यह ठाकरे की ‘राजनीतिक चुनौती’ है या डर?

अजय बोकिल

देश में कोरोना के साथ-साथ राजनीतिक कोरोना से त्रस्त कई गैर भाजपाई (कतिपय भाजपाई भी) मुख्यमंत्री जब अपनी सरकार और कुर्सी बचाने की जी तोड़ कोशिशों में लगे हों, उस वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की यह चुनौती कि मेरी सरकार कोई गिराना चाहता है तो आज गिरा दे, इस इंटरव्यू के चलते गिरा दे, स्टीयरिंग तो मेरे हाथ में है, के कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। यानी यह दहाड़ है या घुड़की? यह पलटवार है या लाचारी की ढाल? यह एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार को सु‍नियोजित तरीके से गिराने की साजिश का डर है या फिर सरकार के भीतर असंतोष की स्वीकृति है?

क्योंकि देश में इन दिनों भाजपा का ‘राजनीतिक अश्वमेध’ यज्ञ जारी है। पहले उसने मप्र में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराई। अब राजस्थान में गहलोत सरकार पर घेरा डाल दिया है। महाराष्ट्र में तो उद्धव ठाकरे उस ‘ऑटोरिक्शा सरकार’ के मुख्यमंत्री हैं, जिसके तीन पहिए अलग-अलग दिशा में जाने की कोशिश करते हैं। हालांकि ठाकरे का दावा है कि उनकी सरकार की गाड़ी में तीन पहिए भले हों, पर चलने की दिशा एक ही है।

ठाकरे के बयान के बाद यह सवाल गहरा गया है कि उनकी सरकार को खतरा बाहर से ज्यादा है या ‍भीतर से? भीतर से है तो किससे है? खबरें ये आ रही हैं कि ‘सरकार गिराओ अभियान’ के तहत राज्य के भाजपा नेता इस ‘राष्ट्रीय कार्य’ में लग गए हैं तो दूसरी तरफ सरकार में शामिल कांग्रेस नेता खुद को ‘उपेक्षित’ महसूस कर रहे हैं। मजेदार बात यह कि ठाकरे का बयान उनकी अपनी पार्टी ‘शिवसेना’ के मुखपत्र ‘सामना’ को दिए गए विस्तृत साक्षात्कार का हिस्सा है।

ये ‘इंटरव्यू’ भी सामना के कार्यकारी संपादक, राज्यसभा सांसद और उद्धव ठाकरे के खास संजय राऊत ने लिया है। इंटरव्यू यूं तो दो पार्ट में है, लेकिन दूसरा हिस्सा राजनीतिक दृष्टि से अहम है। राऊत ने जिस तरह प्रश्न पूछे हैं, उससे सवाल और जवाब के बीच की ‘डिस्टेसिंग’ नापना कठिन है। मराठी में इस इंटरव्यू को सुनते हुए लगता है कि मुख्यरमंत्री को अपने जवाब के लिए भी स्पेस ढ़ूंढना पड़ा है। वरना प्रश्नों के विस्तार से उत्तर भी राऊत ही दे डालते। हालांकि इस तरह के ‘सुविधाजनक’ इंटरव्यू कोई नई बात नहीं है। हम प्रधानमंत्री के भी ऐसे कई इंटरव्यू देख चुके हैं।

ठाकरे के इंटरव्यू से यह प्रतीत होता है कि वो अपनी ‘तिपहिया सरकार’ की चाल से संतुष्ट हैं और इस बात से आश्वस्त हैं कि उनकी सरकार गिराना कोई हंसी-खेल नहीं  है। सो वे प्रश्नों के भी कई बार कटाक्षपूर्ण जवाब देते हैं। एक सवाल का तंजिया जवाब देते हुए ठाकरे ने कहा कि हमारी सरकारी सरकार को ‘वो’ ‍तीन पहिए की गाड़ी कहते हैं। चलिए साहब तिपहिया तो तिपहिया ही सही। पर ये तीनों पहिए चल तो एक ही दिशा में रहे हैं न! हम जब केन्द्र की एनडीए में सरकार में थे तो उनकी गाड़ी 30-35 पहियों वाली पूरी रेलगाड़ी ही थी न!

हाल में भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस द्वारा महाराष्ट्र के शकर कारखाना मालिकों की समस्या को लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से हुई मुलाकात से जुड़े सवाल पर ठाकरे ने जमकर चुटकी ली। ठाकरे ने कहा कि हर ‘गृह’ (घर) में शकर तो लगती ही है। शायद इसीलिए शकर का मसला सुलझाने वो ‘गृह’ मंत्री से मिले होंगे। विपक्ष के इस आरोप कि ठाकरे के कार्यकाल में मंत्रालय की हैसियत महज सचिवालय की रह गई है, के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा ‍कि मंत्री का काम निर्णय लेना है और अफसरों से उस पर अमल कराना है। वो शायद (कांग्रेस के मंत्री) निर्णय और अमल खुद करना चाहते हैं। इसे सरकार नहीं कहते।

ठाकरे की असल चिंता यह है कि उनकी सरकार को भीतर से भी चुनौती मिल रही है और बाहर से भी। भीतरी चुनौती सत्ता में भागीदार कांग्रेसी मंत्रियों में सुलग रहे असंतोष के कारण ज्यादा है। कांग्रेसी मंत्रियों का मानना है सत्ता में सारा ‘वेटेज’ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को मिल रहा है, जिसके नेता शरद पवार हैं। ठाकरे सरकार के बैक सीट ड्राइवर भी शरद पवार ही हैं। बताया जाता है कि कांग्रेसियों के इस ‘मोहभंग’ के पीछे एक कारण शिवसेना और एनसीपी के बीच बढ़ती ‘अंडरस्टैंडिंग’  भी है।

