वालों को भी मात दे दी है। यानी लोग अंगुलियों से ज्‍यादा तेजी से अब अंगूठे चला रहे हैं।

हमारे यहां तो इस तरह के अनूठे आइडियाज पर प्रयोग कम होते हैं, लेकिन दाद देनी होगी विदेशी अनुसंधानकर्ताओं की जो इस तरह की बातों पर भी शोध और अध्‍ययन करते रहते हैं। खबर के मुताबिक ऑल्टो यूनिवर्सिटी (फिनलैंड), कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और ईटीएच ज्यूरिख के शोधकर्ताओं ने फोन और कंप्यूटर दोनों पर ही हजारों यूजर्स की टाइपिंग गति का विश्लेषण किया। इसमें 160 देशों के 37 हजार लोगों ने हिस्‍सा लिया।

शोध के जो निष्‍कर्ष निकले वे चौंकाने वाले थे। पता चला कि एक उंगली से टाइप करने वालों की औसत टाइपिंग गति 29 शब्‍द प्रति मिनिट थी, वहीं दो अंगूठों से टाइप करने वाले 38 शब्‍द प्रति मिनिट की गति तक टाइप कर गए। अंगूठों से टाइप करने की यह गति सामान्‍य आकार के क्‍वर्टी की-बोर्ड पर की जाने वाली टाइपिंग की औसत गति से सिर्फ 25 फीसदी कम है।

शोध के दौरान एक व्‍यक्ति ने तो मोबाइल पर टाइपिंग में कमाल की गति का प्रदर्शन करते हुए 85 शब्‍द प्रति मिनिट टाइप कर सभी को हैरान कर दिया। शोधकर्ताओं ने पाया कि ऑटो करेक्‍ट फीचर से स्‍मार्टफोन पर टाइपिंग की गति में 9 शब्‍द प्रति मिनिट की तेजी आई, वहीं संभावित शब्‍दों को बताने वाले फीचर ने टाइपिंग की गति को दो शब्‍द प्रति मिनिट तक कम कर दिया।

निष्‍कर्ष यह भी निकला है कि उम्रदराज माता-पिता के मुकाबले बच्‍चे मोबाइल फोन के फीचर्स को ज्‍यादा जल्‍दी से सीख भी रहे हैं और उनका इस्‍तेमाल भी अपेक्षाकृत तेज गति से कर रहे हैं। 10 से 19 साल तक के बच्‍चे अपने माता-पिता की तुलना में करीब 10 शब्‍द प्रति मिनिट ज्‍यादा तेजी से टाइप कर लेते हैं। ऐसा इसलिए है कि नई पीढ़ी मोबाइल के साथ ज्‍यादा समय गुजार रही है।

यह खबर सुनकर मुझे अपना जमाना याद आ गया। 60 और 70 के दशक में मध्‍यम वर्ग के परिवारों में बच्‍चों को इस बात के लिए प्रेरित या यूं कहें कि बाध्‍य किया जाता था कि वे टाइपिंग जरूर सीखें। पिताजी के ऐसे ही निर्देश पर मैंने उस समय टाइपिंग क्‍लास जॉइन की थी जब मैं छठी कक्षा का विद्यार्थी था। रेमिंगटन का टाइपराइटर और रेमिंगटन का ही ‘की-बोर्ड’ आज भी फिंगरप्रिंट की तरह मेरी उंगलियों पर चस्‍पा है।

एक बात और, उन दिनों अपेक्षा सिर्फ इस बात की ही नहीं होती थी कि बच्‍चा टाइपिंग सीखे। ठोक पीटकर जैसे तैसे यदि उसने हिंदी की टाइपिंग सीख ली तो अगला निर्देश समान रूप से अंग्रेजी टाइपिंग सीखने का होता और रो-धोकर आपने अंग्रेजी ‘की-बोर्ड’ को भी ठोकना सीख लिया, तो अगली चाह पहले हिन्‍दी और फिर अंग्रेजी शॉर्टहैंड लिपि सीखने की होती थी। मैंने हिन्‍दी टाइपिंग तो सीख ली, लेकिन अंग्रेजी टाइपिंग और दोनों भाषाओं की शॉर्टहैंड लिपि मैं कभी नहीं सीख पाया।

उस समय दोनों भाषाओं की टाइपिंग और शॉर्टहैंड जानने वाले बच्‍चों का दर्जा आज के किसी आईआईटी पास से कम नहीं होता था। बच्‍चे के बारे में उसकी पढ़ाई लिखाई के ब्‍योरे के साथ-साथ मां-बाप यह बताने में बहुत फख्र महसूस करते थे कि बच्‍चा टाइपिंग और शॉर्टहैंड भी जानता है। कई युवाओं के तो शादी के रिश्‍ते इसी योग्‍यता के आधार पर तय हो जाते थे।

बहुत मनमसोसकर सीखी गई यही टाइपिंग सालों बाद जब मेरे कॅरियर के दौरान खास काबिलियत के रूप में काम आई तब समझ में आया कि पिताजी ने यूं ही नहीं कहा था कि सीख लो, जिंदगी में कभी काम ही आएगी। समाचार एजेंसी यूएनआई में नौकरी के दौरान टाइपिंग सीखे होने का महत्‍व पता चला। कंपनी ने अपनी हिन्‍दी सेवा यूनीवार्ता शुरू की तो यह पॉलिसी भी बनाई कि जो लोग हिन्‍दी टाइपिंग जानते हैं उन्‍हें विशेष भत्‍ता मिलेगा और यदि वे शॉर्टहैंड भी जानते हैं तो उन्‍हें एक और विशेष भत्‍ते की पात्रता होगी। टाइपिंग सीखे होने के कारण मुझे एक विशेष भत्‍ता मिला और उस दिन अफसोस हुआ कि काश, मन लगाकर शॉर्टहैंड भी सीख ली होती तो एक भत्‍ता और मिल जाता…

जमाना बदला और मनुष्‍य के जीवन में मोबाइल फोन ने प्रवेश किया। शुरुआती दौर में जो मोबाइल आए के की-बोर्ड में एक से दस तक के अंकों के अलावा दो चार ‘की’ और थी बस। अंक के साथ ही एक ही ‘की’ पर दो-दो तीन-तीन अक्षर टाइप करने का प्रावधान था। और आपको एक शब्‍द बनाने के लिए अलग अलग ‘की’ को बार बार दबाकर टाइप करना पड़ता था। फिर ‘क्‍वार्टी’ की-बोर्ड के साथ आए मोबाइल ने मानो क्रांति कर दी और एक अक्षर के लिए एक ही ‘की’ आने लगी। और उसके बाद स्‍मार्ट फोन ने तो टाइपिंग की पूरी दुनिया ही बदल दी।

टाइपराइटर से लेकर स्‍मार्ट फोन तक की दुनिया का सफर खुद को साक्षर प्रमाणित करने के लिए अंगुलियों से लेकर अंगूठे तक का सफर है। पहले हाथ से लिखने या टाइपराइटर से टाइप करने के दौरान ज्‍यादातर काम अंगुलियों से होता था। टाइपिंग में अंगूठा तो सिर्फ ‘स्‍पेस बार’ दबाने के काम आता था, लेकिन स्‍मार्ट फोन में उसने अपना दर्जा बढ़ाते हुए अंगुलियों के लिए ही कोई ‘स्‍पेस’ नहीं छोड़ी।

एक जमाना था जब अंगूठाछाप होना आपके निरक्षर होने की निशानी था, दुनिया कितनी तेजी से बदली है कि अब अंगूठा छाप होना आपके न सिर्फ साक्षर होने की निशानी है, बल्कि साक्षरता में भी आधुनिक होने का सर्टिफिकेट है। यह दुनिया अब उंगलियों पर नहीं अंगूठे पर नाचती है।

कृष्‍ण आज होते तो शायद गोवर्धन अपनी छोटी उंगली पर नहीं अंगूठे पर उठाते। वैसे भारत के महान अतीत का गुणगान करने वाले लोग इस बात का भी दावा कर सकते हैं कि द्रोणाचार्य को पता था कि यह अंगूठा ही है जो एक दिन दुनिया को नचाएगा, शायद इसीलिए उन्‍होंने गुरु दक्षिणा में एकलव्‍य से उसका अंगूठा मांगा था। हिन्‍दी सिनेमा की सर्वाधिक चर्चित फिल्‍मों में से एक ‘शोले’ का आज यदि कोई रीमेक बने तो उसमें शायद गब्‍बर, ठाकुर से कुछ यूं कहेगा- ‘ये अंगूठा मुझे दे दे ठाकुर…’’

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