ऐसे में कांग्रेस विधायक दल के नेता एवं राजस्व मंत्री बालासाहेब थोरात का ज्यादातर वक्त पार्टी कार्यकर्ताओं को गठबंधन सरकार की मजबूरियां समझाने में जाया हो रहा है। चर्चा यह भी है कि खुद थोरात जिन अफसरों का तबादला करना चाहते हैं, उसे ठाकरे और डिप्टी सीएम अजित पवार हरी झंडी नहीं दे रहे। यहां तक कि कांग्रेसी मंत्री अपने पसंदीदा अफसरों की तैनाती भी नहीं कर पा रहे हैं। एक कांग्रेसी नेता ने तो पूछा कि क्या हम सरकार में शिवसेना की पालकी ढोने के लिए ही हैं?

और तो और एक पूर्व मंत्री नसीम खान ने उद्धव ठाकरे के इस बयान कि ‘लॉकडाउन में लोग ऑनलाइन बकरे खरीदें और प्रतीकात्मक कुर्बानी दें’ पर कड़ी आपत्ति जताते  हुए सवाल किया कि क्या यह हमारी सरकार है? हालांकि कांग्रेसियों का यह असंतोष ज्वालामुखी बनेगा या नहीं, अभी कहा नहीं जा सकता, क्योंकि ठाकरे का दावा है कि उनकी सोनिया गांधी से भी बात होती रहती है।

उधर नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस की दिल्ली यात्रा के बाद कयास लगने लगे कि जयपुर के बाद अगला नंबर अब मुंबई का है। ठाकरे सरकार गिराने का काम अगस्त-सितंबर में हो सकता है। इस बीच राजनीतिक दुश्मनी निभा रहे भाजपा और शिवसेना के बीच परस्पर प्रशंसा के हालिया बयानों से शरद पवार के कान खड़े हो गए और उन्होंने राम मंदिर शिलान्यास को लेकर ऐसी टिप्पणी की कि इस मुद्दे पर शिवसेना को अपना स्टैंड साफ करना पड़ा। इस बीच यह चर्चा भी जोरों पर है कि राज्य में भाजपा में फडणवीस के प्रतिद्वंदवियों को एक-एक कर महाराष्ट्र से बाहर किया जा सकता है।

जो भी हो, ठाकरे का यह इंटरव्यू राज्य में राजनीतिक कटाक्ष और ‍परिहास का मुद्दा बन गया है। ठाकरे के इस इंटरव्यू पर विरोधियों ने खासी चुटकी ली। विपक्षी भाजपा के वरिष्ठ नेता चंद्रकांत पाटिल ने पलटवार किया कि (सरकार गिराने की चुनौती देना छोड़) ठाकरे पहले किसी दूसरे न्यूज चैनल को इंटरव्यू दे के दिखाएं। पाटिल ने कहा कि (घर की मुर्गी) ‘सामना’ अखबार को इंटरव्यू देना तो ‘मैच फिक्सिंग’ जैसा है। वैसे भी संजय राऊत ठाकरे के ‘स्तुतिगायक’ हैं।

पाटिल ने यह तंज भी कसा कि प्रदेश के एक मुख्यमंत्री (उद्धव ठाकरे) ‘मातोश्री’ (ठाकरे का ‍निवास) में बैठे रहते हैं और दूसरे मुख्य मंत्री (शरद पवार) पूरे राज्य का दौरा करते रहते हैं। गौरतलब है कि इसी इंटरव्यू में ठाकरे बोले, मानाकि कोरोना लॉकडाउन से लोग भले ऊब चुके हैं, लेकिन सिर्फ लोगों की ऊब मिटाने के लिए लॉकडाउन को अनलॉक नहीं किया जा सकता। हम एकदम लॉकडाउन उठा लें और फिर कोरोना प्रचंड रूप में फैल जाए तो क्या करेंगे?

इस पर विपक्षी मनसे ने भी मजे लिए। उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे की पार्टी मनसे के नेता संदीप देशपांडे ने कहा कि ‘मैं सीएम की बात से सौ फीसदी सहमत हूं, किसी (मुख्यमंत्री) को मंत्रालय जाना बोरिंग लगता है, इसलिए राज्य में लॉकडाउन नहीं बढ़ा सकते, ऐसा महाराष्ट्र की जनता का मत है।

उधर चंद्रकांत पाटिल ने यह भी कहा कि प्रदेश के वर्तमान राजनीतिक हालात पर अगर सातवीं क्लास के बच्चे को भी निबंध लिखने को कहा जाए तो वो लिख देगा। वो (ठाकरे) केवल कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाने के लिए कहते रहते हैं कि उनकी सरकार नहीं जाने वाली, लेकिन हकीकत में सरकार के तीनों घटक आपस में लड़ते रहते हैं और ऊपर से कहते हैं कि कुछ भी नहीं हुआ। पाटिल ने मराठी कहावत का जिक्र करते हुए कहा कि ‘मुर्गे को ढांकने से सूरज का उगना रोका नहीं जा सकता।‘ अब देखना यह है कि राजस्थान के बाद ‘मिशन सरकार गिराओं’ के तहत अगली सरकार किसकी हलाल होती है? ठाकरे की ‘राजनीतिक बांग’ में तो यह ‘डर’ साफ झलक ही रहा है।

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